मास्को में कल रात भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की मुलाकात एक बड़ी घटना है। पर आज के अखबारों में उसकी खबर रक्षा मंत्रालय के ट्वीट, जानकार सूत्रों के हवाले से और यह सब भी दिल्ली में बैठे-बैठे लिखी हुई है। कांग्रेस की तथाकथित भ्रष्ट सरकार के जमाने में मंत्री या प्रधानमंत्री विमान लेकर जाते थे तो उसमें पत्रकार भी बैठा लिए जाते थे। बेशक इससे पत्रकारों का घूमना हो जाता होगा पर वे खबर भी देते ही थे। अब (नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से) यह प्रथा बंद हो गई है और विमान में पत्रकार मुफ्त में नहीं ले जाए जाते हैं। भक्तगन जाते हों तो खबर नहीं करते। जो गए और ले जाए गए हैं उनपर भी खबरें और आशंकाएं छपती रही हैं पर अभी वह मुद्दा नहीं है।
अगर रिपोर्टर नहीं होंगे तो खबरें कैसे होंगी इसकी चिन्ता किए बगैर सरकार अपना काम कर रही है और जब सरकार हफ्तों चुप रह सकती है और मन की बात सुनकर जनता खुश हो जाती है तो इसकी जरूरत भी नहीं है। लेकिन महत्वपूर्ण मौकों पर क्या हुआ इसका भी पता नहीं चलता है। पहले आकाशवाणी और पीटीआई के रिपोर्टर होते ही थे उनकी खबरें छपती थीं। अब एएनआई के होते हैं लेकिन आज खबरें बाईलाइन वाली हैं, नई दिल्ली डेटलाइन से। अंग्रेजी के कई अखबार मैंने देखे इससे नहीं लगता है कि पीआईबी ने कोई विज्ञप्ति जारी की है। सब रक्षा मंत्रालय के ट्वीट पर आधारित है। और वह भी एक लाइन का। पर अखबारों ने खबर ऐसे छापी है जैसे बहुत बड़ी खबर हो। और उसमें कुछ है ही नहीं।
हो सकता है ट्वीटर पर मंत्रियों के सक्रिय होने के बाद पीआईबी या प्रेस विज्ञप्ति जारी करने की जरूरत नहीं रह गई हो और शायद इसीलिए पीआईबी को फैक्ट चेक जैसे काम में लगा दिया गया है। कुल मिलाकर भारत में कई अखबारों में यह खबर नहीं है कि कल मास्को में रक्षा मंत्रियों की क्या बात हुई। अगर बातचीत गोपनीय थी, तो यह भी बताया जाना चाहिए पर सूचना और संचार क्रांति के इस जमाने में खबर ही नहीं होना – अजीब है। कल रात मैंने इंटरनेट पर देखा था डेढ़ दो घंटे तक यही पक्का नहीं हुआ था बैठक शुरू हुई या नहीं और शुरू हुई तो समय से या देर हुई। बाद में जो खबर आई वह रक्षा मंत्री के ट्वीट से थी। बैठक शुरू हो गई और सुबह अखबारों में यही सूचना है कि दो घंटे 20 मिनट चली। इसमें क्या हुआ वह नहीं है।
आज ज्यादातर अखबारों में संभवतः वही फोटो है जिसे रक्षा मंत्री कार्यालय ने ट्वीट किया था। हालांकि कुछ अखबारों ने एएनआई को क्रेडिट दिया है जबकि टेलीग्राफ ने फोटो का स्रोत नहीं बताया है। अगर एएनआई का फोटोग्राफर मास्को में था तो क्या फोटोग्राफर भी नहीं होना चाहिए। या इस मौके पर भारत का कोई रिपोर्टर मास्को में नहीं होना सामान्य बात है? इसकी चिन्ता किसे करनी है? क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। क्या अखबारों को यह मांग नहीं करनी चाहिए कि कम से कम ऐसे मौकों पर रिपोर्टर्स को ले जाया जाना चाहिए या बाकायदा विज्ञप्ति जारी की जानी चाहिए। या उन्हें अपने खर्चे पर रिपोर्टर भेजना चाहिए।
- द हिन्दू ने नई दिल्ली डेटलाइन से बाईलाइन खबर छापी है। लीड खबर का शीर्षक है, राजनाथ सिंह ने चीन के रक्षा मंत्री से मास्को में मुलाकात की। उपशीर्षक है, चीन ने बैठक की मांग की थी। खबर के पहले ही पैरे में कहा गया है, हालांकि बैठक का ब्यौरा मालूम नहीं हुआ।
- टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह खबर लीड है और शीर्षक लीड जैसा बनाने के लिए लिखा है, सीमा विवाद के बाद राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री की पहली बैठक। हालांकि बैठक हुई के अलावा पहली थी, यह सबको पता है। यह खबर भी नई दिल्ली डेटलाइन से है और टाइम्स न्यूज नेटवर्क की है। अखबार ने खबर के दूसरे पैरे में लिखा है कि इस बैठक के संबंध में शुक्रवार देर रात तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है।
- इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को खूब महत्व दिया है और पांच कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ शीर्षक में ही बताया है कि दो घंटे 20 मिनट तक बैठक चली। यहां नई बात यह है कि विदेश सचिव के अनुसार 1962 के बाद से यह स्थिति अनूठी है। यह खबर भी नई दिल्ली डेटलाइन से बाईलाइन वाली है। खबर के पहले ही वाक्य में बताया गया है कि विदेश सचिव ने जो कहा वह कहीं और की बात है। और रक्षा मंत्री ने उसके कुछ ही घंटे के अंदर चीन के रक्षा मंत्री से बात की। सिंगल कॉलम की लीड में सूचना के नाम पर कुछ नया या अलग नहीं है। दूसरे पन्ने पर टर्न विदेश सचिव की खबर से शुरू होता है जो दिल्ली के एक सेमिनार की खबर है। रक्षा मंत्री के साथ विदेश सचिव के होने का कोई मतलब वैसे भी नहीं है पर खबर तो एक साथ बनाई ही जा सकती है। खासकर लंबी करनी हो, मोटा शीर्षक लगाना हो तो उपशीर्षक के साथ जोड़ी भी जा सकती है।
- द टेलीग्राफ में यह खबर लीड नहीं है। पहले पन्ने पर है लेकिन बॉटम। यहां भी नई दिल्ली डेटलाइन के साथ बाईलाइन वाली। टेलीग्राफ ने लिखा है कि रक्षा मंत्री के कार्यालय ने आधी रात के करीब ट्वीट किया। और खबर इसी के हवाले से है। आगे दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के अधिकारी के हवाले से खबर है।
- हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, चीन को एक संदेश में भारत ने आक्रमण (अंग्रेजी में अग्रेशन है, आक्रामकता भी कह सकते हैं) के खिलाफ चेतावनी दी। यहां भी नई दिल्ली डेटलाइन से बाई लाइन खबर है और स्थिति से वाकिफ अनाम अधिकारियों के हवाले से खबर है। इसमें लिखा है, एलएसी पर मई में चीन की तरफ से एकतरफा यथास्थिति खराब करने के बाद से यह सर्वोच्च स्तर का सरकारी संपर्क था। समझा जाता है कि दोनों मंत्रियों ने सीमा पर विवाद के बारे में चर्चा की होगी ताकि लद्दाख क्षेत्र में सैनिक तनाव कम हो।
यह सरकार की निष्पक्षता और पारदर्शिता है। सरकार के 18 घंटे काम करने का नतीजा है और आप चाहें तो मान लीजिए मंदिर बनाने और 370 खत्म करने जैसे वादे पूरे करने की कीमत है जो आप दे रहे हैं या आप से वसूली जा रही है। अच्छे दिन में आपका स्वागत है।
संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार हैं और अनुवाद के क्षेत्र के कुछ सबसे अहम नामों में से हैं।