प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 जनवरी को झारखण्ड के पलामू में एक रैली करने जा रहे हैं। इस मौके के लिए ‘सुरक्षा व्यवस्था’ के मद्देनज़र पुलिस अधीक्षक ने एक लिखित आदेश जारी किया है। इस आदेश के मुताबिक परिभ्रमण स्थल के पास काले रंग की हर वस्तु को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
ध्यान दें, आदेश में लिखा है कि आयोजन स्थल पर कोई भी सरकारी कर्मी या जनता काली पोशाक पहनकर न आवे। इतना ही नहीं, काला मफलर, टाई, मोजा, जूता और हैंडबैग या पर्स भी वर्जित कर दिया गया है।
आदेश की भाषा दिलचस्प है क्योंकि यह पलामू, लातेहार, गढ़वा और चतरा के आयुक्तों को संबोधित है जिसमें कहा गया है कि ‘’प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भाग लेने हेतु जितने भी लोग ला जा रहे हैं…’। भाषा से स्पष्ट है कि रैली में लोगों को अलग-अलग जिलों और प्रखण्ड से लाया जा रहा है न कि वे खुद चलकर रैली में आ रहे हैं, शायद इसीलिए यह पत्र जनता को संबोधित करने के बजाय जनता को लाने वाली एजेंसियों और अफसरो को संबोधित है।
काले से आखिर प्रधान सेवक को क्या दिक्कत है? जाहिर है प्रधानमंत्री की निजी सुरक्षा टीम के निर्देश के बगैर ऐसा नहीं किया गया होगा। काले रंग के मोज़े और जूते को प्रतिबंधित करने देने से सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो सकती है, यह पहेली है।
वैसे, पिछले कुछ मौकों पर हम काले से प्रधान सेवक के भय या चिढ़ को सार्वजनिक मंचों पर देख चुके हैं। मसलन, प्रधानमंत्री जब दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गए थे उस वक्त जोहानेसबर्ग में प्रवासी भारतीयों क एक सम्मेलन के मंच पर अश्वेत गायिका जेसिका बांगेनी के समक्ष उनके चेहरे के हावभाव देखने लायक थे। वे लगभग डरे हुए और सतर्क दिखे। जब गायिका ने अंग्रेज़ी में वेलकम टु साउथ अफ्रीका कहा, तब जाकर उनका चेहरा सहज हो सका।
एक और तस्वीर बहुत वायरल हुई थी जिसमें एक अश्वेत अफ्रीकी बच्चे का कान खींचते वे फ्रेम में आ गए थे। सहमे हुए बच्चे और हर्षित मोदी के चेहरे के परस्पर विरोधी भावों का अध्ययन किया जाना चाहिए था।
एक अहम बात ये है कि अपनी निजी जिंदगी में काले रंग के परिधान या वस्तुओं से परहेज नहीं करते हैं। फिर सवाल उठता है कि दूसरों के काले से उन्हें क्या दिक्कत हो सकती है? काला प्रतिबंधित करने का शासनादेश केवल पलामू पुलिस के दिमाग की उपज हो सकती है जिसका मोदी की व्यक्तिगत पसंद-नापसंद से कोई लेना-देना नहीं? अतीत देखते हुए ऐसा कम ही लगता है।