एक ‘शहरी नक्‍सल’ का बयान

दोस्‍तो, सच्‍चाई और ईमानदारी से लदे शब्‍द गोली और गाली से ज्‍़यादा ताकतवर होते हैं, आज यह साबित हो रहा है। हमारे गीत और कविताओं में जोश है और हमारे काम और लेखनी का आधार तर्क व तथ्‍य हैं।

New Delhi: Human rights activist Gautam Navlakha at his residence after he was arrested by the Pune police in connection with the Bhima Koregaon violence, in New Delhi on Tuesday, Aug 28, 2018. (PTI Photo) (PTI8_28_2018_000270B)

भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के सिलसिले में महीने भर पहले पुणे पुलिस द्वारा उठाए गए पांच बुद्धिजीवियों में एक पत्रकार गौतम नवलखा को आज दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय से राहत मिल गई और देर शाम उन्‍हें नज़रबंदी से मुक्‍त कर दिया गया। दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इन पांचों बुद्धिजीवियों को दूसरी एजेंसियों से न्‍यायिक राहत हासिल करने के लिए चार सप्‍ताह का वक्‍त दिया था जिस अवधि में उन्‍हें अपने घरों में नज़रबंद रहना था। गौतम का केस दिल्‍ली हाइकोर्ट में पहले से चल रहा था। इसी तरह अधिवक्‍ता सुधा भारद्वाज का भी केस चंडीगढ़ उच्‍च न्‍यायालय में चल रहा है। उम्‍मीद जतायी जा रही है कि गौतम के मामले में आए दिल्‍ली हाइकोर्ट के फैसले का असर बाकी मामलों पर भी पड़ेगा। फैसला आने के बाद गौतम नवलखा ने एक बयान जारी किया है जिसे हम नीचे अविकल प्रकाशित कर रहे हैं- 
संपादक

मैं सुप्रीम कोर्ट के बहुमत और असहमति वाले न्‍यायाधीशों का उनके फैसले के लिए शुक्रिया अदा करना चाहूंगा जिसने हमें इस मामले में राहत हासिल करने के लिए चार हफ्ते का वक्‍त दिया, साथ ही मैं भारत के जनपक्षधर नागरिकों और वकीलों को धन्‍यवाद देना चाहूंगा जिन्‍होंने हमारी ओर से ज़ोरदार लड़ाई लड़ी, जिसकी स्‍मृतियां हमेशा मेरे साथ रहेंगी। हमारे समर्थन में कायम उस एकजुटता के आगे मैं नत हूं, जिसने सरहदें लांघ लीं।

मुझे दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय से अपनी आज़ादी वापस मिली है। मैं ऐसा आह्लादित हूं कि इसका कोई छोर नहीं।

मेरे प्रिय दोस्‍तों और वकीलों ने नित्‍या रामाकृष्‍णन, वारिशा फरासत, अश्‍वत्‍थ और कानूनी व लॉजिस्टिक्‍स टीम के नेतृत्‍व में मुझे आज़ादी दिलाने के लिए वास्‍तव में ज़मीन और आसमान को एक कर डाला। पता नहीं मैं उनका कर्ज कभी चुका पाऊंगा या नहीं। और उन वरिष्‍ठ अधिवक्‍ताओं का भी, जिन्‍होंने सर्वोच्‍च अदालत में हमारी पैरवी की है। कुछ बंदिशों के बावजूद नज़रबंदी की इस अवधि का मैंने अच्‍छा उपयोग किया, इसलिए मुझे कोई गिला शिकवा नहीं है।

मैं हालांकि अपने सह-आरोपियों और भारत के दसियों हज़ारों दूसरे राजनीतिक बंदियों को नहीं भुला सकता जो अपनी वैचारिक आस्‍थाओं या अपने खिलाफ लगे गलत आरोपों अथवा यूएपीए कानून के तहत कैद हैं। इसी मामले में मेरे सह-आरोपी जेल के भीतर हो रहे गलत बरताव के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठ गए थे और उन्‍होंने खुद को राजनीतिक बंदी का दरजा दिए जाने की मांग उठायी थी। दूसरे राजनीतिक बंदियों ने भी समय-समय पर भूख हड़ताल कर के लगातार यही मांग उठायी है। नागरिक स्‍वतंत्रता और जनवादी अधिकार आंदोलन के लिहाज से उनकी आज़ादी और उनके अधिकार अमूल्‍य हैं।

आज हालांकि जश्‍न मनाने के वाजिब कारण हैं।

मैं एलजीबीटीक्‍यू समुदाय के साथियों को हाल ही में उनकी शानदार जीत के लिए सलाम करता हूं जिन्‍होंने अथक संघर्ष किया है, जिसके चलते एक ऐसे सामाजिक सुधार आंदोलन के द्वार खुल गए हैं जैसा कि बाबासाहब आंबेडकर ने जाति के उन्‍मूलन के लिए खड़ा किया था और हमसे ‘’शिक्षित, संगठित व आंदोलित’’ होने का आह्वान किया था। हमारी एकजुटता में थोड़ा वक्‍त लगा, लेकिन आपकी दृढता ने हमें बदलने को विवश कर डाला। आपने हमारे चेहरे पर मुस्‍कान लौटा दी और हमारी जिंदगी में सतरंगी रंग भर दिए।

इसके साथ ही भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण और उनके साथियों सोनू व शिवकुमार को कैद से मिली आज़ादी विशेष रूप से आश्‍वस्‍तकारी है क्‍योंकि यह समाज में निहित जातिगत उत्‍पीड़न के खिलाफ ज़मीन से उठे ज़बरदस्‍त प्रतिरोध की ताकत को दर्शाती है।

एकजुट लेफ्ट पैनल की ऐतिहासिक जीत के लिए जेएनयू छात्र संघ के दोस्‍तों को मेरा सलाम, जो एक बार फिर से साबित करता है कि एकजुट होकर प्रतिरोध करना वक्‍ती ज़रूरत है- केवल तभी हम अत्‍याचार का सामना कर सकेंगे और ऐसा संघर्ष खड़ा कर सकेंगे जिसके लिए जनता का समर्थन जुटाया जा सके।

दोस्‍तो, सच्‍चाई और ईमानदारी से लदे शब्‍द गोली और गाली से ज्‍़यादा ताकतवर होते हैं, आज यह साबित हो रहा है। हमारे गीत और कविताओं में जोश है और हमारे काम और लेखनी का आधार तर्क व तथ्‍य हैं।

मेरे सभी करीबी और प्रिय दोस्‍तो, आइए मिलकर हम अपनी संवैधानिक स्‍वतंत्रताओं के हक में और उत्‍पीड़न व शोषण के सभी रूपों के खिलाफ़ आवाज़ उठाना जारी रखें।

इस मौके पर पाश के ये अनमोल बोल दोहराए जाने चाहिए:

हम लड़ेंगे साथी / कि लड़ने के बगैर कुछ भी नहीं मिलता / हम लड़ेंगे / कि अभी तक लड़े क्‍यों नहीं / हम लड़ेंगे / अपनी सज़ा कबूलने के लिए / लड़ते हुए मर जाने वालों की / याद जिंदा रखने के लिए / हम लड़ेंगे साथी!

लाल सलाम  


गौतम नवलखा के मामले पर आया दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय का फैसला नीचे पढ़ें

Gautam
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