क्या है माइनॉरिटीज़..कौन है अल्पसंख्यक…क्या केवल धर्म के आधार पर कोई अल्पसंख्यक होता है? या फिर भाषा के आधार पर भी…या खानपान-संस्कृति…या फिर सेक्शुएलिटी और विचार धारा के आधार पर भी कोई अल्पसंख्यक हो सकता है…?
क्या कोई एक आइडेंटिटी है माइनॉरिटीज़ की…या फिर उनके अंदर और भी अल्पसंख्यक आबादियां हैं…या सिर्फ अल्पसंख्यक होने की पहचान से किसी को पहचाना जा सकता है…?
क्या लोकतंत्र में सिर्फ बहुसंख्यक अहम है? क्या उसकी बात ही सुनी जाएगी? क्या उसको ही अपनी बात रखने का हक़ है…?
क्योंकि लोकतंत्र का अर्थ केवल बहुसंख्यक का फैसला…उसकी सरकार नहीं…अल्पसंख्यक की अभिव्यक्ति, विचार, मुद्दे उठाने, विरोध करने और अपने धर्म और पूजा पद्धति, खान-पान की आज़ादी भी है…?
15 अगस्त 2020 यानी आज़ादी की 73वीं वर्षगाँठ पर मीडिया विजिल पर शुरू हुए साप्ताहिक कार्यक्रम ‘माइनोरिटीज़ मैटर’ इन्हीं तमाम सवालों का हल खोजेगा। 15 अगस्त को तो पूरे मसले को एक डॉक्यूमेंट्री की शक्ल में बतौर कर्टेन रेज़र पेश किया गया था, पर आगे से हर रविवार दोपहर एक बजे यह कार्यक्रम अल्पसंख्यकों के विभिन्न मुद्दों पर मनोवैज्ञानिक नज़रिये से तथ्यपरक परिचर्चा करेगा। इस कार्यक्रम को पेश करेंगी स्वतंत्र पत्रकार और डाक्यूमेंट्री निर्माता सेहबा इमाम। यह एक महात्वाकाँक्षी कार्यक्रम है जिसका मकसद है कि अल्पसंख्यक समुदाय को बतौर भारतीय नागरिक देखा जाये, न कि किसी अलग-थलग घेटो के। और अगर घेटो बन रहा है तो उसके कारणों की तफ़्तीश की जाये ताकि समाज इसके ख़तरे को समझ सके। एक लाइन में कहें तो इस कार्यक्रम में अल्पसंख्यकों पर अहसान नहीं, हक़ की बात होगी जो कि इसकी टैगलाइन भी है।
इस समय भारत की दुनिया भर में जो छवि बन रही है उसने स्वाधीनता आंदोलन के तमाम संकल्पों को उलट दिया है। पूछा जा रहा है कि क्या भारतीय समाज में अब सिर्फ वही होगा जो बहुसंख्यक चाहते हैं या फिर लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों की राय और सम्मान का भी कोई मतलब है। समस्या ये है कि कथित मुख्यधारा मीडिया ने अल्पसंख्यकों को लेकर जो स्टीरियोटाइप गढ़ा है, बहुसंख्यकों की नज़र में वही हक़ीक़त है। ऐसे में मीडिया विजिल ने सीमित संसाधनों के बावजूद इस ज़रूरी काम का बीड़ा उठाया है।
आप 15 अगस्त को प्रसारित ये डाक्यूमेंट्री देखकर कार्यक्रम का अंदाज़ा लगा सकते हैं। और रविवार को दोपहर एक बजे, मीडिया विजिल के फ़ेसबुक पेज पर देखना न भूलियेगा- ‘माइनोरिटीज़ मैटर।’