प्रथम स्वाधीनता संग्राम (10 मई 1857 ) की 161 वीं बरसी पर लाल किले की ‘नीलामी’ के
ख़िलाफ़ सांस्कृतिक प्रतिरोध मार्च
10 मई, दिल्ली: प्रथम स्वाधीनता संग्राम (10 मई 1857 ) की 161 वीं बरसी पर आज लाल किले की नीलामी के खिलाफ दिल्ली के नागरिक, सांस्कृतिक समूहों , लेखकों और सचेत बुद्धिजीवियों ने राजघाट से लाल किला तक एक सांस्कृतिक प्रतिरोध पदयात्रा निकाली. यह पदयात्रा शाम 5 बजे राजघाट से शुरू होकर फिरोज शाह कोटला मार्ग होते हुए लाल किला तक पहुँची. पदयात्रा शुरू होने से पहले राजघाट के मुख्या गेट पर एक छोटी सी आम सभा का आयोजन हुआ जिसको कई बुद्धिजीवियों ने संबोधित किया. संगवारी थियेटर ग्रुप के गीतों के साथ इस पदयात्रा की शुरुआत हुई. इस पदयात्रा में आम नागरिक संगठन, अध्यापक, छात्र, सांस्कृतिक साहित्यिक संगठन, बुद्धिजीवी, कलाकार, इतिहासकार और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए. पदयात्रा में सरकार द्वारा लाल किले को डालमिया समूह को 5 सालों के लिए गोंद दिए जाने के खिलाफ़ नारे लग रहे थे. ‘रखरखाव’ के नाम पर लाल किले का जन विरोधी व्यावसायीकरण नहीं चलेगा. नीलामी के करार को रद्द करो’, व्याख्या केंद्र के के नाम पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ नहीं चलेगी, लाल किला बचाओ! सरकार के व्यावसायिक मन्सूबे को हराओ!!, फिर से कंपनी राज नहीं चलेगा.
पिछले दिनों मोदी सरकार ने लाल किला को डालमिया भारत समूह को रख-रखाव के नाम पर 5 साल के लिए गोद दे दिया है. करार डालमिया भारत समूह को इस बात की छूट देता है कि वह लाल किले के भीतर महत्वपूर्ण जगहों पर अपनी कंपनी के विज्ञापनों को लगा सकता है. इतना ही नहीं वह पर्यटकों को लाल किले के इतिहास की जानकारी देने के लिए ‘व्याख्या केंद्र’ भी खोलेगा. अपनी जरुरत के हिसाब से वह निर्माण कार्य भी कर सकता है. यह करार 5 साल के लिए डालमिया समूह को मालिकाना हक़ भी देता है. इन सारी चीजों को देखते हुए सरकार की मंशा पर संदेह और गहरा हो जाता है. प्रदर्शनकारियों ने इस बात की आशंका जाहिर की कि व्याख्या केंद्र के नाम पर इतिहास की वास्तविक तस्वीर को बदलकर प्रस्तुत करने की कोशिश की जाएगी. क्योंकि भाजपा सरकार इतिहास के पुनर्लेखन और पुनर्पाठ की लगातार कोशिश कर रही है. ऐसा लगता है कि लाल किला की यह नीलामी भी इसी का हिस्सा है.
प्रसिद्ध इतिहासकार और हेरिटेज विशेषज्ञ सोहैल हाशमी ने पदयात्रा शुरू होने से पहले गाँधी समाधि के बाहर राजघाट पर लोगों को संबोधित किया. जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष असगर वजाहत ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि सारे मध्यकालीन मुस्लिम इमारतों के प्रति भाजपा सरकार का रवैया उपेक्षापूर्ण है. वह उनका सरकारी संरक्षण नहीं करना चाहती है. इसीलिए लाल किले साथ भी वह यही कर रही है.’ जन संस्कृति मंच के दिल्ली इकाई के सचिव राम नरेश राम ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि लाल किला कोई बीमार कंपनी नहीं है जिसको सुधारने के लिए इसे निजी हाथों में देने की जरुरत है. डालमिया के हाथों में लाल किला को सौंपने का सरकार का तर्क बेबुनियाद है. जब लाल किले की वर्तमान आय इतनी है कि उसका रखरखाव उसी से किया जा सकता है तो फिर इसे डालमिया को सौपने का क्या औचित्य है. करार में जो बाते हैं उससे यह स्पष्ट है कि सरकार का यह फैसला सिर्फ रखरखाव के लिए नहीं बल्कि वह इसे निजी हाथों में देकर इतिहास के साथ मनमाना छेड़छाड़ करेगी. देशभर के नागरिकों से यह अपील है कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ जगह जगह अभियान चले.’ दलित लेखक संघ के महासचिव कर्मशील भारती ने कहा कि हमारे देश की विरासत लाल किला को गिरवी रखने का जो प्रयास किया है इससे इनकी देश के प्रति और देश की धरोहर लाल किले के प्रति मानसिकता का पता चलता है. ब्रिटेन के लोग भी भारत में व्यापार करने ही आए थे और उन्होंने देश को गुलाम बना लिया, यह प्रयास भी कुछ ऐसा ही है. . यह फैसला एक तरह से देशद्रोह का काम है. किले से हमारा भावनात्मक जुड़ाव है इसलिए सरकार का यह फैसला गलत है.’
भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य भी सभा में शामिल हुए और लाल किले के सामने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि ‘लाल किला देश की पहली जंगे आजादी का प्रतीक है. लाल किले से देश की जनता का भावनात्मक लगाव है. यह विशेष ऐतिहासिक धरोहर है. यह हमारी साझी लड़ाई और साझी विरासत का प्रतीक है. आज पूरा हिंदुस्तान कह रहा है ‘लाल किला पर डालमिया, नहीं मानेगा इण्डिया’. लाल किले को डालमिया को सौंपने का यह फैसला ऐतिहासिक धरोहरों को सिर्फ कार्पोरेट के हाथों देने भर का मामला नहीं है बल्कि इसके माध्यम से सरकार की हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने की मंशा है. भाजपा के भीतर इन प्रतीकों के प्रति नफ़रत है. इसलिए उसने लाल किला को डालमिया को सौंप दिया है. पर्यटन मंत्री कह रहे हैं कि डालमिया के लोग लाल किले में कुछ नहीं करेंगे बल्कि पब्लिक टायलेट बनायेंगे. सुविधाएँ मुहैया कराएँगे. सरकार का जो स्वच्छता अभियान चल रहा है, इतने पैसे खर्च हो रहे हैं तो लाल किले में सरकार खुद पब्लिक टायलेट क्यों नहीं बना सकती, सुविधाएँ क्यों नहीं मुहैया करा सकती है’.
भाकपा के मैमूना मुल्ला ने कहा कि सरकार निजीकरण के अपने परिचित उद्देश्य के चलते ही ऐसा फैसला ले रही है. हमारा लाल किला प्रथम स्वाधीनता संग्राम का प्रतीक है. सेंटर फार दलित आर्ट एंड लिटरेचर के कमल किशोर कठेरिया, आइसा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुचेता डे ने भी सभा को संबोधित किया. सभा का संचालन करते हुए अनहद के ट्रस्टी ओवैस सुल्तान खान ने कहा कि आज भारत अल्ट्रा राइट विंग कार्पोरेट की घेरेबंदी में है. लोग, इतिहास, विरासत, स्मारक और आजीविका सभी फासीवादी सांप्रदायिक हमले के शिकार हैं. हम इसे सह नहीं सकते. लाल किला हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता का प्रतीक है. हमारे पूर्वजों ने ईस्ट इण्डिया कंपनी और ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य के कंपनी राज के खिलाफ लड़ा और हम घृणा, कट्टरता और हिंसा की विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ भी लड़ेंगे, सरकार के इस फैसले से कार्पोरेट कंपनियों को एक नयी कंपनी राज स्थापित करने की इजाजत मिल जाएगी. इसलिए हम कह रहे हैं- ‘फिर से कंपनी राज नहीं चलेगा.’
इस प्रतिरोध मार्च में आइसा, अमन बैरदारी, सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एंड आर्ट, दलित लेखक संघ, डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट, डी.टी.आई, इप्टा, जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, एस एफ आई, के वाई एस, एपवा, ऐक्टू, प्रतिरोध का सिनेमा समेत तमाम संगठन शामिल हुए.