असंतोष: डॉक्टरों को होटलरूम और नर्सों के लिए 15 पर एक बाथरूम !

दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल को पूरी तरह से कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज के लिए तैयार कर दिया गया है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते हुए मामले को देखते हुए सरकार ने ये कदम उठाया है। वहाँ इलाज कर रहे डॉक्टरों को रहने के लिए बेहतर सुविधाएँ दी जा रही हैं लेकिन डॉक्टरों के साथ मरीज की देखभाल में तैनात नर्सों के साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है।

नर्सों को मरीजों की देखभाल के लिए घंटों लगाया जा रहा है लेकिन डॉक्टरों की सुध लेने वाली सरकार ने नर्सों कि सुरक्षा और मेहनत को नज़रअंदाज़ कर दिया है। अस्पताल में मौजूद नर्सों को हर समय अपनी सुरक्षा का भय सता रहा है। कोरोना संक्रमण के डर से सहमी हुई नर्सों को सुविधाओं के नाम पर कामचलाऊ व्यवस्था उपलब्ध करायी जा रही है।

30 बेड पर मात्र 2 बाथरूम

आपको बता दें कि अभी इस अस्पताल में क़रीब 1300 नर्सिंग ऑफिसर मौजूद हैं और उन सबको 15 दिनों की शिफ्ट की ड्यूटी पर लगाया गया है | 15 दिन की शिफ्ट के बाद अगले 14 दिन उन्हें क्वारंटाइन अवधि में रहना होगा। इन नर्सों को रहने के लिए अस्पताल के परिसर में ही दंत विभाग के एक सेक्शन में 30 बेड की जगह सुनिश्चित की गयी है।

कोरोना संक्रमण के फ़ैलने का खतरा जानते हुए भी इन 30 नर्सों के लिए मात्र 2 बाथरूम उपलब्ध हैं | जिसका मतलब 15 नर्सों पर 1 बाथरूम | ये व्यवस्था कोरोना संक्रमण फ़ैलने के लिए खुला न्योता है |

नर्सेज यूनियन ने चेतावनी देते हुए लिखा पत्र

इन सब के बीच ही संक्रमण के डर से स्वयं को बचाने के लिए दिल्ली स्टेट हॉस्पिटल नर्सेज यूनियन ने सरकार और प्रशासन को चेतावनी देते हुए एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए मास्क और पी.पी.ई. किट की मांग की है। यूनियन ने ये भी कहा है कि “यदि उनके लिए जल्द से जल्द रहने की उचित जगह और मास्क के साथ ही पी.पी.ई. किट नहीं मुहैया करायी गयी तो वे काम रोक देंगे।” साथ ही एक ही जगह बेड लगाकर नर्सों को रोकने के बजाय उन्हें अलग-अलग कमरे दिए जाएँ।

95 प्रतिशत से अधिक नर्सिंग स्टाफ़ को सुविधाओं की लचर व्यस्व्था देखते हुए घर  जाने को मजबूर होना पड़ता है और घर जाने पर उनके परिवार पर भी कोरोना संक्रमण का डर बना रहता है।

डॉक्टरों के लिए होटल की व्यवस्था की गयी है

आपको बता दें कि दिल्ली सरकार ने डॉक्टरों के लिए होटल में रुकने की व्यवस्था की  है लेकिन उन्हीं डॉक्टरों के साथ हर कदम पर खड़ी रहनी वाली नर्सों को जो सुविधा दी जा रही है वो उनका मनोबल तोड़ने का काम करेगी। साथ ही नर्सों और उनके परिवार के लोगों को संक्रमण का खतरा भी हर समय बना रहेगा।

कुछ नर्सें अपनी बात कहना चाहती हैं लेकिन नौकरी जाने के डर से वो कुछ नहीं बोल पाती हैं। बस चुपचाप संक्रमण के बीच अपनी नौकरी कर रही हैं।एक तरफ़ तो प्रधानमंत्री स्वास्थ्यकर्मियों का आभार जताने के लिए दिया जलाने और थाली बजाने का टास्क दे देते हैं दूसरी तरफ़ उन्हीं स्वास्थ्यकर्मियों को अपनी जान जोखिम में डालकर ऐसे हालातों में काम करना पड़ रहा है, जिसकी तरफ़ शायद प्रधानमंत्री को जल्द ही ध्यान देना चाहिए। यूनियन के सदस्यों ने चिकित्सा निदेशक को कई बार अपनी समस्यायें बतायीं लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब या कदम नहीं उठाया गया है |

महाराष्ट्र में भी उठी थी मांग

कुछ समय पहले ही महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में चिकलथाना क्षेत्र के सरकारी अस्पताल की नर्सों ने भी अपनी सुरक्षा के लिए ज़रूरी सामानों की मांग की थी। उन सब के पास भी पी.पी.ई.किट,सैनिटाईज़र और हाथ साफ़ करने की सुविधाएँ नहीं थीं। आये दिन ये खबर आ रही है कि तमाम अस्पतालों के चिकित्साकर्मी स्वयं संक्रमित हुए जा रहे हैं। अपनी सुरक्षा के मद्देनज़र इन नर्सेज़ के साथ ही अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की आवाज़ भी सुनी जानी चाहिए क्योंकि सिर्फ़ डॉक्टर या नर्स ही नहीं बल्कि अन्य मेडिकल स्टाफ़ भी संक्रमण के ख़तरे के बीच काम कर रहा है।

 



 

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