रवीश कुमार
इंडियन एक्स्प्रेस के मुज़मिल जलील और अरुण शर्मा इस मामले पर लगातार अंग्रेज़ी में रिपोर्ट लिख रहे हैं। हिन्दी के पाठक अख़बार का दाम ही देते रह जाएंगे मगर इस तरह की ख़बरें कभी नहीं मिलेंगी। अपवाद की अलग बात है। 2014 में 12 एकड़ ज़मीन ख़रीदी गई जिस पर स्पीकर निर्मल सिंह घर बना रहे हैं। इसके खिलाफ सेना 16 कोर के कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सरनजीत सिंह ने पत्र लिखकर गंभीर एतराज़ जताया है।
19 मार्च 2018 को यह पत्र लिखा गया है। तब निर्मल सिह उप मुख्यमंत्री ही थे लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा है कि निर्मल सिंह ने अवैध रूप से निर्माण किया है। इससे सुरक्षा कारणों को नुकसान पहुंच सकता है। मुज़ामिल जलील ने पत्र का हिस्सा भी छापा है जिसमें लेफ्टिनेंट जनरल सरनजीत सिंह लिखते हैं कि क्या मैं आपसे पुनर्विचार की गुज़ारिश कर सकता हूं क्योंकि गोला बारूद भंडार के निकट रिहाइशी मकान बनाना सुरक्षा के लिहाज़ से बहुत ख़तरनाक हो सकता है।
सेना स्थानीय प्रशासन से निर्माण रोकने के लिए बार बार कहती रही मगर ध्यान नहीं दिया। मजबूर होकर लेफ्टिनेंट जनरल सरनजीत सिंह को सीधे उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह को ही पत्र लिख देना पड़ा। निर्मल सिंह ने एक्सप्रेस से कहा है कि उनके निर्माण पर राजनीतिक इरादे से सवाल उठाए जा रहे हैं। मुझ पर कोई कानूनी रोक नहीं है कि मैं वहां निर्माण नहीं कर सकता। सेना का अपना मत है और वो उस मत से बाध्य नहीं हूं।
2000 में हिमगिरी इंफ्रा डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने यह ज़मीन ख़रीदी। इस कंपनी में मौजूदा उपमुख्यमंत्री कविंद्र गुप्ता, बीजेपी सांसद जुगल किशोर भी हिस्सेदार हैं। इस कंपनी को निर्मल सिंह के उप मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री रहते चंबा में पावर प्रोजेक्ट भी मिला है। है न कमाल की बात। अखबार का दावा है कि इस कंपनी में निर्मल सिंह की पत्नी ममता सिंह के भी शेयर हैं। वे इस कंपनी में निदेशक हैं। जिस कंपनी में भाजपा नेताओं के शेयर है उसी कंपनी को प्रोजेक्ट मिलता है, वही कंपनी सेना की ज़मीन के करीब रिहाइशी निर्माण के लिए ज़मीन खरीदती है। इन सभी को जम्मू कश्मीर बैंक ने नोटिस भेजा है। किसलिए ? इसलिए कि इस कंपनी ने 29 करोड़ 31 लाख का लोन डिफाल्ट किया है। एन पी हो गया है।
नियम है कि गोला बारूद भंडार के 1000 गज तक आप कोई निर्माण नहीं कर सकते मगर लेफ्टिनें जनरल सरनजीत सिंह ने अपने पत्र में निर्मल सिंह को लिखा है कि आपने करीब 580 गज के भीतर घर बना लिया है। निर्मल सिंह का भी पक्ष छपा है। उनका कहना है कि डिपो के बगल में एक गांव भी तो है। सेना ने वहां दीवार बना दी है। वो कहते हैं कि आप 1000 मीटर के भीतर नहीं बना सकते हैं, मेरा घर उसके भीतर है, जैसे ही बनाना शुरू किया, विरोध होने लगा। यह राजनीतिक इरादे से हो रहा है। सेना तो शौचालय बनाने नहीं देती। लोग परेशान हैं । यह मेरी प्रोपर्टी है और इस पर मेरा अधिकार है कि कैसे इस्तमाल करूं। निर्मल सिंह का कहना है कि सेना स्थानीय लोगों को परेशान कर रही है, इसकी जानकारी रक्षा मंत्री को भी दी है। इसका मतलब रक्षा मंत्री इस विवाद से परिचित हैं।
निर्मल सिंह कितनी आसानी से सेना के एतराज़ को राजनीतिक इरादे से किया गया बता देते हैं। सेना पर ही लोगों को परेशान करने के आरोप मढ़ देते हैं। ये वो लोग हैं जो सेना पर ज़रा सा सवाल करने पर आग बबूला हो उठते हैं। गोदी मीडिया के घोड़ों को खोल देते हैं कि सेना का अपमान हो रहा है। वह यह नहीं बता रहे हैं कि जिस कंपनी की निदेशक उनकी पत्नी है, उसमें मौजूदा डिप्टी सीएम भी निदेशक हैं, उसे पावर प्रोजेक्ट कैसे मिला, क्या कुछ भी नैतिकता नहीं बची है। निर्मल सिंह का कहना है कि पावर कंपनी 15 साल पहले शुरू की थी। बाद में ऊर्जा मंत्री बना, उप मुख्यमंत्री बना। इसमें हितों का टकराव नहीं है। कमाल है। ऊर्जा मंत्री बनकर उस कंपनी को प्रोजेक्ट देने में इन्हें कुछ भी ग़लत नहीं लगता जिसकी निदेशक इनकी पत्नी हैं और एक निदेशक उप मुख्यमंत्री।
स्पीकर निर्मल सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि इस इलाके में सेना का गोला बारूद भंडार ही नहीं होना चाहिए। तो बीजेपी के नेता तय करेंगे कि सेना को अपना भंडार कहां बनाना चाहिए। कोई और ये बात कह देता तो गोदी मीडिया बवाल मचा देता। इंडियन एक्सप्रेस के मुज़ामिल जलील ने इस पर तीन रिपोर्ट की है। मैंने सारी बातें नहीं लिखी हैं। आप उन तीनों रिपोर्ट को पढ़िए। सेना को लेकर हमेशा संवेदनशील रहने वाले चैनल इस मामले पर चुप रहेंगे। क्योंकि वे जिस आका की गोद में हैं, उसे चुभने वाली स्टोरी कैसे कर सकते हैं। इतना तो आप समझदार हैं ही।