मनदीप पुनिया
हरियाणा की जींद विधानसभा सीट पर हुआ उपचुनाव मेवात में मुसलमानों के एनकाउंटर या सूबे के खेतों में मर रहे किसानों जितना कोई मुश्किल सवाल नहीं था, कि इस पर हरियाणा का विपक्ष कभी चर्चा ही नहीं करता। इसका तो आसान सा गणित था जिसे कोई भी जोड़-तोड़कर बता देता कि जीतने वाली भाजपा ही है। उपचुनाव के नतीजे आ गए हैं और अपेक्षा के मुताबिक भाजपा ही चुनाव जीत गई है अलबत्ता इस सीट पर उसकी यह पहली जीत है। विपक्ष के नेता यानी पिछली हुकूमतों के राजकुमारों ने इस चुनाव में भी किसानों, मज़दूरों और अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर सरकार को न घेरने की कसम बिल्कुल नहीं तोड़ी। इसके उलट अपने आपको मुख्यमंत्री की रेस का घोड़ा बताते हुए इन्होंने जनता के बीच सरपट दौड़ लगाई और उस में हार गए।
पिछले दस साल से इस सीट पर ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो का कब्ज़ा था। इनेलो के मरहूम विधायक हरिचंद मिढ़ा के देहांत के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ था। जाति से अरोड़ा खत्री और 2014 में मोदी लहर के बावजूद वे जाट बहुल इस सीट पर लगातार दूसरी बार विधायकी पा गए थे। इसका बड़ा कारण था उनका लोकहिती डॉक्टर होना। विधानसभा में पड़ने वाले गांवों, मुहल्लों में वे दवाइयों का बस्ता अपने कंधे पर टांगकर जाया करते थे ताकि गरीब-गुरबा लोगों का मुफ्त इलाज कर सकें। वे दक्षिणपंथ के खिलाफ आवाज़ उठाते रहते थे। उनकी मौत के बाद उनके बेटे कृष्ण मिढ़ा झट से भाजपा की गोद में जा बैठे और उपचुनाव में खट्टर से भाजपा का टिकट भी ले आए। आज कृष्ण मिढ़ा ने रणदीप सुरजेवाला और दिग्विजय चौटाला को हराकर कुर्सी एक बार फिर अपने घर में ही रखवा ली है।
चुनाव के इस आसान से गणित के पीछे कुछ दांव-पेंच भी हैं जिन पर बात होनी जरूरी है। पहली तो यह कि कांग्रेस ने अपने दिल्ली के हैवीवेट/टीवीवेट पहलवान रणदीप सुरजेवाला को मैदान में उतारा था जो हरियाणा की ज़मीन से से कई साल से नदाद हैं। रणदीप कैथल से विधायक भी हैं लेकिन विधानसभा के स्पीकर की आंखें उन्हें सदन में देखने के लिए तरस रही हैं। हरियाणा के इस मिस्टर इंडिया टाइप नेता का प्रदर्शन चुनाव में थर्ड क्लास रहा है यानी वे तीसरे नम्बर पर रहे हैं।
दूसरी, ओमप्रकाश चौटाला के परिवार की लड़ाई की आग ने जींद की जनता तक को झुलसाकर रख दिया। ओमप्रकाश के पौत्र दिग्विजय चौटाला उनसे नाराज़ होकर नई पार्टी जेजेपी से मैदान में थे तो उनके छोटे बेटे अभय चौटाला ने इनेलो से उमेद रेढू को चुनाव मैदान में उतारा था। ओमप्रकाश चौटाला की दोनों सियासी शाखाओं ने भाजपा पर हमला करने के बजाय जुबानी तोपों का मुंह एक दूसरे की तरफ मोड़ दिया। अभय चौटाला दिग्विजय, दुष्यन्त और उनकी मां आपस में ही एक दूसरे को भला-बुरा कह रहे थे। चुनाव में भाजपा को घेरने और मुद्दों पर बात करने के बजाय चाचा-भतीजा अपने आपको मुख्यमंत्री साबित करने पर ज़ोर देते रहे। इस बेवकूफी भरी पारिवारिक लड़ाई के कारण ही चौटाला की दोनों शाखाओं को हार का मुंह देखना पड़ा है।
तीसरी, मतगणना से एक बात तो साफ हो गई है कि भाजपा शहरी आबादी की आंख का तारा तो है ही, इसके अलावा गांव-देहात से भी खूब वोट खींच रही है। भाजपा को सबसे बड़ा फायदा अपने कमजोर विपक्ष से मिल रहा है जो मुख्यमंत्री नामक चिड़िया के पंख लगाकर पिछले चार साल से आसमान में उड़ रहा है और भाजपा जमीन पर अपनी पकड़ मज़बूत बना रही है। भाजपा ने चुनाव में जातिगत समीकरण जरूर भिड़ाए परन्तु हिंदुत्व नामक बाज़ के एक बार भी अपने पर न खोले।
चौथी, कांग्रेस और जेजेपी के अतिउत्साहित कार्यकर्ताओं ने पूरे चुनाव में जनता को यह बता-बताकर नाक में दम कर दिया कि उनका उम्मीदवार भावी मुख्यमंत्री है। जेजेपी कार्यकर्ताओं की जुबां पर था, “आया आया, मुख्यमंत्री आया”। जिन पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं को भावी मुख्यमंत्री बताया था उन सभी पार्टियों के उम्मीदवारों का बोरिया-बिस्तर जनता ने गोल कर दिया है।
इस चुनाव में सबसे बुरी हालत कार्यकर्ताओं की हुई है जिन्होंने अपने नेता रूपी राजाओं के महल में सेवा-पानी करते-करते कपड़े फड़वा लिए, नंगे हो गए और इन गरीबों की कमजोर देह ठंड में कांपती रही। फिर भी कार्यकर्ताओं ने अपने राजाओं की सेवा में कोई कमी नहीं आने दी। राजाओं के इस लोकतांत्रिक युद्ध में कार्यकर्ता नंगे बदन ही अपनी चाम उधड़वाने के लिए दौड़ रहे थे। कार्यकर्ताओं ने चुनाव से पहले इनकी कोठियों में अपनी इज़्ज़त लुटवाई, बाद में चुनाची मैदान में अपने हाड़ तुड़वाए। राजा महल में सुख भोगता रहा और मैदान में स्वस्थ रहने के लिए हल्के-फुल्के व्यायाम कर वापस महल में लौट गया ताकि लुटे-पिटे कार्यकर्ताओं से अपने बदन की मालिश करवा सके।
यह मिसाल इसलिए क्योंकि जींद उपचुनाव लड़े सभी करोड़पति उम्मीदवार राजनैतिक घरानों के राजकुमार थे और आज जब वोटों की गिनती के दौरान मतगणना केंद्र के अंदर वे अपनी बाजुओं की ताकत नाप रहे थे, तो बाहर पुलिस जनता पर लाठियां भांजकर उनकी हड्डियों की मरम्मत कर रही थी। अपनी हड्डियों की मरम्मत करवाकर जनता ने उम्मीदवारों को मिली हार-जीत और वोटों के हिसाब से खुशी-गम बांट लिए और समय रहते जान बचाकर अपने घरों की ओर चलते बने। इस तरह लोकसभा चुनाव पूर्व हरियाणा की एक विधानसभा का उपचुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।