भयानक: कंप्यूटर में ‘प्लांट’ किये गये पत्र के आधार पर जेल में हैं भीमा कोरेगाँव के आरोपी!

अमेरिका की डिजिटल फोरेंसिक कंसल्टिंग कंपनी, अर्सेनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भीमा कोरेगाँव मामले में सबसे पहले गिरफ्तार किये गये रोना विल्सन के कंप्यूटर नेटवायर नाम के एक मालवेयर से इन्फेक्ट किया गया। 13 जून 2016 को को यह वायरस एक ईमेल के ज़रिये विल्सन के कंप्यूटर में डाला गया। दो साल बाद 6 जून 2018 को विल्सन की गिरफ्तारी हुई। अर्सेनल कंसल्टिंग की रिपोर्ट में कहा गया है कि हैकर ने विल्सन के कंप्यूटर में 52 दस्तावेज़ डाले गये। आख़िरी दस्तावेज़ 17, अप्रैल 2018 को विल्सन के घर में छापे और लैपटॉप को ज़ब्त करने के एक दिन पहले डाला गया।

ख़बरदार….सावधान…होशियार ! सरकार के ख़िलाफ़ बोलने से पहले सौ बार सोचिये, वरना अचानक प्रधानमंत्री की हत्या से लेकर देश तोड़ने तक की साज़िश रचने के आरोप में जेल भेजे जा सकते हैं। इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप इसके बारे में सपने में भी नहीं सोचते। साज़िश की कहानी आपके लैपटॉप से ही निकलेगी। दूर बैठा कोई हैकर ऐसे दस्तावेज़ बनाकर आपके कंप्यूटर में डाल सकता है जिसमें पूरी साज़िश की कहानी आपके नाम से ही किसी को भेजी गयी होगी। फिर पुलिस का छापा पड़ेगा और आपको इसी दस्तावेज़ के आधार पर गिरफ्तार कर लिया जायेगा।

न! ये कोई फ़िल्मी कहानी नहीं है! भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में जेल में बंद देश के तमाम नामी बुद्धिजीवी और नागरिक कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा ही हुआ है। कम से इस मामले की जाँच करने वाली अमेरिका के डिजिटल फ़ोरेंसिंग कंपनी अर्सेनल की जाँच से ऐसा ही नतीजा आया है। भीमा कोरेगांव मामले में सबसे पहले गिरफ्तार किए गये रिसर्चर रोना विल्सन ने इसी आधार पर बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर मांग की कि उनके कंप्यूटर में फर्जी या बनावटी दस्तावेज़ डालने के मामले में एसआईटी जाँच करायी जाये।

दरअसल, विल्सन और पंद्रह अन्य नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर यूएपीए के तहत कार्रवाई हुई है। इसका आधार रोना विल्सन और सह अभियुक्त सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर में ऐसे पत्र की बरामदगी बतायी गयी है जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या और सरकार को उखाड़ फेंके की साज़िश लिखी हुई थी।

विल्सन इस याचिका का आधार अमेरिका की डिजिटल फोरेंसिक कंसल्टिंग कंपनी अर्सेनल की रिपोर्ट है जिसमें कहा गया है कि विल्सन के कंप्यूटर नेटवायर नाम के एक मालवेयर से इन्फेक्ट किया गया। 13 जून 2016 को को यह वायरस एक ईमेल के ज़रिये विल्सन के कंप्यूटर में डाला गया। दो साल बाद 6 जून 2018 को विल्सन की गिरफ्तारी हुई। अर्सेनल कंसल्टिंग की रिपोर्ट में कहा गया है कि हैकर ने विल्सन के कंप्यूटर में 52 दस्तावेज़ डाले । आख़िरी दस्तावेज़ 17, अप्रैल 2018 को विल्सन के घर में छापे और लैपटॉप को ज़ब्त करने के एक दिन पहले डाला गया। कंपनी ने इस संदर्भ में ट्विटर पर एक बयान भी जारी किया है।

 

अर्सेनल ने 52 में से 10 दस्तावेज़ों की जाँच की है। चार्जशीट के एक साल बाद नवंबर 2019 में हार्ड ड्राइव की क्लोन कॉपी उसे दी गयी थी। अर्सेनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दस्तावेज़ों में छेड़छाड़ का यह सबसे गंभीर मामला है जिसकी उसने जाँच की है। अर्सेनल की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कथित रूप से ख़तरनाक दस्तावेज़ जिस फोल्डर में मिला है उसे विल्सन ने कभी खोला तक नहीं था। हैकर ने इन दस्तावेज़ों को कंप्यूटर में डाल दिया था।

रोना विल्सन ने इस रिपोर्ट के आधार पर बांबे हाईकोर्ट से भीमा कोरेगांव मामले में तमाम नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और लेखकों के ख़िलाफ़ जारी मुकदमे की कार्यवाही रोकने की माँग की है।

विल्सन ने नकली दस्तावेज़ों को कंप्यूटर में डालने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के साथ फर्जी मामला बनाकर जेल भेजे गये लोगों को मुआवज़ा देने की भी माँग की है। उन्होंने कहा है कि पूरे मामले की जाँच के लिए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में, डिजिटल एक स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम का गठन किय जाये ताकि असल दोषियों का पता लगाया जा सके।

भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में ज्योति राघोबा जगताप, सागर तत्याराम गोरखे, रमेश मुरलीधर गयचोर, सुधीर दलवे, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, रोना विल्सन, अरुण फ़रेरा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, , वरनन गोन्साल्विज़, आनंद तेलतुम्बडे, गौतम नौलखा हैनी बाबू और फादर स्टेन स्वामी जेल में बंद हैं। इनमें से ज्यादातर का नाम 2017 की मूल एफआईआर में था भी नहीं।

इन सबकी एक पहचान ज़रूर है- नागरिक अधिकारों के पक्ष में लगातार आंदोलन चलाना और सरकार की आँख की किरकिरी बने रहना। तो क्या उन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इसी की सज़ा दी जा रही है।

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