भारतीय अमेरिकियों ने चुनाव नतीजों को अधिनायकवाद और धार्मिक वर्चस्ववाद पर चोट बताया

नतीजों से झटका खाने के बावजूद बीजेपी और आरएसएस ने अपने पाँव पीछे नहीं खीचे हैं। चुनाव परिणाम के बाद कुछ ही हफ्तों में, छत्तीसगढ़ राज्य में तीन मुस्लिमों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई है; मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सामूहिक दंड के रूप में मुसलमानों के स्वामित्व वाले घरों को ढहा दिया गया।

भारतीय के हालिया आम चुनाव के परिणामों पर दुनिया भर के मानवाधिकारवादी संगठनों ने राहत की साँस ली है। भारतीय अमेरिकियों के सबसे बड़े एडवोकेसी संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) ने इस चुनाव नतीजे का स्वागत किया है जिसे वाशिंगटन पोस्ट ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदू वर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी के लिएआश्चर्यजनक झटकाकहा है।

जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अभी भी संसद में कई सीटें जीती हैं, 2014 में सत्ता में आने के बाद पहली बार उसने अपना बहुमत खो दिया है, हालांकि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे: कई विपक्षी राजनेताओं को चुनाव से पहले जेल में डाल दिया गया था, कांग्रेस पार्टी के बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए, मुस्लिम मतदाताओं को वोट देने से रोकने की कोशिश हुई और मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए मोदी सहित भाजपा नेतृत्व द्वारा बड़े पैमाने पर मुस्लिम विरोधी नफ़रती भाषण दिये गये।

ऐसी बाधाओं के बावजूद मिले महत्वपूर्ण चुनावी लाभ के बाद विपक्षी दलों के पास अब हिंदुत्व वर्चस्ववाद और उसके समर्थकों द्वारा अल्पसंख्यकों पर जारी हिंसा के ख़िलाफ़ एक मजबूत रुख अपनाने का अवसर है। 

आईएएमसी अध्यक्ष मोहम्मद जवाद ने कहा,यह चुनाव इस बात का प्रमाण है कि सभी भारतीय हिंदू राष्ट्र नहीं चाहते हैं। भाजपा के पीछे उच्च जाति के वोटों की महत्वपूर्ण एकजुटत के बावजूद, अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के सदस्य सर्वोच्चतावादी और सत्तावादी शासन के खिलाफ वोट करने के लिए एकजुट हुए। मतदान प्रतिशत नफ़रती और दमनकारी हिंदू वर्चस्ववादी विचारधारा की अस्वीकृति को दर्शाता है।

अब जिम्मेदारी विपक्षी दलों पर आती है कि वे इस विचारधारा के खतरे का सक्रिय रूप से मुकाबला करें। उनके लिए उन रणनीतियों को लागू करना महत्वपूर्ण है जो समावेशिता और सहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं और उस जनता को कट्टरपंथ से मुक्त करने के प्रयासों में शामिल होते हैं जो मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों की पीड़ा के प्रति बेहद असंवेदनशील हो गई है। यह सिर्फ एक राजनीतिक चुनौती नहीं है, बल्कि सभी के लिए एक न्यायसंगत और समतामूलक समाज सुनिश्चित करने की नैतिक अनिवार्यता है”, मो. जवाद ने कहा।

हालाँकि नतीजों से झटका खाने के बावजूद बीजेपी और आरएसएस ने अपने पाँव पीछे नहीं खीचे हैं। चुनाव परिणाम के बाद कुछ ही हफ्तों में, छत्तीसगढ़ राज्य में तीन मुस्लिमों की पीटपीट कर हत्या कर दी गई है; मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सामूहिक दंड के रूप में मुसलमानों के स्वामित्व वाले घरों को ढहा दिया गया है, और हिंदुत्ववादी भीड़ ने ईदउलअजहा से पहले दंगे किये और तेलंगाना में मुसलमानों के जीवन को खतरे में डाल दिया है। स्कूली पाठ्यपुस्तकों से बाबरी मस्जिद का जिक्र हटा दिया गया है। लेखिका अरुंधति रॉय और डॉ. शौकत हुसैन शेख पर कश्मीर पर उनकी 2010 की टिप्पणियों के लिए कठोर आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाने का फ़ैसला किया गया है। इस बीच, हिंदू वर्चस्ववादी नेता लगातार मुस्लिम विरोधी हिंसा और भेदभाव का आह्वान करते रहते हैं। 

आईएएमसी के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा, “हम उम्मीद का जश्न मनाते हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है। एक दशक से, मुस्लिम परिवारों ने भयावह भीड़ द्वारा अपने प्रियजनों को खो दिया है, अपने हत्यारों और बलात्कारियों को हिंदू दक्षिणपंथियों द्वारा जश्न मनाते देखा है, अपने घरों को अपनी आंखों के सामने बुलडोजर से ढहते देखा है, हिंदू त्योहारों को हथियारबंद होते देखा है और भेदभावपूर्ण नीतियों और लोकतांत्रिक संस्थानों पर पूर्ण क़ब्ज़े के साथसाथ अपनी निर्मम हत्या के आह्वान का सामना किया है। लोकतंत्र ख़तरे में है और हिंसा लगातार जारी है, जिसका अंत होना चाहिए।

भारत को वास्तव में आगे बढ़ने के लिए, हिंदू वर्चस्व को पूरी तरह से खारिज करना होगा और इसके पीड़ितों को न्याय देना होगा। अल्पसंख्यक विरोधी नफरत फैलाने वालों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। सरकार, मीडिया, स्कूलों और सोशल मीडिया के हर स्तर से हिंदू वर्चस्व को खत्म किया जाना चाहिए। इसे समझदारी, भाईचारे और प्यार से बदला जाना चाहिए,” अहमद ने कहा।

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