तो सिंहल द्वीप की राजकुमारी पद्मिनी की जन्म-कथा यह है !

कुलदीप कुमार

पद्मावती के चरित्र को इसके साहित्यिक महत्त्व की रौशनी में देखा जाना चाहिए और किसी हाल में किसी ऐतिहासिक व्यक्ति से जोड़कर भ्रम नहीं फैलाया जाना चाहिए।

कला, साहित्य, पेंटिंग, फिल्म या अन्य कलाओं को कैसे समझा और व्याख्यायित किया जाना चाहिए?

इस बारे में हम निश्चित तौर पर नहीं जानते कि निर्देशक संजय लीला भंसाली ने पद्मावती बनाते हुए किस तरह की कलात्मक छूटें ली हैं, लेकिन यह बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि पद्मावती कोई ऐतिहासिक चरित्र नहीं है। वह मलिक मोहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत की केंद्रीय चरित्र है जो सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की निवासी है, चित्तौड़ के राजा रतन सेन से उसकी शादी हुई है जिनहोने उसके अनुपम सौंदर्य से वशीभूत हो उसे हासिल करने के लिए बहुत मुश्किलात झेलीं। जायसी एक सूफी कवि थे जो जायस (अब उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में) मे बस गए थे क्योंकि यह क्षेत्र उस दौर मे चिश्ती सिलसिले के सूफियों का बड़ा केंद्र बना हुआ था।  ‘पद्मावत’ सूफी रहस्यवाद की परंपरा की के प्रेम काव्य के रूप में प्रतिष्ठित है और रतन सेन को आत्मा के उस प्रतीक के रूप में माना जाता है जो दैवीय, लौकिक प्रेमिका के साथ एकाकार होने के लिए व्याकुल है। वे ऐतिहासिक चरित्र नहीं है हालांकि जायसी ने सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी जैसे कुछ ऐतिहासिक चरित्रों का खलनायक के रूप मे समावेश किया है। यह सच है कि खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था और इसके राजपूत राजा को परास्त किया था लेकिन समकालीन ऐतिहासिक दस्तावेज़ न तो रतन सेन का ज़िक्र करते हैं न ही पद्मावती का। पद्मावती को स्त्री के पारंपरिक भारतीय वर्गीकरण पद्मिनी,चित्राणी, शंखिनी और हस्तिनी के अनुसार पद्मिनी के नाम से भी संबोधित किया जाता है – इस वर्गीकरण मे पद्मिनी सबसे सुंदर, सबसे चरित्रवान और सबसे आदर्श होती हैं।

सौंदर्य का प्रतिनिधित्व

चूंकि पद्मावती दैवी सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करती है, वह पद्मिनी है और जो भी उसे देखता है उसके दैवी प्रभाव मे आ जाता है।

जायसी ने अपना रहस्यात्मक प्रेम महाकाव्य 1521 ईस्वी मे शुरू किया और यह 1540 ईस्वी मे किसी समय पूर्ण हुआ। हालाँकि यह हिन्दी के स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रमों में शामिल रहा लेकिन शायद ही कभी यह बताया गया कि जायसी ने इसे फारसी मे लिखा था और बाद मे इसकी कई पांडुलिपियाँ अरबी और कैथी लिपि में भी पाई गईं।  जब तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ लिखना शुरू किया तो उन्होंने ‘पद्मावत’ को आदर्श बनाया और वही दोहा-चौपाई संरचना अपनाई जो इसमें थी। अंतर केवल भाषा में था। जबकि जायसी की अवधी में बोलचाल का पूरा जायका था तुलसीदास ने अपनी काव्यात्मक भाषा गढ़ी जिसमें संस्कृत शब्दों का सबसे न्यायसंगत और रचनात्मक उपयोग था और उन्हें इतनी खूबसूरती से अवधी के साथ बरता गया कि वे कहीं से बाहरी नहीं लगते।

हिन्दी साहित्य आलोचना और इतिहास लेखन के शिखर पुरुष रामचन्द्र शुक्ल ने पद्मावत का एक आलोचनात्मक संस्करण तैयार किया जो 1924 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित किया गया। 1952 में प्रसिद्ध हिन्दी विद्वान माता प्रसाद गुप्त ने एक और आलोचनात्मक संस्करण तैयार किया जो हिन्दुस्तानी अकादमी, प्रयाग द्वारा प्रकाशित किया गया। लगभग उसी समय प्रसिद्ध हिन्दी कवि मैथिली शरण गुप्त ने प्रतिष्ठित कला इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता और संस्कृति समीक्षक वसुदेव शरण अग्रवाल से एक नया आलोचनात्मक संस्करण तैयार करने के लिए कहा। ‘पद्मावत : मलिक मोहम्मद जायसी कृत महाकाव्य (मूल और संजीवनी व्याख्या)’ के शीर्षक से यह 1955 मे प्रकाशित हुआ तथा गुप्त जी के छोटे से प्रकाशन साहित्य सदन, झाँसी के लिए इसका वितरण लोकभारती प्रकाशन द्वारा किया गया। यह अबतक का सबसे अच्छा आलोचनात्मक संस्करण और टीका है

 

कविताओं का नामकरण

जैसा कि महान हिन्दी विद्वान हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने इंगित किया है, लोकगाथाओं पर आधारित ऐसे प्रेम काव्यों की एक लंबी परंपरा है। उनमें से अधिकांश का नाम उनकी नायिकाओं के आधार पर रखा गया है जैसे ‘रत्नावली’, ‘पद्मावती’, ‘वासवदत्ता’ और ‘कुवलयमाला।’  नौवीं सदी में कौतूहल ने ‘लीलावती’ नामक एक लंबी कविता प्राकृत में लिखी जबकि मयूर ने दसवीं सदी मे ‘पद्मावती कथा’ नामक काव्य रचना की। पृथ्वीराज रासो में हम पृथ्वीराज की पद्मावती, हंसावती और इंद्रावती आदि से विवाह की कथा पाते हैं। द्विवेदी जी के अनुसार जायसी के पद्मावत महाकाव्य लिखने का इरादा करने से कई सदियों पहले से ही पद्मावती की कथा प्रचालन में थी। वह मौलाना दाऊद जैसे सूफी कवियों की परंपरा मे आते हैं जिनहोने 1371 ईस्वी से 1379 ईस्वी के बीच रायबरेली के डालमऊ क़स्बे में ‘चंदायन’ नामक प्रेम काव्य की रचना की। इसकी नायिका चन्दा भी सबसे सुंदर और सुयोग्य पद्मिनी श्रेणी की महिला है।

पद्मावत में, ब्राहम्ण राघव चेतन और चित्तौड़ के पड़ोसी राज्य कुंभलमेर के शासक क्षत्रिय देवपाल अलाउद्दीन खिलजी से भी अधिक खलनायक की भूमिका मे दीखते हैं। रतनसेन की अनुपस्थिति में देवपाल पद्मावती को विवाह का प्रस्ताव देता है और उस पर दबाव बनाने की कोशिश करता है जिसके चलते उसमें और रतन सेन मे युद्ध होता है। जायसी जैसे सूफ़ी कवि प्राकृत और अपभ्रंश के प्राचीन काव्यात्मक रचनाओं के साहित्यिक सिद्धांतों और विषयों से परिचित थे और अपनी महाकाव्यात्मक रचनाओं के रहस्यात्मक अवयवों को अलंकृत करने के लिए उनका रचनात्मक उपयोग किया। पद्मावती के चरित्र को इसके साहित्यिक महत्त्व की रौशनी में देखा जाना चाहिए और किसी ऐतिहासिक चरित्र से भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।

 

स्वतंत्र पत्रकार कुलदीप कुमार का यह लेख 17 नवंबर 2017 को ‘द हिंदू ‘के हिंदी बेल्ट स्तम्भ में छपा।  अनुवाद  कवि, लेखक अशोक कुमार पाण्डेय  (चित्र ) का है।

लेख के बीच पद्मावत की पाण्डुलिपि और पद्मावती के चित्र का स्रोत स्क्रोल है। आभार सहित प्रकाशित।

 



 

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