गिरीश मालवीय
देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी सीएजी ने रॉफेल सौदे पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंप दी है। दो भागों में यह रिपोर्ट संसद में पेश की जाएगी। रॉफेल को लेकर विवाद बहुत बढ़ चुका है तो क्या कैग की यह रिपोर्ट उन सवालों का जवाब देगी जिन सवालों को लेकर मोदी सरकार कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही हैं?
इसका बात का जवाब ढूंढने से पहले हमें यह मालूम होना चाहिए कि कैग की यह रिपोर्ट लिखी किसने है? न्यायशास्त्र में लैटिन का एक ध्येय वाक्य पढ़ाया जाता है जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति अपने ही मुकदमे में जज नही हो सकता।
वर्तमान कैग के पद पर आसीन राजीव महर्षि 2014-15 के बीच वित्त सचिव थे और राफेल वार्ता का एक हिस्सा थे, इसलिए राफेल सौदे के ऑडिट से जुड़ा हुआ होना उनके लिए ग़लत है लेकिन जब चहुँओर सवैधानिक नियम कानूनो की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं तब इस बात को कौन पूछता है?
सवैधानिक संस्थाओं/नोकरशाही को मोदी सरकार ने गुलाम वंश की तासीर में जिस तरह से बदला है उसी का एक प्रतीक चेहरा हैं राजीव महर्षि, जो हमारे नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक हैं। महर्षि को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेहद करीबी माना जाता है। बताया जा रहा है कि इसी कारण उन्हें केंद्रीय गृह सचिव के पद से रिटायर होते ही कैग पद पर नियुक्ति दे दी गई थी।
ओर कमाल की बात तो यह हैं कि उनकी केंद्रीय गृह सचिव की नियुक्ति भी उस हालात में की गयी थी जब तीन अफसर सिर्फ सात महीने में इस महत्वपूर्ण पद से हटाए गए थे ओर उसके बाद महर्षि साहब ने आगे आकर मोदी सरकार के मन मुताबिक कार्य किया, जब वह इस पद से भी रिटायर होने वाले थे तब अचानक और आश्चर्यजनक रूप से नरेंद्र मोदी की सरकार ने उन्हें कैग के रूप में नियुक्त किया।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि राजीव महर्षि ओर उनकी पत्नी मीरा महर्षि पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप होने के बावजूद उनकी देश के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति की गयी!
राजीव महर्षि और उनकी पत्नी पूर्व आईएएस मीरा महर्षि पर जयपुर में एक ज़मीन के खरीद फरोख्त में कथित जालसाजी और इसी दौरान टैक्स चोरी करने का आरोप लगे थे राजीव महर्षि और उनकी आईएएस पत्नी मीरा महर्षि ने वर्ष 2006 में जयपुर के आमेर जिले में करीब 10 बीघा जमीन 25 लाख रुपये में खरीदी, जिसमें नाले की जमीन भी शामिल थी। जबकि कायदे से नदी-नाले की जमीन नहीं बेची जा सकती। खरीदी गई ज़मीन की कीमत बढ़ाने की नियत से दंपत्ति ने जेडीए में भूमि का समर्पण नामा, प्रार्थना पत्र, शपथ पत्र और क्षतिपूर्ति बंध पत्र पेश कर उसे कृषि से गैर कृषि प्रयोजनार्थ बदलवा लिया, पद का दुरूपयोग करते हुए उन्होंने आयकर बचाने के लिए अधिकारियों के तबादले तक कर डाले।
जिस वक्त उन्होंने यह सारे कार्य किये उस समय राजीव महर्षि राजस्थान के मुख्य सचिव थे।
राजीव महर्षि जैसे ही कैग बने उन्होंने अपना सारा ध्यान मोदी सरकार के गलत निर्णयों के बचाव में लगाया। इस स्थिति से क्षुब्ध होकर 60 आला रिटायर नौकरशाहों, कूटनीतिज्ञों ने पत्र लिख कर राजीव महर्षि के व्यवहार पर कड़ी आपत्ति उठाई थी।
उनसे पूर्व सीएजी रहे शशिकांत शर्मा ने नोटबंदी के बाद नए नोटों की प्रिंटिंग के खर्चें, रिर्जव बैंक के लाभांश और बैंकों के खर्च की व्यय ऑडिटिंग की बात उठाई थी और कर वंचकों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई आदि में आय कर विभाग के एक्शन को जांचने के लिए भी कहा था लेकिन नए सीएजी राजीव महर्षि नोटबन्दी के उस महत्वपूर्ण उस समीक्षा-ऑडिट पर कुंडली मारकर बैठ गए।
दरअसल किसी भी देश का लोकतंत्र, चेक-बैलेंस के सिद्धांत और उस देश की सवैधानिक संस्थाओं की मजबूती के बिना फलता-फूलता नहीं है ओर हमारे यहाँ हर शाख पर उल्लू बैठे हैं तो खुद ही समझ जाइए कि ‘अंजाम-ए-गुलिस्तां’ क्या होगा !
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।