दास मलूका
जगह……उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से तकरीबन तीस किलोमीटर दूर फोर लेन सड़क से सटा एक सेकेंड क्लास कस्बा।
वक्त……सुबह 10 बजे के बाद, जब जलेबी, कचौड़ी समोसे की डिमांड ख़त्म हो दुकानदार खलिहर हो और दुकान तकरीबन खाली पड़ी हो।
घटना.….चाय की दुकान पर खलिहरों की जुटान, इकलौते अखबार के अलग-अलग पन्नों का अलग-अलग वाचन और उन पर मुफ्त की विवेचना।
हैरत और हास्य के मिले जुले भाव से बंगाली बाबू ने पहले पन्ने से प्रियंका गांधी की ख़बर उठायी।
“मल्लब बताओ प्रियंका गांधी अजोध्या जी गयीं, मगर जन्म भूमि नहीं गयीं !”
इतना बोल कर उन्होंने पतली सी बेंच पर अपना चौड़ा पेंदा ठीक से जमाया और ‘इरशाद-इरशाद’ का इंतजार करने लगे।
जवाब आया
“काहें जाएं ? जब रामलला संघी हैं !”
संघी हैं ? ई कबसे यार ?
“अब तुम्हरे आंखे पर पर्दा है तो हम का करें…ऊ तो पैदे लिए ओनचास (1949) में। हमारी आजी जब तक अपने बल भर रहीं हर साल पैकरमा के लिए अजोध्या जी जाती थीं।“
तो आजी ने बताया कि रामलला संघी हैं !!?
“नाहीं यार, अब तुम हमारी लो मत….आजी हमारी 96 में उप्पर गयीं और 96 साल की होके गयीं। उनसे ज्यादा अजोध्या जी के बारे में कौन जानेगा भला ?
खलिहरों की सभा में इस तफसरे पर कौतूहल ज्यादा बढ़ा तो सवाल उछला-
“फिर हनुमान गढ़ी काहें गयी….हनुमान जी कांग्रेसी हैं !”
जवाब एक पिटे हुए पुराने समाजवादी ने दिया बायीं हथेली की आड़ में तीन बीड़ियां एक साथ सुलगा कर…
“नहीं ऊ बामपंथी हैं…..मतलब लेफ्ट….लेकिन कांग्रेस को पता है कि लेफ्ट अपनी फसल कांग्रेसे के लिए बोता है, तो कटइया के मौके पर वो आ जाते हैं । राहुल गांधी भी गए थे…लेकिन ऊ खाली मौका-मुआयना था…खेत का महीन खेल सोहनी, कटिया औरतें बेहतर करती हैं, तो मल्लब समझो बात को….”
“ल्यो बंगाली बाबू बीड़ी पकड़ो यार….असली ख़बर किसी ने देखी ही नहीं बकरोदी तमाम चल रही है…अरे जूते गए हजारन चोरी अउर कौनो बातै नहीं।“
“ऊ कहां ?”
“अरे प्रियंका के रोड शो में और कहां….यार समझो बात को !”
“हां गुरु, प्रियंका के रोड शो में तो जेबतरासी जम के भई। एक नेता सरवे का तो पैसे के साथ महिंगा वाला मोबाइल भी गया।“
अभी-अभी उसी ख़बर पर नज़र फेर रहे सज्जन ने अखबार मोड़ते हुए कुछ इस तरह कहा कि समझना मुश्किल था कि उन्हें प्रियंका के रोड शो में मौजूद न रहने का अफ़सोस है या राहत।
एक पचासे पे पहुंचते शख्स ने इसमें कुछ जुगुप्सा जन्य जोड़ कर झुरझुरी पैदा करने का प्रयास किया।
“गनीमत कहो प्रियंका के साथ सिकोर्टी रहती है । वर्ना अवधी साले चरम मुरहे हैं बहराइच में उनकी चाची के लुग्गे में खोद दिया था।“
इस पर किसी ने कहा हैं SSS….। किसी ने कहा भै SSS….। किसी ने हीहीही करके दांत निपोरे।
मगर ‘मेल मेनोपॉज़’ से गुज़रते बंगाली बाबू ने वितृष्णा भरे भावे से, पेंदे को करवट देकर वायु विमोचन किया और बुझी हुई बीड़ी बाईं और फेंक दी।
लेकिन अगला लगभग निर्विकार भाव से अपनी सूचना से सटा रहा-
“अरे तब जमाना दूसरा था। एतना सिकोर्टी थोड़ी थी ! तब मेनका गांधी बेचारी सास के खिलाफ़ अकेल्ले संघर्स कर रही थी।“
इस संवाद पर पिटे हुए पुराने समाजवादी ने पूरी गम्भीरता से जोड़ा
“आचार नरेन्दर देव हों, लोहिया हों, जयपरकास हों, सबने एक्कै बात कही है जिसका निचोड़ ये है कि संघर्स ही सियासत है और सियासत ही संघर्स है….संसद का रास्ता सड़क से ही जाएगा।“
प्रियंका की अयोध्या यात्रा की विवेचना का विसर्जन होता उससे पहले ही पिछली बेंच से आवाज़ उठी
“अरे ! ल्यो जूता किंग का टिकट कट गया।“
“कउन जूता किंग यार ?”
“अरे वही ख़लीलाबाद वाला सरद तिरपाठी यार। जोगी को जूता नहीं मारा था जिसने!”
“योगी को नहीं उनके चेले को मारा था यार !” सूचना में संशोधन आया।
“अरे हां वही चेले को मारा….तो जोगिए को न मारा। लोग कह रहे थे कि एक-एक जूता बेचारे जोगी के गंजे खल्वाट पर गिर रहा था।“
“अरे तो अब भी गिर ही रहा है। सरद तिरपठिया का काट के उसके बाप को दिया तो फिर काटा क्या ?”
दुकान मालिक ने चार दिन के बासी शकरपारे से भुनगे उड़ाते हुए गहरी सांस छोड़ी-
“समझे नहीं आ रहा कि कउन ले रहा है, और कउन दे रहा है।”
जवाब में बंगाली बाबू ने उठते हुए कांख कर कमर सीधी की और बोले-
“वही ले रहा है और वही दे रहा है।”
शाखा बाबू को खलिहरों के इस अखाड़े का पता मालूम है। वो भी कभी-कभी इधर का रुख़ करते हैं। कभी लेने के लिए-कभी देने के लिए !
“एक ख़बर तो अख़बार में छपी नहीं होगी ?”
पिटे हुए समाजवादी ने थूकते हुए कहा।
“जो नहीं छपता उसी के लिए तो आप हो…बताओ बताओ !”
सीधे-सादे शाखा बाबू इस वाक्य का समाजवादी मर्म समझ ही नहीं पाए। उन्होने बिना छपी ख़बर जारी रखी।
“अरे गोरखपुर वाला निसदवा जोगी जी से मिल गया। अब NDA से लड़ेगी निषाद पार्टी….इसी के दम पर कूद रहे थे बुआ-बबुआ”
प्रतिवाद आया…..
“जोगी जी से मिल नहीं गया ! गठबंधन से टिकट कट रहा था तो अउर का करता?”
लेकिन शाखा बाबू इसी में मगन थे कि देशद्रोहियों के पाले में गोल हो गया है।
दुकान वाले ने फिर शकरपारे से भुनगा उड़ाया
“समझे नहीं आ रहा कि कउन ले रहा है, और कउन दे रहा है।”