रवीश कुमार
रक्षा मंत्री बहुत दिनों तक रफाल के बारे में बोल नहीं सकीं। अब जब सब बोला जा चुका है तो तब मैदान में उतरीं हैं। अजीब अजीब तर्क दे रही हैं कि हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड के पास क्षमता नहीं थी कि 126 विमानों की मरम्मत या निर्माण के लिए। वो यह दावा करते वक्त भूल जाती हैं कि पब्लिक पूछ सकती है कि तो आपने इसलिए 126 से 36 रफाल का सौदा किया। तो क्या हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स के पास 36 विमानों के कलपुर्ज़े बनाने की क्षमता भी नहीं थी? इसलिए इसका काम एक नई कंपनी को मिल गया जिसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं थी?
रक्षा मंत्री का यह हिसाब-किताब ही रफाल सौदे को संदिग्ध कर देता है। तभी लगता है कि मोदी जी ने कुछ सोच कर वित्त मंत्री को ब्लाग लिखने को कहा होगा जिसका आधार बनाकर विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर ने लिखा होगा। एक दिन ऐसा ही चला तो सरकार के ये मंत्री जनता के बीच जाकर साबित कर देंगे कि अब आप लोग ख़ुद से समझन के लायक नहीं रहे। हम जो भी समझाएंगे, समझ जाते हैं।
रक्षा मंत्री निर्मला सीतरमण ने कहा है कि जेएनयू कैंपस के भीतर ऐसी शक्तियां थीं जो भारत के खिलाफ़ युद्ध छेड़ना चाहती हैं। ये शक्तियां छात्र संघ के निर्वाचित शक्तियों के साथ देखी गईं हैं। ये शक्तियां अपने पैम्फलेट और ब्रोशर में भारत विरोधी बातें लिखती हैं।
दो साल हो गए। 2016 में जो जे एन यू को लेकर विवाद हुआ था, उस मामले में चार्जशीट नहीं हुई है। सबूत नहीं था इसलिए जिनके नामों को लेकर विवाद हुआ, उन्हें ज़मानत मिल गई। वो चार्जशीट कहां है? दो साल क्यों लग गए?
जे एन यू के छात्र संघ चुनाव में सभी दलों के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार भाषण देते हैं। किसी के भाषण में ऐसा कुछ नहीं था जिसे आप भारत विरोधी ठहरा सकते हैं। आतंरिक सुरक्षा पर बोलने से पहले क्या रक्षा मंत्री ने गृहमंत्री से कोई सलाह ली थी? क्या उन्हें गृहमंत्रालय या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने बताया है या फिर उन्होंने कोई इनपुट इन्हें दिया है।
क्या वाकई देश की रक्षा मंत्री के पास इतनी फुर्सत है कि वे जेएनयू के छात्र संघ के चुनाव पर प्रेस कांफ्रेंस में टिप्पणी कर रही हैं? रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ही ऑफ रिकार्ड बता सकते हैं कि मंत्रालय में आज कल मंत्री कितना काम करते हैं और अधिकारी कितना काम करते हैं। आख़िर दूसरे मंत्रालय पर बोलने के लिए इन मंत्रियों के पास वक्त कहां से मिलता है? क्या इनके पास कोई काम नहीं है? तभी ये मंत्री लोग दिन दिन भर इसी ताक में रहते हैं कि कब प्रधानमंत्री अपने दोनों हैंडल से ट्विट करें ताकि ये लोग री-ट्विट करने के काम में लग जाएं।
इस सरकार के दौर में एक चीज़ आम हो गई है। फर्ज़ी मामलों में फंसा कर या फर्ज़ी तरीके से मामले को उठाकर टीवी के लिए डिबेट पैदा किया जाए ताकि हफ्ता भर गरमा गरम बहस हो। फिर उस मुद्दे को वहीं छोड़ कर दूसरे मुद्दे की तरफ निकल चला जाए। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का जिन्ना विवाद कहां गया। यह सरकार एक ढंग की यूनिवर्सिटी न तो बना सकी न चला सकी लेकिन जो पहले से है उसे ख़त्म करने पर तुली हुई है।
अगर रक्षा मंत्री को यूनिवर्सिटी में इतनी ही दिलचस्पी है तो जियो इंस्टीट्यूट पर ही एक प्रेस कांफ्रेंस कर दें। बहुत सी यूनिवर्सिटी में शिक्षक नहीं हैं। जो अस्थायी शिक्षक हैं उनका वेतन बहुत कम हैं। इन सब पर भी प्रेस कांफ्रेंस करें। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष अंकिव बसोया के सर्टिफिकेट पर ही बयान दे दें। क्या उसने जाली सर्टिफिकेट जमा किया है? थिरुवल्लुर यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक ने कहा है कि सर्टिफिकेट सही नहीं है। ये कौन सी गतिविधि है मंत्री जी? ये प्रो इंडिया है?
निर्मला जी को कोई याद दिलाए कि वे देश की रक्षा मंत्री हैं, जे एन यू की नहीं। पैम्फलेट का बहाना लेकर बता रही हैं कि एंटी इंडिया हैं। उनके पास कौन सा पैम्फलेट पहुंच रहा है जो देश के गृहमंत्री के पास नहीं पहुंच रहा है। आंतरिक सुरक्षा की फाइलें गृहमंत्री को जानी बंद हो गई है क्या? बताना चाहिए न कि जे एन यू से कितने लोगों को भारत विरोधी गतिविधियों में पकड़ा गया है? क्या उन्हें जे एन यू के छात्रों की देशभक्ति पर भरोसा नहीं हैं?
मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज़ के दरवाज़े सैंकड़ों लड़के लड़कियाँ परीक्षा पास कर दौड़ रहे हैं। परीक्षा पास किए हुए सात महीने हो गए लेकिन किसी को ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिला है। क्या ये छात्र हित नहीं है? रक्षा मंत्री इसी पर ध्यान दें तो कितनी वाहवाही मिलेगी।