वैज्ञानिकों की घोषणा: पृथ्वी ‘जलवायु आपातकाल’ का सामना कर रही है!

पर्यावरण को लेकर दुनिया को अब गंभीर रूप से कदम उठाने की जरुरत है. दुनिया भर के 11,000 से अधिक विशेषज्ञों ने आपातकालीन चेतावनी दी है. 153 देशों के 11 हजार से अधिक वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा कर दी है. इन वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जीवमंडल के संरक्षण के लिए तत्काल कड़े कदम उठाने की जरुरत है. इसके लिए ऊर्जा के स्रोत, भोजन पद्धति और प्रजनन दर में बदलाव की आवश्यकता है. वैज्ञानिकों ने ‘बायोसाइंस’ पत्रिका में मंगलवार, 5 नवंबर को प्रकाशित एक चेतावनी में लिखा है -“हम दुनिया भर के 11,000 से अधिक वैज्ञानिक हस्ताक्षरकर्ताओं के साथ, स्पष्ट रूप से घोषणा करते हैं कि ग्रह पृथ्वी एक जलवायु आपातकाल का सामना कर रही है.”

वैज्ञानिकों की इस रिसर्च का नेतृत्व करने वाले ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता विलियम रिपल और क्रिस्टोफर वुल्फ लिखते हैं, “वैश्विक जलवायु वार्ता के 40 सालों के बावजूद हमने अपना कारोबार उसी तरह से जारी रखा और इस विकट स्थिति को दूर करने में असफल रहे हैं.”

वैज्ञानिकों की टीम ने बीते 40 वर्षों में पर्यावरण / जलवायु परिवर्तन सम्बंधित बदलाव के आंकड़े एकत्र किये हैं, जिनमें जनसंख्या वृद्धि दर, मांस की खपत, काटे गए जंगल, ग्लेशियर पिघलना, समुद्र जल स्तर में वृद्धि जैसे आंकड़े शामिल हैं.

वैज्ञानिकों की इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता विलियम रिपल और क्रिस्टोफर वुल्फ लिखते हैं, ‘वैश्विक जलवायु वार्ता के 40 वर्षों के बाद भी हमने अपना कारोबार उसी तरह से जारी रखा है और इस विकट स्थिति को दूर करने में विफल रहे हैं. जलवायु संकट आ गया है और हमारी उम्मीदों से कहीं अधिक तेजी से यह बढ़ रहा है.’

उन्होंने पेरिस घोषणा पत्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के वक्तव्य को दुर्भाग्यपूर्ण कहा है. वहीं युवा पर्यावरण कार्ययकर्ता ग्रेटा की तारीफ़ की है और कहा है कि ग्रेटा ने उन्हें भी प्रेरित किया है. उन्होंने विशेष रूप से कहा है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर देने की जरुरत है.

दुनिया भर के 11,000 से अधिक विशेषज्ञों ने इस आपातकालीन घोषणा पर हस्ताक्षर किये हैं. इस घोषणा पर हस्ताक्षर करने वाले दुनिया के वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल से निपटने के लिए छह सुझाव दिए हैं. इनमें जीवाश्म ईंधन की जगह उर्जा के अक्षय स्रोतों का इस्तेमाल, मीथेन गैस जैसे प्रदूषकों का उत्सर्जन रोकना, पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, वनस्पति भोजन के इस्तेमाल व मांसाहार घटाना, कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था का विकास और जनसंख्या को कम करना शामिल है. उन्होंने सुझाव दिया कि पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिए हमें मानवीय कार्य करना होगा, क्योंकि हमारा एक ही घर है और वह सिर्फ पृथ्वी ही है.

वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए छह सुझावों में से एक मांसाहार छोड़ने की अपील भी है.वैज्ञानिकों ने दुनिया में लोगों से शाकाहार की तरफ बढ़ने का आग्रह करते हुए लोगों से ज्यादा से ज्यादा फल और सब्जी खाने को कहा है. इससे मीथेन और ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी आएगी. वैज्ञानिकों ने खाना भी कम से कम बर्बाद करने की अपील की है. रिपोर्ट के मुताबिक, करीब एक तिहाई खाना दुनिया में बर्बाद होता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते बड़े ग्लेशियर टूट सकते हैं, जो समुद्री यातायात प्रभावित करेंगे. असर कितना होगा, इस पर मोटा-मोटी कुछ कहना फिलहाल मुश्किल है.

ताप ऊर्जा, तूफानी बादलों के लिये ईंधन का काम करती है. आशंका है कि अगर तापमान बढ़ता रहा तो आकाश में बिजलियों की कड़कड़ाहट बढ़ जायेगी, जिसके चलते जंगली आग एक समस्या बन सकती है.निष्क्रिय अवस्था में पड़े ज्वालामुखी सक्रिय हो सकते हैं. ग्लेशियर पिघलने से पृथ्वी की भीतरी परत पर पड़ने वाला दबाव घटेगा, जिसका असर मैग्मा चेंबर पर पड़ेगा और ज्वालामुखियों की गतिविधियों में वृद्धि होगी.

शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी लोगों में गुस्सा बढ़ेगा. यहां तक कि हिंसा की प्रवृत्ति में भी इजाफा होगा. आपको न सिर्फ जल्दी गुस्सा आयेगा बल्कि इंसानों में एलर्जी की शिकायत भी बढ़ेगी. तापमान बढ़ने से मौसमी क्रियायें बदलेगी, पर्यावरण का रुख बदलेगा और बदले माहौल में ढलना इंसानों के लिये आसान नहीं होगा.

जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर समंदरों में दिखेगा. तापमान बढ़ने से जलस्तर बढ़ेगा साथ ही इनका अंधेरा और भी गहरा होगा. कई इलाकों में वार्षिक वर्षा के स्तर में भी वृद्धि होगी.

चालीस साल पहले 50 देशों के वैज्ञानिकों ने जिनेवा पर चर्चा की थी, जिसे उस समय “CO2-जलवायु समस्या” कहा गया था. उस समय जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के कारण 1979 के तेल संकट से निपटने में मदद मिली थी, किन्तु उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि ग्लोबल वार्मिंग आखिरकार प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती बन जाएगी.

अब, चार दशक बाद वैज्ञानिकों का एक बड़ा समूह जिसमें 11 वैज्ञानिक और विशेषज्ञ शामिल हैं,इनका कहना है कि जीवाश्म ईंधन को त्याग कर अक्षय ऊर्जा को अपनाने की जरुरत है.

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