हेलेना को मिला ईसा का सलीब

प्रकाश के रे 

जेरूसलम की महिमा भी… उसकी समस्या है.
– उम्बर्तो इको

करीब पांच सदियों के बाद जब 26 अक्टूबर, 2016 की रात ईसा मसीह की कब्र को खोला गया, तो वहां ऐसे कुछ सबूत मिले जिनके आधार पर यह दावे से कहा जा सकता था कि इस कब्र को पहली दफा सम्राट कॉन्सटेंटाइन के राज में उसकी माता महारानी हेलेना के निरीक्षण में खोजा गया था और उस कब्र के ऊपर और आसपास भव्य चर्च का निर्माण हुआ था.

होली सेपुखर चर्च ईसाई धर्म का पवित्रतम धर्मस्थल है. इस चर्च में ईसा मसीह को सलीब पर लटकाये जाने और दफन से पहले उनके शव को रखने की जगहें तथा कब्र हैं. अक्टूबर की उस रात जब कब्र पर रखी संगमरमर की पट्टी हटाई गई, तो उसके नीचे एक पुरानी मरमरी पट्टी और मिली जो टूटी हुई थी. उस पर सलीब उकेरा हुआ था और वह कब्र की चूनापत्थर की सतह के ठीक ऊपर रखा हुआ था. इसके गारे-चूने की जांच से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यह करीब 345 ईस्वी में यहां लगाया गया था. ऐतिहासिक मान्यता है कि 326 के आसपास इस कब्र को खोजा गया था.

ताजा खुदाई में जो संगमरमर की ऊपरी पट्टी मिली है, उसके बारे में मान्यता है कि उसे 1555 में कब्र के ऊपर रखा गया था, लेकिन वह उस जगह पर 1300 के मध्य से मौजूद रहा हो सकता है. यह मान्यता तीर्थयात्रियों के वर्णन पर आधारित है. नई खोज ने न सिर्फ हेलेना से संबंधित दावों को मजबूत किया, बल्कि यह भी साबित हुआ कि 1009 में पूरी तरह से तबाह हो गए चर्च में कब्र बचा रहा था. उस वर्ष 18 अक्टूबर को फातमी खलीफा अल-हकीम बि-अम्र अल्लाह ने फिलीस्तीन और मिस्र में ईसाइयों के अन्य धर्मस्थलों के साथ इस चर्च को तबाह करने का आदेश दिया था. बहरहाल, एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि अक्टूबर की उस रात ईसा मसीह की कब्र मानी जाने वाली जगह की पहली बार तस्वीरें ली गईं. तब से पहले उस जगह का कोई रेखाचित्र भी उपलब्ध नहीं था. यह भी ध्यान रहे कि उन्नीसवीं सदी में एक कब्र और खोजी गई जिसके बारे में कुछ ईसाई दावा करते हैं कि यह ईसा की कब्र हो सकती है. इसे गार्डेन टूंब कहते हैं. यह भी एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है.

जेरूसलम में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों की खोज और मरम्मत का काम निरंतर चलता रहता है. ये काम न सिर्फ धार्मिकता और राजनीति के दावे को पुष्ट करने के काम आते हैं, बल्कि धार्मिक ग्रंथों और विभिन्न आख्यानों में उल्लिखित स्थानों के पाए जाने की संतुष्टि का कारण भी बनते हैं. इस नाते मोन्टेफियोरे ने हेलेना को सही ही पहला पुरातत्वविद कहा है. उस समय के ऐतिहासिक आख्यान बताते हैं कि सम्राट को जीसस के सलीब पर लटकाये जाने और उन्हें दफन किये जाने की जगहों की जानकारी थी. वे जगहें हैड्रियन के बनाये मंदिर के नीचे थीं. उसने उस मंदिर और वहां लगीं रोमन देवी-देवताओं की मूर्तियों को ध्वस्त कर ईसा के कब्र की खोज का आदेश दिया जिस पर दुनिया का सबसे सुंदर चर्च बनाया जाना था. एक स्थानीय यहूदी, जो शायद ईसाई था, द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों के आधार पर कब्र को खोजा गया तथा प्रतिबद्ध हेलेना ने सलीब पर लटकाने की जगह को भी खोज निकाला और उस सलीब को भी पाया जो उसके बाद से ईसाई धर्म का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया जिसे ‘जीवनदाता वृक्ष’ कह कर सम्मान दिया जाता है.

जैसा कि मोन्टेफियोरे ने रेखांकित किया है, हेलेना के जैसी सफलता आज तक किसी भी पुरातत्वविद को नहीं मिल सकी है. हेलेना को तीन सलीब, ‘नाजरेथ का जीसस, यहूदियों का राजा’ लिखी लकड़ी की पट्टी और कीलें मिलीं. अब मसला यह था कि तीनों में से वह सलीब कौन सा है जिसे जीसस ने ढोया और जिस पर उन्हें कीलों से बींध कर टांगा गया. कहते हैं कि इलिया के बिशप मकारियस और हेलेना तीनों सलीबों को लेकर एक मरणासन्न स्त्री के पास गए. जैसे ही एक सलीब को उसके सिरहाने रखा गया, उसने आंखें खोल दी और स्वस्थ व्यक्ति की तरह बिस्तर से उठ खड़ी हुई. उस पवित्र सलीब के एक हिस्से को कीलों के साथ हेलेना ने पुत्र के पास भिजवा दिया.

करेन आर्मस्ट्रॉन्ग लिखती हैं कि तत्कालीन विवरण सलीब की खोज पर खामोश हैं और उस समय के वृतांत को विस्तार से लिखने वाले यूसेबियस ने भी कुछ नहीं लिखा है. बहरहाल, चौथी सदी की समाप्ति तक सलीब जेरूसलम का एक अहम प्रतीक बन चुका था और उसके हिस्से पूरी ईसाई दुनिया में भेजे गए. इस घटना से पहले जेरूसलम ईसाई तीर्थाटन का कोई विशेष गंतव्य न था, परंतु ईसा के मकबरे की खोज के बाद से ईसाई तीर्थयात्रियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया. वर्ष 333 में ऐसी यात्रा पर आए बोर्दिऊ के अनाम यात्री के विवरण से अंदाजा मिलता है कि यात्रियों के लिए ऐतिहासिक इमारतें, जगहें और इलाके खास आकर्षण के केंद्र न थे तथा उनका पूरा ध्यान बाइबल से संबद्ध घटनाओं की जगहों पर था. आर्मस्ट्रॉन्ग का अनुमान है कि उसका गाइड कोई यहूदी रहा होगा क्योंकि बहुत सी जगह बाइबल के उस हिस्से से जुड़ी हैं जिन्हें ईसाई ओल्ड टेस्टामेंट कहते हैं. इस यात्री को जीसस के बचपन से भी कोई मतलब नहीं दिखता है और वह सीधे जेरूसलम पहुंचता है. वहां कुछ समय के लिए टेम्पल माउंट पर रुकता है तथा बहुदेववादियों के कर्मकांडों का जिक्र करता है. यह उल्लेखनीय है कि 70 में यहूदियों के पवित्र मंदिर के नष्ट होने के बाद हमें पहली बार वहां का विवरण मिलता है जो कि अब एक भुतहा जगह बन चुका था.

 

यह यात्री लिखता है कि यहां एक पत्थर का हिस्सा है जिसे यहूदी साल में एक बार आकर पूजते हैं और मंदिर का शोक मनाते हैं. अब यह वही पत्थर है जो मुस्लिमों के बनाये सुनहले गुम्बद के नीचे है या कोई और- कहा नहीं जा सकता है. इसका उल्लेख बाइबल में भी नहीं है. आर्मस्ट्रॉंग कहती हैं कि चूंकि यहूदियों के कर्मकांड को इस तीर्थयात्री ने अपनी आंखों से नहीं देखा था, तो हो सकता है कि वह कुछ गलतबयानी कर रहा हो. बहरहाल उस टेम्पल माउंट पर ईसाई अपना दावा करना शुरू कर चुके थे. यह यात्री बताता है कि एक चबूतरे के कोने पर एक प्रतीक बना हुआ था जिसे वह मंदिर का शीर्ष बताता है जहां शैतान ने जीसस को भ्रमित करने की कोशिश की थी. इसी तरह वह अन्य जगहों की यात्रा कर ईसा की मौत की जगह पहुंचता है जहां विशाल चर्च बनाने का काम जारी था जो कि सितंबर, 335 में पूरा हुआ था. इस चर्च और अन्य ईसाई इमारतों के जरिये नया जेरूसलम बन रहा था जो यहूदी जेरूसलम और रोमन इलिया से अलहदा था. पर टेम्पल माउंट पर हैड्रियन की मूर्ति अभी भी सलामत थी और रोमन साम्राज्य पूरी तरह से ईसाई नहीं हुआ था. हालांकि अब जेरूसलम ईसाई धर्म के पवित्रतम शहर के रूप में स्थापित हो चुका था. ईसा की मौत के तीन सौ साल बाद इस धर्म को जेरूसलम के रूप में एक भौगोलिक केंद्र, सलीब के रूप में धार्मिक प्रतीक और रोमन सम्राट के रूप में एक ताकतवर संरक्षक मिला गया था.

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं क़िस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 


(जारी) 

Cover Photo : Rabiul Islam

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