चुनाव चर्चा : मिज़ोरम विधानसभा चुनाव के बीच भाजपाई राष्ट्रवाद में स्वप्नदोष का सवाल !

चंद्र प्रकाश झा 


पूर्वोत्तर भारत को ‘कांग्रेस मुक्त’ करने के भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) की चुनावी स्वप्नपूर्ति में मिजोरम बड़ी अड़चन है। राज्य की 8वीं विधान सभा के चुनाव के लिए 28 नवम्बर को वोटिंग होगी। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के साथ नवम्बर-दिसंबर 2018 में मिजोरम में भी हो रहे चुनाव जोरों पर है। वहाँ कांग्रेस की सरकार दस बरस से काबिज़ है. भाजपा  पूर्वोत्तर भारत के सिर्फ दो राज्यों- सिक्किम और मिजोरम में सत्ता से बाहर है। पूर्वोत्तर के 8 राज्यों में से असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भाजपा की सरकार है। अन्य दो राज्यों- नागालैंड और मेघालय की गठबंधन सरकार में भाजपा साझीदार है। सिक्किम में न भाजपा, न ही कांग्रेस ‘ सिक्किम  डेमोक्रेटिक फ्रंट’ की सरकार है। मिजोरम में दो नवम्बर को चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद खड़े प्रत्याशियों की साफ तस्वीर 14 नवम्बर को पर्चे वापस लेने की अंतिम तारीख खत्म होने के बाद मिलेगी। कुल 40 सीटों के लिए खड़े प्रत्याशियों की चुनावी तकदीर का फैसला 3.9 लाख महिला समेत 7.68 लाख मतदाता करेंगे। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से वोट डालने के लिए 1164 पोलिंग स्टेशन बनाये गये हैं। पाँचों राज्यों में मतगणना 11 दिसंबर को होगी। उसी दोपहर बाद तक सभी परिणाम मिल जाने की आशा है।

आम शिकायत है कि पारम्परिक प्रिंट और इलेक्ट्रानिक, मीडिया ख़ास कर हिंदी मीडिया पूर्वोत्तर की ख़बरों को तवज्जो नहीं देता है। चुनाव चर्चा के पिछले अंकों में इंगित किया गया था कि ‘स्वयम्भू’ राष्ट्रीय मीडिया ने त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा के इसी बरस हुए चुनाव की खबरें देश के ‘मुख्य भाग’ के चुनाव की तुलना में कम ही दी। भाजपा ने त्रिपुरा चुनाव में जो हथकंडे अपनाये उसकी पारम्परिक मीडिया में चर्चा नगण्य रही। ‘राष्ट्रवादी’ भाजपा ने   ‘ इंडिजेनस पीपल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा ‘ (आईपीएफटी) जैसी अलगाववादी पार्टी से चुनावी गठबंधन कर लिया। आरोप है कि भाजपा ने पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य में दल-बदल से सत्ता हथिया ली और अन्यत्र  केंद्रीय सत्ता और धनबल से चुनावी जीत दर्ज़ कर वहाँ भी सरकार बना ली जहाँ उसका पहले कोई विधायक नहीं था।

खबरें

खबर है कि कांग्रेस नेता हिफेई विधान सभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें पलक सीट से अपना प्रत्याशी घोषित किया था। भाजपा ने उनकी महत्वाकांक्षा को सह्लाया। उस सीट पर कांग्रेस को नया प्रत्याशी  खड़ा करना पड़ा। राज्य के गृहमंत्री आर ललज़िर्लियाना और तीन अन्य विधायकों- लालरिनलियाना साइलो ,  बुद्धाधन चकमा और एच. ख्यांग्ते ने भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। पूर्व मंत्री चकमा भाजपा में गए जबकि ललज़िर्लियाना और साइलो एमएनएफ में गए। ख्यांग्ते ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की। इन इस्तीफों से निवर्तमान विधान सभा की चार सीटें रिक्त हो गयीं। कांग्रेस विधायकों की संख्या 34 से घट कर 30 रह गयी। शेष 6 विधायक एमएनएफ के हैं। एमएनएफ,  भाजपा के नेतृत्व में गठित ‘ नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस’ ( नेडा ) की घटक  है। मिजोरम की मौजूदा 7 वीं विधान सभा का कार्यकाल 15 दिसंबर 2018 तक है।

मुख्यमंत्री ललथनहवला ने 11 अक्टूबर को आइजोल में कांग्रेस मुख्यालय पर पार्टी उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी। वह खुद दो सीटों- सेरछिप और चंफाई दक्षिण से चुनाव लड़ेंगे। पिछले चुनाव में भी वह दो सीटों पर चुनाव लड़े और जीते थे। सूची में सात विधायकों के नाम नहीं हैं। पार्टी के 12 उम्मीदवार पहली बार चुनाव लड़ेंगे। नए चेहरों में एक-तिहाई 40 साल से कम उम्र के हैं। 20 विधायकों को उनकी पुरानी सीटें दी गई है। पार्टी में हाल में शामिल राज्य के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एल टी हरांगचल को चलफिल सीट से खड़ा किया गया है। कांग्रेस ने मिजोरम में कोई गठबंधन नहीं किया है।

कांग्रेस और एमएनएफ ने सभी 40 सीटों के लिए प्रत्याशी खड़े किये हैं। भाजपा अकेले चुनाव मैदान में है। कांग्रेस का आरोप है कि एमएनएफ ने भाजपा से  गुप्त समझौता कर रखा है और वे सरकार बनाने के लिये हाथ मिला लेंगे।

मिजोरम में भाजपा को अपनी ‘हिंदुत्ववादी राष्ट्रवादी’  छवि से बाहर निकलना मुश्किल पड़ रहा है। राज्य की 87 फीसदी आबादी ईसाई है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जे.वी.लूना कहते हैं कि पार्टी की छवि में सुधार हुआ है, वह अछूत नहीं है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल मैं आइजोल मैं पार्टी चुनाव प्रचार की शुरुआत की, उन्होंने पार्टी के भव्य कार्यालय का  श्रीगणेश भी किया। पर स्थानीय लोगों में भाजपा के प्रति शंकाएं ख़त्म नहीं हुई हैं। भाजपा पांच बार चुनाव लड़ने के बावजूद विधान सभा में अपना खाता नहीं खोल सकी है। राज्य की सत्ता कांग्रेस और एमएनएफ के बीच ही घूमती  रही है।

मेघालय राज्य में जिस नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के नेतृत्व वाली               ‘मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस’ (एमडीए) गठबंधन सरकार में भाजपा शामिल है उसने भी मिजोरम चुनाव लड़ने की घोषणा की है। उसके कितने प्रत्याशी हैं, अभी साफ नहीं है। एनपीपी अध्यक्ष एवं मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड सांगमा ने कहा है कि उनकी पार्टी मिजोरम में बड़ी भूमिका निभाएगी। एनपीपी, केंद्र की नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस और ‘नेडा’ के अलावा नगालैंड और मणिपुर की गठबंधन सरकार में भी भाजपा के साथ शामिल है। एनपीपी का गठन पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए.संगमा ने 2013 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से निष्काषित  होने के बाद किया था।

इतिहास

भारत संघ-गणराज्य का लगभग पूरा पूर्वोत्तर क्षेत्र ‘उत्पीड़ित राष्ट्रीयतावाद’  के सवालों को लेकर लड़ता रहा। हिमालय और बंगाल की खाड़ी से घिरे इस क्षेत्र में नगा, मिज़ो आदि अनेक मूल निवासियों की लड़ाई बरसों बाद थमने लगी। लड़ाई का रूप उपराष्ट्रीयता और राष्ट्रीयता के स्तर के पार अंतर्राष्ट्रीयतावादी भी हुआ।  पाकिस्तान के पूर्वी हिस्सा का 1971 में बांग्लादेश नाम से ‘स्वतंत्र राष्ट्र’  के रूप में अभ्युदय का पूर्वोत्तर भारत पर असर पड़ा। 1975 में सिक्किम में राजतंत्र के खात्मा के बाद उसका भारत में पहले अधिराज्य के रूप में और फिर पूर्ण राज्य के रूप मैं विलय हुआ। पूर्वोत्तर के  क्षेत्रों का विभिन्न नाम से पहले केंद्र शासित प्रदेशों और फिर पूर्ण राज्यों के रूप में भौगोलिक-प्रशासनिक पुनर्गठन भी हुआ। यह सब 1971 में भारत -पाकिस्तान युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान से लाखों शरणार्थियों के भारत आने की पृष्ठभूमि में हुआ। बंगाली हिन्दू शरणार्थी के बड़ी संख्या में त्रिपुरा में बसने से वहाँ मूल निवासी अल्पमत में रह गए। उन आदिवासियों के असंतोष ने उग्र आंदोलन को जन्म दिया जिसके नेताओं के साथ समझौता करके कांग्रेस ने 1988 में साझा सरकार बनाई। यह पुनर्गठन प्रक्रिया मिज़ो, नगा, असम आदि ‘शान्ति समझौतों’ के बाद बंद हो गयी। उत्पीड़ित  राष्ट्रीयतावाद की लड़ाई थम जाने के बाद पूर्वोत्तर में बारी-बारी से सिक्किम समेत आठ पूर्ण राज्य अस्तित्व में आए। उनमें असम , मेघालय , त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश,  मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम भी हैं।

मिजोरम का अर्थ है उसके मूल निवासियों ‘ मिज़ो की धरती।’ इसकी सीमाएं  त्रिपुरा, असम और मणिपुर राज्यों के अलावा दो स्वतंत्र देशों बाँग्लादेश और म्यांमार से लगती है। मिजोरम का भारत के पूर्ण राज्य के रूप में गठन 20 फरवरी 1987 को हुआ। उसके पहले असम को 1972 में विभक्त कर मिजोरम को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।1972 से मिजोरम विधान सभा चुनाव शुरू हुए। प्रथम मुख्यमंत्री ‘मिजो यूनियन’ पार्टी के छुंगा थे। उनके बाद ‘ मिजो पीपुल्स कॉन्फ्रेंस’  के थेनफुन्गा साइलो दो बार मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस 1984 में पहली बार सत्ता में आई। तब ललथनहवला मुख्यमंत्री बने। ‘ मिजो शान्ति समझौता’ के तहत पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद 1987 में एमएनएफ के ललडेंगा मुख्यमंत्री बने। लेकिन 1989 के विधान सभा चुनाव के बाद ललथनहवला फिर मुख्यमंत्री बने। 1998 और 2003 के चुनाव में एमएनएफ  की जीत हुई और जोरमथंगा मुख्यमंत्री बने। ललथनहवला  2008 और फिर 2013 में सातवीं विधान सभा के भी चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बने। पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने ललथनहवला के नेतृत्व में 34 सीटें जीती थी।

1942 में पैदा हुए ललथनहवला को पांच बार मिजोरम का मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है। वह 1966 में बैंक की नौकरी छोड़ एमएनएफ के भूमिगत आंदोलन में शामिल हुए। उन्हें गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया। वह जेल से 1967 में रिहाई के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्हें 1973 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया। वह इस पार्टी के एकछत्र प्रांतीय नेता हैं। वह पहली बार 1978 में विधायक बने। उन्होंने 1986 में एमएनएफ के साथ केंद्र के  ‘मिजोरम शान्ति समझौता’ के बाद एमएनएफ नेता ललडेंगा के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार कर लिया था। मिजोरम को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद विधान सभा के 1987 में हुए  चुनाव में जीते एमएनएफ की ललडेंगा की सरकार जब दलबदल से गिर गई तो ललथनहवला फिर मुख्यमंत्री बने। मिजोरम में मिजो, हिंदी और अंग्रेजी बोली जाती है। राजधानी आईजोल है। राज्यपाल कुम्मानम राज शेखरन हैं।

मुद्दा

एमएनएफ ने शराब कारोबार को चुनावी  मुद्दा बना दिया है। उसका आरोप है कि राज्य की कांग्रेस सरकार ने शराबखोरी को बढ़ावा दिया है। उसने यह 1995 में लागू ‘ मिजोरम पूर्ण मद्य निषेध अधिनियम’ को 17 वर्ष बाद 2014 में बदल कर किया। परिणामस्वरूप मार्च 2015 में आईजोल में शराब की  दूकान खुली। एमएनएफ के पूर्व मुख्य मंत्री ज़ोरमथंगा के अनुसार इस बदलाव से राज्य में शराबखोरी बढ़ी है और लोगों का सामाजिक -पारिवारिक – आर्थिक नुक्सान बढ़ा है।

घोषणा पत्र

कांग्रेस ने घोषणा की है कि वह सत्ता में लौटने पर 10 वीं पास छात्रों को निःशुल्क लैपटॉप देगी। पार्टी ने किसानों के लिए नई भूमि उपयोग नीति जारी रखने के साथ बेरोजगार युवकों के लिए नयी आर्थिक विकास नीति शुरू करने का वादा किया है। एमएनएफ का आरोप है कि नई भूमि उपयोग नीति से  कांग्रेस कार्यकर्ताओ को लाभ हुआ। एमएनएफ ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में मिजोरम में असम की तर्ज़ पर ‘नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स’ लागू करने तथा मिज़ो शान्ति समझौता के प्रावधानों के अनुरूप मिज़ो संस्कृति और धार्मिक प्रथाओं को बढ़ाने का वादा किया है।

देखना यह है कि विधान सभा चुनाव के बाद क्या एमएनएफ, भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद का सामना करता है या उससे अपने राष्ट्रवाद की कीमत पर हाथ मिला लेता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहे डॉ. रमेश दीक्षित के अनुसार भाजपा का हिन्दुत्वादी राष्ट्रवाद देर सबेर सभी तरह के राष्ट्रवाद को निगल कर उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं और उपराष्ट्रीयताओं की अपनी पहचान खत्म करने से नहीं चूकेगा। डॉ दीक्षित से तो नहीं पूछा जा सका लेकिन यह सवाल रह गया कि क्या भाजपा के राष्ट्रवाद में कोई स्वप्नदोष है?



(मीडियाविजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)




 

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