सवर्णों से दो-तीन गुना ऊँचे नैतिक मानक रखें बहुजन,वरना ब्रह्मराक्षस छोड़ेगा नहीं !

संजय श्रमण जोठे

 

डॉ. अंबेडकर एक नए समाज, विचारधारा और राजनीति की नींव रखते हुए खुद व्यक्तिगत नैतिकता और सदाचार का कड़ाई से पालन करते थे. उन्हें पता था कि इस मुल्क में राजनीतिक, वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों को कौन और कैसे फंसाकर मारता है.

उनके बाद जो दलित बहुजन राजनीति आजकल चल रही है उसमे न विचारधारा है, न व्यक्तिगत नैतिकता है न सदाचार है. अधिकाँश नेता भ्रष्ट हैं, जिनका भ्रष्टाचार और नैतिक कदाचार उनकी राजनीति को ही नहीं बल्कि उस राजनीति से जुडी विचारधारा को भी बर्बाद कर डालता है.

सवर्ण राजनीति को न सदाचार की जरूरत है न नैतिकता की जरूरत है. कानून, प्रशासन, पुलिस इत्यादि सभी उनका हैं. उन्हें व्यक्तिगत नैतिकता को उंचाई पर रखकर काम करने की कोई जरूरत नहीं.

लेकिन दलितों, ओबीसी, आदिवासियों और मुस्लिमों के राजनेताओं को दोहरा सजग और सावधान रहना चाहिए. जैसे एक आम दलित आदिवासी बच्चे को स्कूल, कालेज, मुहल्ले, सार्वजनिक स्थल आदि में हर पल संघर्ष करते हुए दोहरी तिहरी मेहनत से शिक्षा और रोजगार हासिल करना होता है उसी तरह इन जातियों से आने वाले राजनेताओं को भी कई गुनी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

इसीलिए दलित बहुजन राजनेताओं/कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत नैतिकता और सदाचार के अपने मानक भी सवर्णों से दो तीन गुने ऊँचे रखने चाहिए, वरना इस देश का सनातनी ब्रह्मराक्षस उन्हें एक छोटे से अपराध में भी कालापानी की सजा दे डालेगा.

अतीत में इन्होने यही किया है. एक शूद्र या अछूत को ज़रा से अपराध के लिए मृत्युदंड या अंगभंग की सजा दी जाती थी, सवर्ण या ब्राह्मण कितना भी बड़ा अपराध कर ले उसे नाम मात्र की सजा दी जाती थी.

वही परम्परा आज भी जारी है.

 



 

First Published on:
Exit mobile version