लालबहादुर सिंह
एक टीवी इंटरव्यू में गडकरी ने 2019 में मोदी की तुलना 1971 की इंदिरा गांधी से की, जब कुछ विपक्षी दल मिलकर उन्हें हरा नहीं पाए और वह प्रचंड बहुमत से जीत गयीं ।
ठीक यही तर्क देश के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अंग्रेजी अखबार के चर्चित स्तंभकार और राजनैतिक अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अय्यर ने दिया और इसे अंकगणित पर केमिस्ट्री के भारी पड़ने का मामला बताया ।
यह तुलना absurd और हास्यास्पद है !
दरअसल उपचुनाव के नतीजों से घबड़ाये भाजपा नेताओं और चिंतित बुद्धिजीवियों की पूरी गोएबेलसियन फ़ौज उत्तर पड़ी है जनता की आँख में धूल झोंकने के लिए, एक झूठा विमर्श गढ़ा जा रहा है मनोवैज्ञानिक युद्ध में हथियार के बतौर !
आइये याद करें, 1971 इंदिरा गांधी के लोकप्रिय उभार का चरमोत्कर्ष था । समय से एक साल पूर्व कराये गए आम चुनाव तक इंदिरा गांधी पूंजीपतियों के समर्थक माने जाने वाले पार्टी सिंडिकेट को ध्वस्त कर, राजे- रजवाड़ों का प्रिवीपर्स ख़त्म कर, बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर, मोनोपोली रेस्ट्रिक्शन कानून बनाकर, सीलिंग कानून लागू कर, गरीबों की “मसीहा ” बन चुकी थी !
कुछ ही महीनों बाद तब के जनसंघ के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी से उन्हें दुर्गा का ख़िताब मिलने वाला था !!
लोकप्रियता के शिखर पर विराजमान उस इंदिरा गांधी की जनता से केमेस्ट्री की तुलना क्या आज के मोदी से की जा सकती है ? वे तो उसके ठीक विपरीत छवि में आज हैं- “कारपोरेट के यार, गरीबों के गद्दार”, ” अमीरों के नायक, गरीबों के खलनायक ” !
इसीलिए “वे कहते है इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ ” वाला जुमला आज नहीं चलेगा कि ” वे कहते है मोदी हटाओ, मैं कहता हूँ ……….”
अय्यर महोदय, वह केमिकल बांड ही तो मोदीजी ने तोड़ दिया है जनता से ! 2014 में जो रसायन बना था, वह सब जुमलेबाजी और जनता से विश्वासघात की आग में जल कर भस्म हो चुका है !
इसीलिए आज केमेस्ट्री और अंकगणित दोनों खिलाफ है कल के “मसीहा” के ! मामला अंक गणित पर केमेस्ट्री के भारी पड़ने का नहीं बल्कि दोनों के सम्मिलित प्रभाव ( cumulative effect ) का है, अय्यर साहब !!
मोदी के लिए 2019, इंदिरा गांधी का 1971 नहीं, 1977 बनेगा – जब समूचे उत्तर मध्य भारत में, पूरी हिंदी- उर्दू पट्टी में सूपड़ा साफ हो गया था !!!
विदा की बेला निकट है, भक्तों !!!!!!
(लालबहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लोकप्रिय छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं। )