कोरोना-काल में मानसिक आघात होंगी परीक्षाएँ, पीएम चुप क्यों- ‘युवा हल्ला बोल’

 

‘युवा हल्ला बोल’ ने कोरोना महामारी में दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य की परवाह किए बिना परीक्षा के फैसले पर मोदी सरकार को घेरा है। युवा संगठन ने मांग की है कि परीक्षार्थियों और उनके परिवारों पर हो रहे मानसिक आघात और परेशानी दूर करने के लिए सभी परीक्षाओं पर स्पष्ट नीति की घोषणा करे। ‘युवा हल्ला बोल’ का नेतृत्व कर रहे अनुपम ने कहा कि मोदी सरकार को तीन महीने तक सभी ऑफ़लाइन परीक्षाओं को स्थगित कर देना चाहिए और अक्टूबर अंत में स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए।

अनुपम ने कहा कि मुद्दा सिर्फ जेईई मेंस या एनईईटी की परीक्षायें एनटीए द्वारा आयोजित किए जाने का नहीं है। अन्य परीक्षाएं जैसे BHU प्रवेश, CLAT, NDA, STET, आदि के भी अभ्यर्थियों पर संक्रमण का खतरा है। इससे पहले हमने सीबीएसई परीक्षा, फिर यूजीसी से संबद्ध अंतिम वर्ष के डिग्री छात्रों की चिंताओं और अब एनटीए के साथ चल रहे मुद्दे पर सार्वजनिक बहस देखी है। इसलिए मुद्दा किसी विशेष आयोग या एजेंसी के बारे में नहीं है। इस मुद्दे को केंद्र सरकार द्वारा तीन महीने के लिए ऐसी सभी परीक्षाओं को स्थगित करने का व्यापक आदेश लाकर ही हल किया जा सकता है। सरकार यह घोषणा कर सकती है कि इस अवधि के अंत में स्थिति की समीक्षा की जाएगी। संभाव है कि नए मामलों के रिकॉर्ड आंकड़े तब तक धीमे हो जाएंगे और साथ ही इससे जुड़े जोखिम भी कम हो सकता है।

देश में कोविड मरीज़ों की संख्या आज लगातार बढ़ रही है। रोजाना आ रहे नए मामलों की संख्या रिकॉर्ड तोड़ रही है। हमें अभी तक अपने देश में संक्रमण का चरम दिखाई नहीं दे रहा है। यदि कोरोनावायरस का प्रसार कभी भी एक खतरा था, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत आज संक्रमण के सबसे बुरे दौर में है। इस बढ़ती महामारी के बीच कोई भी निर्णय लेते समय अन्य सभी चिंताओं से ज़्यादा महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंता है। कोई भी समझदार व्यक्ति, राजनीतिज्ञ या सरकार अन्यथा नहीं सोच सकता।

मंजुल का कार्टून, उनके फेसबुक पेज से साभार

अनुपम ने कहा कि कोरोनावायरस के फैलने के खतरे के अलावा, कई राज्य बाढ़ और सार्वजनिक परिवहन की कमी जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। कुछ छात्रों के परीक्षा केंद्र सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं जहाँ तक पहुंचने के लिए कोई सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था नहीं है। यह स्थिति गरीब और वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के खिलाफ समीकरण को झुकाती है। सभी वर्गों के छात्रों को शिक्षा और परीक्षा के समान अवसर सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।

यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोदी सरकार ने ऐसे वक्त में देश के लाखों छात्रों के प्रति अभिभावक की तरह व्यवहार नहीं किया। अपनी जिम्मेदारी इस तरह निभाई कि नागरिकों को अदालत का रुख करना पड़ा जबकि सरकार टस से मस होने को तैयार नहीं है। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी भी विचलित करने वाली है। पीएम मोदी “परीक्षा पर चर्चा” आयोजित किया करते थे और परीक्षा देने वाले तनावपूर्ण युवाओं का मार्गदर्शन करने के लिए “एग्जाम वॉरियर्स” नामक एक पुस्तक भी लिखी है। लेकिन आज, जब हमारे देश के एग्जाम वारियर्स वास्तव में अपने तनाव को दूर करने के लिए परीक्षा पर चर्चा करना चाहते हैं, तो प्रधानमंत्री गायब नजर आ रहे हैं।

 


 

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