फुटबॉल के महान खिलाड़ी दिएगो मारादोना का महड़ 60 साल का उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्होंने अर्जेंटीना का प्रतिनिधित्व करते हुए फ़ुटबॉल के चार विश्व कप खेल और अपने हुनर से दुनिया का दिल जीत लिया। उनके निधन से दुनिया भर में शोक की लहर है। लेकिन इस मौक़े पर मरादोना की ज़िंदगी के एक अहम पहलू पर ध्यान दिला रहे हैं अशोक पांडे—
दिएगो मारादोना ने अपने टखने और बांह पर बीसवीं सदी के दो सबसे बड़े लातीन अमेरिकी क्रांतिकारियों फिदेल कास्त्रो और चे गुएवारा के टैटू गुदवा रखे थे. एक बहुत बड़ी सेलेब्रिटी के तौर उसे अधिकार था कि जितनी चाहे उतनी रकम मांग कर अमेरिकी पूंजीवाद का टट्टू बन जाता. अमेरिकी साम्राज्यवाद के झंडाबरदारों ने उसे अपने पाले में लाने के लिए ऐसी अकल्पनीय रकमें देने के प्रस्ताव दिए जिन की हमारे भारतीय सुपरस्टार कल्पना नहीं कर सकते. उसने उन पर थूक दिया. उसने कहा वह अपने लोगों से मोहब्बत करता है.
फुटबॉल को समझने-चाहने वालों में से आधे लोग उसे भगवान मानते हैं. इतनी ही तादाद उसे बर्बाद नशेड़ी बताने वालों की भी है. कुछ भी हो आपने उसे पिछले सौ सालों के सबसे बड़े दो या तीन फुटबॉलरों में गिनना ही होगा. उसके जैसी बेबाक राजनैतिक प्रतिबद्धता और सजगता बहुत कम खिलाड़ियों में रही.
इस चैम्पियन ने अपने समय के सबसे ताकतवर आदमी यानी अमेरिकी राष्ट्रपति को सार्वजनिक रूप से “मानव गू का हिस्सा” कहा. मारादोना कहता था – “जब आपको दुनिया जानने लगती है तो आपको अमरीका या उसके राष्ट्रपति के बारे में कुछ भी कहने की अनुमति नहीं होती. ऐसे और भी बहुत से निषिद्ध विषय होते हैं लेकिन आपको यह सीखना होता है कि किसे कितनी इज़्ज़त दी जानी चाहिये. आप चाहे कितने ही मशहूर फ़ुटबॉलर या और कोई खिलाड़ी क्यों न हों, आपको एक हत्यारे व्यक्ति के बारे में अपने विचार व्यक्त करने का पूरा अधिकार होता है.”
अगर मारादोना की मौत पर कुछ लिखे-कहे बिना चैन न आ रहा हो तो तेल और फ्लैट बेचने वाले महानायकों वाले हमारे देश के हर खेलप्रेमी नागरिक को सर्बिया के जबदस्त फिल्मकार एमीर कुस्तुरिका की 2008 में बनाई फिल्म ‘मारादोना’ एक बार जरूर देखनी चाहिए.
मारादोना कहता था – “अमेरिका की यह बात मुझे ज़रा भी पसंद नहीं है कि वह दुनिया पर अपनी दादागीरी चलाने के लिए बहुत मेहनत करता है और उसे दुनिया के हर नागरिक की समस्या दूर करने का फितूर है.”
सलाम चैम्पियन! अलविदा चैम्पियन!