14 सितबंर को संसद पर किसानों का हल्लाबोल, देश भर में होंगे प्रदर्शन

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले देश भर के किसान संसद सत्र के दिन 14 सितंबर को संसद के सामने प्रदर्शन करेंगे। केंद्र सरकार के तीन अध्यादेशों के विरोध में हो रहे इस प्रदर्शन में देशभर के किसान शामिल होंगे। दिल्ली के अलावा सभी राज्यों में जिला एवं तहसील स्तर पर भी किसान-विरोध प्रदर्शन करेंगे। संसद के सामने हो रहे विरोध प्रदर्शन में देश भर के किसान नेता शामिल होंगे।

एआईकेएससीसी नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार अन्नदाता के साथ धोखाधड़ी कर रही है। आत्मनिर्भरता का नारा देकर विदेशी कंपनियों और भारतीय कॉरपोरेट जगत को किसानों के साथ लूट मचाने का निमंत्रण दे रही है।

एआईकेएससीसी नेताओं के मुताबिक सरकार ने किसानों को बर्बाद करने की ठान ली है। किसानों को ठीक से न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया गया। अब केंद्र सरकार ने किसानों के अलावा उनकी पैदावार को भी दूसरों के हवाले करने का मन बना लिया है।

किसान नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार कोरोना का बहाना बनाकर अपने किसान विरोधी और कॉरपोरेट पक्षधर फैसलों पर किसानों के विरोध को रोकने का प्रयास कर रही है। हरियाणा में किसानों पर लाठियां भांजी गई। किसानों के हित की बात करने की बजाए सरकार ने किसान विरोधी तीन अध्यादेश और नया बिजली बिल पेश करने की तैयारी की है।

छत्तीसगढ़ में 25 किसान आदिवासी संगठन करेंगे विरोध प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ में किसान व भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े किसान और आदिवासी संगठन पूरे प्रदेश में केंद्र व राज्य की किसान-आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। इस विरोध प्रदर्शन के जरिये केंद्र सरकार से कृषि विरोधी अध्यादेशों और पर्यावरण आंकलन मसौदे को वापस लेने, कोरोना संकट के मद्देनजर ग्रामीण गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न और नगद राशि से मदद करने, मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, व्यावसायिक खनन के लिए प्रदेश के कोल ब्लॉकों की नीलामी और नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण रद्द करने, किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने और उन्हें बैंकिंग तथा साहूकारी कर्ज़ के जंजाल से मुक्त करने, आदिवासियों और स्थानीय समुदायों को जल-जंगल-जमीन का अधिकार देने के लिए पेसा कानून का क्रियान्वयन करने की मांग की जाएगी।

इसी तरह राज्य की कांग्रेस सरकार से भी सभी किसानों को पर्याप्त मात्रा में यूरिया खाद उपलब्ध कराने, बोधघाट परियोजना को वापस लेने, हसदेव क्षेत्र में किसानों की जमीन अवैध तरीके से हड़पने वाले अडानी की पर्यावरण स्वीकृति रद्द करने और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने, किरंदुल की आलनार पहाड़ी को आरती स्पॉन्ज को न सौंपने, पंजीकृत किसानों के धान के रकबे में कटौती बंद करने, सभी बीपीएल परिवारों को केंद्र द्वारा आबंटित प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज वितरित करने, वनाधिकार दावों की पावती देने, हर प्रवासी मजदूर को अलग मनरेगा कार्ड देकर रोजगार देने और भू-राजस्व संहिता में कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव न करने की भी मांग की जाएगी।

छत्तीसगढ़ में इन मुद्दों पर किसानों और आदिवासियों के बीच काम करने वाले 25 संगठनों में एकता बनी है। इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं। इन संगठनों ने ग्राम सभा के फ़र्ज़ीकरण के जरिये दंतेवाड़ा की आलनार पहाड़ को बेचे जाने के खिलाफ आदिवासियों के संघर्ष का समर्थन भी किया है।

इन संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने “वन नेशन, वन एमएसपी” की मांग करते हुए कहा है कि मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के कारण देश आज गंभीर आर्थिक मंदी में फंस गया है। इस मंदी से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि आम जनता की जेब मे पैसे डालकर और मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध करवाकर उसकी क्रय शक्ति बढ़ाई जाए, ताकि बाजार में मांग पैदा हो। लेकिन इसके बजाए अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों और बिजली कानून में ऐसे परिवर्तन किए जा रहे हैं, जिससे फसल के दाम गिर जाएंगे, खेती की लागत महंगी होगी और बीज और खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी हस्तक्षेप की संभावना भी समाप्त हो जाएगी। ये परिवर्तन पूरी तरह कॉर्पोरेटपरस्त और कालाबाज़ारी व जमाखोरी को बढ़ाने वाले हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि वास्तव में सरकार इन कदमों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना चाहती है। इससे देश की कृषि व्यवस्था पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी। यह देश की संप्रभुता और खाद्यान्न आत्म-निर्भरता के लिए घातक होगा।

आन्दोलन में यूपी का मजदूर किसान मंच रहेगा शामिल

अखिल भारतीय किसान मजदूर संघर्ष समन्वय समिति के देशव्यापी “किसान मुक्ति आन्दोलन” में यूपी का मजदूर किसान मंच भी शामिल रहेगा। मजदूर किसान मंच के महासचिव डा. बृज बिहारी ने और ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस.आर. दारापुरी ने “किसान मुक्ति आन्दोलन” और युवा संगठनों के “रोजगार बने मौलिक अधिकार” पर आयोजित रोजगार अधिकार दिवस का समर्थन किया है।

डा. बृज बिहारी ने कहा कि सरकार द्वारा जारी कृषि सम्बन्धी तीन अध्यादेश पहला कृषि उपज, वाणिज्य एवं व्यापर (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश-2020, दूसरा मूल्य आश्वासन पर (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश 2020 और तीसरा आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) अध्यादेश -2020 किसान और मजदूर विरोधी हैं। क्योंकि इनसे फसल के दाम घटेंगे, खेती की लागत महंगी होगी और बीज सुरक्षा समाप्त हो जाएगी, खाद्य सुरक्षा में सरकारी हस्तक्षेप की सम्भावना समाप्त हो जाएगी जो पूरी तरह कार्पोरेट सेक्टर को बढ़ावा देंगे, सरकार द्वारा खाद्यन्न आपूर्ति पर नियंत्रण खत्म होगा और जमाखोरी व कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा.

उन्होंने कहा है कि इस आन्दोलन के माध्यम से मजदूर किसान मंच सरकार से मांग करता है कि किसान विरोधी इन अध्यादेशों को वापस लिया जाए, बिजली कानून वापस लो तथा पेट्रोल व डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाकर इसका दाम कम किया जाएं। इसके साथ ही मजदूर किसान मंच द्वारा मनरेगा को मज़बूत करने और इसे कृषि के साथ जोड़ने, सहकारी खेती को बढ़ावा देने और वनाधिकार के तहत पट्टा देने की मांग को भी उठाया जायेगा।


 

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