मनदीप पुनिया / झज्जर से
हरियाणा के झज्जर जिले के खुड़न गांव के प्रकाश पूनिया ने जुलाई के पहले सप्ताह में बड़ी उम्मीद से 6 एकड़ ज़मीन पट्टे पर लेकर धान लगाया था। ज़मीन के लिए उसने 90 हजार रुपये चुकाए थे। इसके अलावा प्रकाश ने पुश्तैनी दो एकड़ ज़मीन पर बाजरे की बिजाई की थी। प्रकाश को उम्मीद थी कि इस बार फसल की ठीक-ठाक पैदावार हो जाएगी तो कुछ पैसे हाथ आ जाएंगे और उन रुपयों से वह सर्दियों में बेटी का ब्याह कर देगा।
किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इस बार हुई ज्यादा बारिश के चलते गांव के लगभग हज़ार एकड़ खेतों में पानी भर गया। इसमें प्रकाश की पट्टे पर ली हुई छह एकड़ ज़मीन भी डूब गई। धान की फसल बरबाद हो गई। इसके बाद से प्रकाश लगातार मानसिक दबाव में चल रहा था। बीती 16 नवंबर की सुबह प्रकाश घर से खाना खाकर यह कहकर निकला कि वह खेतों की तरफ जा रहा है यह देखने कि खेतों में खड़ा पानी सूखा या नहीं। प्रकाश खेत गए जरूर, लेकिन लौटे नहीं।
कर्ज के कारण मानसिक दबाव झेल रहे प्रकाश ने खेत में ही एक पेड़ पर फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। इलाके के लोकप्रिय अख़बार ट्रिब्यून तक यह ख़बर पहुंचने में पांच दिन लग गए।
दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दूर हरियाणा का जिला झज्जर पड़ता है, जहां से रेवाड़ी की तरफ 20 किलोमीटर चलने के बाद सीधे हाथ को एक सड़क खुलती है जो खुड़न गांव को ले जाती है। गांव की सीमा में घुसते ही कुछ खेत ऐसे दिखाई देते हैं जहां बारिश का पानी भरा हुआ है। इन्हीं खेतों के पास प्रकाश के छह एकड़ खेत भी हैं जिनमें जलभराव के कारण धान की फसल गलने के बाद पानी पर तैरती नज़र आ रही है। खेतों के पास ही प्रकाश का बेटा सचिन मायूस खड़ा है। सचिन की सूजी हुई आंखें इस बात की गवाही दे रही हैं कि पिता के जाने के बाद उन पर क्या बीत रही है।
इतना कहकर सचिन की जुबान लड़खड़ा उठी और आंखों की कोर से आंसू बह निकला। आंसुओ से गीले हुए गालों को पोंछने के बाद सचिन बोलना शुरू करते हैं, ‘‘सितंबर में जलभराव के कारण हमारे सारे धान डूब गए थे, जिसके बाद उन्होंने और गांव के कई दूसरे किसानों ने कई बार प्रशासन से पानी निकलवाने की गुहार लगाई। एकाध बार प्रशासन ने मोटर से पानी भी निकालने का दिखावा भी किया लेकिन उन्होंने पानी निकालने के लिए एक बार भी सही से प्रयास नहीं किया। कर्जे में दबे होने के बावजूद भी बापू ने मेरी बहन को बड़े चाव से एमए तक की पढ़ाई करवाई थी। अब जब वे हम दोनों को छोड़कर चले गए हैं तो समझ नहीं आ रहा कि हम क्या करें।”
गांव की भीड़ी गलियों में कुछ मिनट चलने के बाद प्रकाश का घर आता है। घर की अभी पुताई नहीं हुई है। एक नज़र देखते ही साफ पता लगता है कि परिवार पचासेक साल पुराने घर की थोड़ी बहुत मरम्मत करवाकर ही रह रहा है। घर के बरामदे में गांव की औरतें जमा हैं, जिनके बीच प्रकाश की पत्नी भी बैठी हुई हैं। वहां बैठी औरतें बताती हैं कि प्रकाश की खुदकुशी के बाद उनकी पत्नी ठीक से खा-पी नहीं रही है, न ही लोगों से ठीक से बात कर पा रही है।
पास ही में बैठे प्रकाश के बड़े भाई के बेटे प्रदीप हमें बताते हैं, ‘’चाचाजी की मौत के बाद कोई भी सरकारी अफसर या सरकार के नेता नहीं आए हैं। सरकार के नेता तो क्या विपक्ष के नेता भी नहीं आए हैं। आज चाचा का परिवार मुश्किल में है। इस मुश्किल घड़ी में सरकार को चाहिए कि इनका कर्जा माफ करे, बेटी के ब्याह के लिए कुछ सहायता राशि दे और सचिन को कुछ रोजगार दे ताकि उनका परिवार चल सके। गांव के सभी किसान इन मांगों के साथ प्रशासन से भी मिलने गए थे लेकिन वहां से हमें सिर्फ आश्वासन देकर भगा दिया गया। अब आप ही बताइए आश्वासन से पेट थोड़ी न भरता है।”
वहां बैठे गांव वालों से जब फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए बनाई गई “प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना” के बारे में पूछा तो वहां बैठे एक किसान प्रशन पूनिया ने कहा कि पिछली बार भी गांव के सैकड़ों किसानों की फसलें बर्बाद हुई थीं। उस समय कुछ सरकारी आदमी आकर ज़मीनों का मुआयना करके भी गए थे लेकिन उन्हें आज तक एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना सिर्फ किसानों के पैसे हड़पने के लिए है, फायदा पहुंचाने के लिए नहीं।
पिछले कई साल से बारिश के कारण होने वाले जलभराव से दिल्ली एनसीआर के खेत वेटलैंड (ऐसी जमीन जहां एक-दो फुट पानी भरा रहता हो) में तब्दील हो रहे हैं। यह विदेशी पक्षियों के प्रवास की आदर्श स्थिति जरूर है, लेकिन किसानों के ज़िंदा रहने की नहीं।