एक मॉडर्न लोककथा

हां तो मुबंई, कितने आदमी थे.

टाइम्स ऑफ इंडिया, मुंबई – 500 लोग थे. हमने पहले पेज पर छाप दिया है कि रोहित केस के कारण 500 लोग आए और दक्षिण मुंबई जाम!

लेकिन इससे छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के बाहर पूरा वीटी इलाका घंटों जाम कैसे रहा? 500 लोगों से तो वीटी का एक कोना नहीं भरता. 10,000 लोगों से कम में वीटी जाम कैसे हो गई. सभी रास्तों पर जहां तक नजर जा रही थी, लोग ही लोग थे. तभी तो दक्षिण मुंबई जाम हो गई.

टाइम्स ऑफ इंडिया – सो तो है, भीड़ तो बड़ी थी. पर, वो क्या हुआ कि हमने अपने यहां पेज – 3 पर 3,000 आदमी छाप दिया है. इससे ज्यादा लिखना ठीक नहीं है. क्या है कि खाते-पीते मिडिल क्लास के तो हैं, लेकिन छोटे लोग हैं.

पहले पेज पर 500 और पेज 3 पर 3,000…वैसे, लोग क्यों आए थे, क्या मांग थी?

टाइम्स ऑफ इंडिया – वो तो नहीं लिखा.

…. और आपको लग रहा था कि कोरेगांव की जंग खत्म हो चुकी है. अगर ऐसा होता, तो बाबासाहेब को मूकनायक से लेकर प्रबुद्ध भारत तक पाँच पत्र न निकालने पड़ते.

द हूट से मिली जानकारी पर आधारित. करेक्शन का स्वागत है.

(दिलीप मंडल की फेसबुक दीवार से साभार)

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