रांची में शुरू हुआ भूमि अधिकार आंदोलन का सम्‍मेलन, जुलाई में राष्‍ट्रव्‍यापी आंदोलन की तैयारी

आज राँची के थियोलोजिकल हॉल, गोस्नर मिशन कम्पाउंड में भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले दो दिवसीय जनसंघर्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन सत्र पूर्व सांसद हन्नान मोल्लाह की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। सम्मेलन में आए वक्ताओं ने देश में प्रचारित किए जा रहे झारखण्ड के विकास के लिए सीएनटी/ एसपीटी में संशोधनों का पर्दाफाश करते हुए जल-जंगल-जमीन की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ एकजुट होने की अपील की। सम्मेलन में देश भर के 12 राज्यों से 400 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने सम्मलेन में भाग लिया।

शुरुआत में आयोजन समिति के दयामनी बारला ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज देश में राज्य व्यवस्था जहां एक तरफ सांप्रदायिकता, धार्मिक विभेदीकरण जैसे मुद्दे पर चुप्पी लगाए हुए है वहीं दूसरी तरफ कॉर्पोरेट लूट को सुगम बनाने के लिए नई-नई नीतियां बना रही है। ऐसे समय में जनांदोलनों के ऐसे सम्मेलन का महत्व और भी बढ़ जाता है। भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लेकर आज भ्रम की स्थिति फैलाई जा रही है। केंद्र में अध्यादेश वापस लेने के बावजूद आज भी राज्यों में भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं। राज्य सरकारें मनमाने ढंग से भूमि अधिग्रहण कर रही हैं। इन्हीं सरकारी नीतियों के खिलाफ इस आंदोलन की शुरुआत की गई है।

दयामनी बारला ने आगे कहा कि छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) कानून, 1908 और संताल परगना काश्त्कारी (एसपीटी) अधिनियम, 1949, में झारखण्ड की बीजेपी सरकार द्वारा किये गए संशोधन ने आदिवासी भूमि की अबाध कॉरपोरेट लूट का रास्ता खोल दिया है, उनकी आजीविका पर खतरा पैदा कर दिया है और उनके वजूद पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। इन संशोधनों के चलते सरकार को ”गैर-कृषि उद्देश्यों” के लिए ज़मीन लूटने को अधिकार प्राप्त हो गया है ताकि वह ज़मीन का वाणिज्यिक इस्तेमाल कर सके जो कि अब तक वर्जित था। यह पेसा कानून 1996 और एफआरए 2006 के जनपक्षीय प्रावधानों को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।

राज्य के लोगों द्वारा लगातार किए जा रहे प्रतिरोध पर सरकार ने काफी दमन किया है। बीजेपी की राज्य  सरकार की पुलिस की गोलीबारी में सात आदिवासी किसान मारे जा चुके हैं। झारखण्ड के जनांदोलन के साथ खड़े होकर भूमि अधिकार आन्दोलन को आदिवासियों और किसानों को साथ लाना होगा क्योंकि आदिवासी प्रश्न का समाधान कहीं ज्यादा व्या्पक कृषि प्रश्न के समाधान में ही निहित है।

सम्मेलन के प्रथम सत्र में छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) कानून 1908 और संताल परगना काश्त्कारी (एसपीटी) अधिनियम 1949 कानूनों में संसोधन के विरुद्ध और झारखण्ड में कॉरपोरेट की लूट, अल्पसंख्यको विशेषकर मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध हिंसा व हत्या के खिलाफ, कृषि संकट पर, गाय अर्थव्यवस्था और किसानों व जीविका पर हमले के विरुद्ध प्रस्ताव सदन में चर्चा के लिए रखे गए।

सम्मेलन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता सयुक्त रूप से कुमार चंद मोर्दी (विस्थापन विरोधी एकता मंच, कोलहान), हन्नान मोल्लाह (अखिल भारतीय किसान सभा), प्रफ्फुला सामंतरा (लोक शक्ति अभियान, उड़ीसा), सत्यवान (अखिल भारतीय कृषक खेत मजदूर यूनियन), कृष्णा प्रसाद (अखिल भारतीय किसान सभा), रोमा मलिक (अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन), प्रफुल्ल लिंडा (आदिवासी अधिकार मंच), दयामनी बारला (आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच) ने की।

प्रस्तावों पर चर्चा करते हुए लगभग सभी प्रतिनिधियों ने भाजपा सरकार द्वारा जो किसानों आदिवासीयों को बर्बाद करने के प्रयास किए जा रहे है पर गंभीर चिंता व्यक्त की। गाय के नाम पर भावनाओ को भड़का कर देश में हिंसा को भड़काया जा रहा है सामाजिक हिंसा इस चरम पर पहुँच गई है की देश का कोई भी नागरिक अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है विशेषकर अल्पसंख्यको, दलितों, आदिवासीयों के विरुद्ध ये हिंसा और भी अधिक है व बढती जा रही है। पशु क्रूरता पर रोक के नाम पर किसानों की जीविका पर रोक लगाने का काम किया जा रहा है किसानों से उस के पशुधन के अधिकार को छीना जा रहा है जो की उस की आय में 26 प्रतिशत योगदान करता है। ऐसे में पहले से ही कृषि संकट और क़र्ज़ से दबे किसान से पशुधन से होने वाली आमदनी को छीनकर उससे आत्महत्या की ओर धकेला जा रहा है।

सम्मेलन के दूसरे सत्र में देश एवं झारखण्ड में प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ जारी संघर्षों के डॉ. सुनीलम, अशोक चौधरी, विद्या दिनकर, मिथिलेश दांगी, अरविंद अंजुम, अखिल गोगोई, राघवेन्द्र कुमार, पूर्व विधायक विनोद सिंह, जिरोम कुजूर, अशोक श्रीमाली, पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह, सीआर मांझी आदि वक्ताओं ने अपनी बाते रखी।

आंदोलन के नेताओ ने ये आह्वान किया कि किसान, मजदूर, आदिवासी, दलित व अन्य वंचित तबके ही इन जन विरोधी सरकारों को चुनोती दे सकती है। इसलिए यह समय की जरुरत है की तमाम जनतंत्र पसंद ताकतों और वंचित हिस्सों को एकजुट हो इन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ते हुए इन का मुँह मोड़ना होगा।

इस सम्मेलन में जन आंदोलनों का राष्‍ट्रीय समन्‍वय (एनएपीएम), ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्‍ट वर्किंग पीपॅल (एआइयूएफडब्‍लूपी), अखिल भारतीय किसान सभा (अजय भवन), अखिल भारतीय किसान सभा (कैनिंग लेन), अखिल भारतीय कृषि मजदूर यूनियन, अखिल भारतीय कृषक खेत मजदूर संगठन, लोक संघर्ष मोर्चा, जन संघर्ष समन्‍वय समिति, छत्‍तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए), किसान संघर्ष समिति, संयुक्‍त किसान संघर्ष समिति, इंसाफ, दिल्‍ली समर्थक समूह, किसान मंच, भारतीय किसान यूनियन असली, माइंस, मिनरल्‍स एंड पीपल्स (एमएमपी), आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच, कोयलकारो जन संगठन, आदिवासी महासभा, काश्तकारी जन आंदोलन, महाराष्ट्र, गाँव बचाओ आंदोलन, कृषक मुक्ति संग्राम समिति, असम, कोसी नव निर्माण मंच, आदिवासी कुदामी समाज, छात्र युवा संघर्ष वाहिनी, जन संघर्ष वाहिनी, आजादी बचाओ आंदोलन, एआईपीफ व कई अन्‍य संगठनों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की।


प्रेस विज्ञप्ति 

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