कश्मीर के सवाल को लेकर इस्तीफ़ा देने वाले आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने लखनऊ के यूपी प्रेस क्लब में 20 अक्टूबर को एनएपीएम, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), लोक राजनीति मंच और रिहाई मंच द्वारा आयोजित सेमिनार को संबोधित किया. वरिष्ठ पत्रकार शहिरा नईम, सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती धुरु और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पाण्डेय ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया. उत्तर प्रदेश में हो रहे फर्जी एनकाउंटरों को लेकर आजमगढ़ और बाराबंकी के सन्दर्भ में रिपोर्ट भी जारी हुई.
इस मौके पर आज़मगढ़ से आए हीरालाल यादव जो की अपने भाई जामवंत यादव जो बाराबंकी जेल में बंद है की सुरक्षा को लेकर मंच के माध्यम से जनता से गुहार लगाई. कश्मीरी अवाम के सर्थन में परिवर्तन चौराहे पर कैंडल लाइट मौन प्रदर्शन कर लखनऊ वासियों ने अपनी एक जुटता ज़ाहिर की. इस मौके पर कन्नन गोपीनाथन भी मौजूद रहे.
कन्नन ने कहा कि जो लोग कश्मीर के मुद्दे पर चुप हैं वे राष्ट्र-द्रोही हैं क्योंकि देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार खतरे में है और जो लोग इसके खिलाफ नहीं बोलेंगे वे लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश में शामिल माने जाएंगे. उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि उसने कश्मीर में वह किया है जैसे माता-पिता अपने बच्चे को ठीक करने के लिए कड़वी दवा देने का काम करते हैं. किन्तु कड़वी दवा देने के बाद आप उनको रोने भी नहीं दें यह क्या उचित बात है? आज 77 दिन होने को आए हैं जब कश्मीर में पाबंदियां लगी हुई हैं. यदि यही काम हमारे प्रदेश के साथ किया गया होता तो भी क्या हम चुप बैठते? उन्होंने कहा कि शरीर के एक अंग को चोट लगती है तो दूसरें अंग को पता चलता है. किंतु कश्मीर के मामले में लोग गलती कर रहे हैं जो कह रहे हैं कि कश्मीर में क्या हो रहा है उससे उनको कोई मतलब नहीं. यह संकीर्ण सोच असल में राष्ट्र विरोधी सोच है. सवाल यह है कि हम कश्मीर के लोगों को इस देश का मानते हैं कि नहीं? यदि हम कश्मीर के लोगों के हित की चिंता नहीं करेंगे तो वे पाकिस्तान की तरफ देखेंगे. आज यदि आप सरकार विरोधी कोई बात करिए तो आपको देश विरोधी बता दिया जाएगा. सरकार और देश में अंतर होता है सरकारें तो आती-जाती रहती हैं किंतु देश तो बना रहता है. यह फर्क समझने की बहुत जरूरत है.