प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए ‘वाइब्रेंट गुजरात’ के नाम से निवेशक-खींचू आयोजन का जो सिलसिला आरंभ किया था, उसकी छूत धीरे-धीरे सभी राज्यों को लगती गई है लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी राज्य सरकार ने अपने भौगोलिक मानचित्र में ही बुनियादी बदलाव कर डाला है। आज के अखबारों के दिल्ली संस्करण में छपा झारखण्ड सरकार का पूरे पन्ने का विज्ञापन निवेशकों को उल्लू बनाने और संवैधानिक धाराओं की धज्जियां उड़ाने का एक दिलचस्प उदाहरण है।
कल से रांची के खेलगांव में ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट की शुरुआत हो रही है। इस सिलसिले में एक पन्ने का विज्ञापन राज्य सरकार ने अखबारों को जारी किया है जिसमें बाएं हाथ नरेंद्र मोदी और दाहिने हाथ मुख्यमंत्री रघुबर दास की फोटो लगी है। दोनों के ठीक बीचोबीच भारत का एक नक्शा है। उस नक्शे में झारखण्ड को लाल गोले से दर्शाया गया है।
अव्वल तो भारत का जो मानचित्र दिखाया गया है वही भ्रामक है। भारत का जो आधिकारिक भौगोलिक मानचित्र है, वह इस विज्ञापन में नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे हिंदूवादी संगठनों द्वारा उनके साहित्य में इस्तेमाल किए जाने वाले तथाकथित ”अखण्ड भारत” का नक्शा है। इतना ही नहीं, निवेशकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से इस नक्शे में झारखण्ड राज्य की पूर्वी सीमा को खींच कर समुद्र से छुआ दिया गया है जिससे यह आभास हो कि झारखण्ड समुद्रतटीय राज्य है। सच्चाई यह है कि झारखण्ड से व्यवसायिक बंदरगाह पश्चिम बंगाल का हलदिया पोर्ट कोई 400 किलोमीटर दूर पड़ता है।
इस नक्शे को करीब से देखने पर ऐसा लगता है कि राज्य की पूर्वी सीमा समुद्र से छू रही है। अव्वल तो भारत का नक्शा सरकारी नक्शा नहीं है जो अपने आप में एक अपराध है जिसके चलते सात साल की जेल का प्रावधान बनता है। दूसरे, नक्शे के स्केल पर न होने और झारखण्ड की सीमा को समुद्र में धकेलने का अपराध अक्षम्य है। संवैधानिक अपराध होने के अलावा यह विदेशी निवेशकों को मूर्ख बनाने की एक चाल भी है।
चूंकि यह विज्ञापन झारखण्ड सरकार के जन संपर्क विभाग ने जारी किया है और इस पर सीएम और पीएम दोनों की तस्वीर लगी है, लिहाजा संबद्ध एजेंसियों को इसका संज्ञान लेते हुए दोषी अधिकारियों को पकड़ना चाहिए और मामले की जांच होनी चाहिए कि आखिर इस मानचित्र को छापने की मंजूरी किसने दी और क्यों दी।