सत्येंद्र पीएस
इस कार्यक्रम का आयोजन पूर्व सांसद, फिल्मी हस्ती, महिलाओं के मसले पर मुखर रही नेता सुभाषिनी अली सहगल ने कराया। अहम बात यह है कि 1989 में गठित लोकसभा, जिसमें मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के लिए पारित की गई थी, उस लोकसभा में सहगल भी मौजूद थीं।
उन्होंने बताया कि मण्डल आयोग पर देश की सबसे बड़ी बहस हुई जिसमें हर सांसद बोला था।
उन्होंने बताया कि भाजपा के एक सांसद ने कहा कि अगर मण्डल रिपोर्ट लागू हुई तो मैं आत्म हत्या कर लूंगा। तो तमाम सांसद एक स्वर में बोल उठे कि कर लेना, कर लेना । वहीं उसी भाजपा में उमा भारती भी सांसद थीं । जब मण्डल रिपोर्ट लागू करने का प्रस्ताव पारित हुआ तो वह खुशी से सदन में नाचने लगीं और तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह से लिपट गई। सुभाषिनी ने बताया कि संसद में कोई भी पार्टी नहीं थी उस बहस में। करीब सभी वक्ताओं ने अपनी जातीय लोकेशन के मुताबिक अपनी बात रखी थी।
यह सब सुनकर मैं रोमांचित था! पहली बार यह तथ्य मेरे सामने आया । Dilip C Mandalजी ने बहुत विन्दुवार अपनी बात रखी। मैं तो अभी भाषण टाइप कुछ देने के लिए वार्म अप हो रहा था, तब तक भयंकर तूफान उठा। तूफान में भी कुछ अण्ड बंड बोलता रहा। कुछ उसी तरह का तूफान लगा, जैसा मण्डल की सिफारिशें लागू होने के वक्त उठा था!
हम हिले नहीं। सुभाषिनी जी ने कहा कि सब लोग अपनी अपनी कुर्सी उठाकर शेड में आ जाएं। वहां पहुंचे तो लाउडस्पीकर बन्द हो गया था। कुछ देर मैं बगैर माइक बोलता रहा। मेरी पीठ पर पानी पड़ा तो देखा कि सुभाषिनी जी पूरी तरह भीग चुकी हैं औऱ भीगते भीगते मेरी बात बड़े गौर से सुन रही हैं। शेड में किनारे खड़े दर्जनों लोग भीगते हुए मेरी बात सुन रहे थे।
मैंने भी बोलना बन्द कर सुभाषिनी जी को शेड के बीच किया। जो भाई कुर्सी पर बैठे थे, वो खड़े हो गए। सब लोग शेड में दुबके, कुछ लोग हॉल में घुस गए। मेरे मन मे अभी भी बना हुआ था कि माकपा के क्या यह आधिकारिक रुख था कि मण्डल कमीशन का विरोध किया जाए?
सुभाषिनी जी से मैं पूछ न सका, लेकिन नई पीढ़ी कहां चूकने वाली। दिल्ली हाई कोर्ट के वकील Lal Babu Lalit ने घेर लिया। उन्होंने भाकपा के मधुबनी के सांसद भोगेन्द्र झा नाम लेकर कहा कि उन्होंने सदन में ओबीसी रिजर्वेशन का विरोध किया था। सुभाषिनी जी ने उस लोकसभा में शरद यादव के भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि शरद भाई ने सदन में कहा था कि यहां तमाम लोग हैं जो अभी दलितों पिछड़ों के लिए 15 मिनट के भाषण में खूब हाय तौबा मचाएंगे कि उन्हें सबकुछ दे देना चाहिए। फिर उसके बाद एकशब्द का इस्तेमाल करेंगे “लेकिन” । उसके बाद उनका वंचितों के लिए सारा प्रेम खत्म हो जाएगा और वे अपनी जाति के हित मे लग जाएंगे। लाल बाबू ललित को सुभाषिनी ने बताया कि अपने जिसका नाम लिया, वो वही ‘लेकिन’ वाले थे कि लेकिन इससे पिछड़ों को कोई फायदा नही होने वाला । इस लेकिन पर सुभाषिनी ने भी सदन में हूटिंग की कि जब कोई फायदा नहीं होगा ओबीसी को, तो आपको कोई नुकसान भी नहीं होगा। लागू ही हो जाने दीजिए मंडल कमीशन! काहे का कष्ट है?
कुल मिलाकर यह समझ मे आया कि मण्डल कमीशन का विरोध माकपा के आधिकारिक स्टैंड नहीं था। पूरी संसद जाति में विभाजित थी। सब अपने लोकेशन के मुताबिक तर्क दे रहे थे। सुभाषिनी ने कहा कि इस समय सरकारी भर्तियों में लूट मची है। विभागीय रोस्टर लगाकर यूनिवर्सिटी में ओबीसी की सीटें लूटी जा रही हैं। 100 वैकेंसी आती है तो में 6 सीट ओबीसी होती है, 2 एससी और 1 एसटी होती है। इस सरकार ने सामाजिक न्याय को अन्याय में बदल दिया है।
सुभाषिनी ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि मंडल आयोग की सभी सिफारिशों पर बात हो। सदन में हाथ उठवाकर सांसदों से पूछा जाए कि आप मण्डल आयोग की सिफारिशों के पक्ष में हैं या विरोध में। वंचितों का हितचिंतक बनने वाले और फिर लेकिन लगाकर उनके अधिकारों के खिलाफ बोलने वालों का चेहरा साफ होना चाहिए।
इस अवसर पर दिलीप मंडल ने कहा कि आरक्षण राष्ट्र निर्माण की ओर उठा कदम है। अगर जातीय भेदभाव कर देश की 85 प्रतिशत आबादी को संसाधनों में हिस्सा नही दियागया, तो एक बेहतर राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। अब वक्त आगया है कि आरक्षण का विरोध करने वालों को राष्ट्र विरोधी करार दिया जाए, क्योंकि वे राष्ट्र निर्माण में बाधा पहुंचा रहे हैं।
सत्येंद्र पीएस वरिष्ठ पत्रकार हैं। हाल ही में ‘मंडल कमीशन’ पर उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हुई है जिसकी बड़ी चर्चा है।