सम्‍मान देने के नाम पर हिंदी में कैसे किया गया एक लेखक का लगातार अपमान, पढ़ें आपबीती…

विजय वर्मा कथा सम्मान, सामान और अपमान

प्रियदर्शन

2016 के आखिरी महीनों में कभी मेरे पास वरिष्ठ आलोचक भारत भारद्वाज का फोन आया। भारत भारद्वाज का मैं काफ़ी सम्मान करता हूं। उनकी अध्ययनशीलता और हिंदी के दूर-दराज के लेखकों पर उनकी नज़र और उनकी स्मृति उन्हें हिंदी साहित्य का चलता-फिरता आर्काइव बनाती है। इसलिए जब उन्होंने सूचना दी कि उन्होंने विजय वर्मा कथा सम्मान के लिए मेरे कहानी संग्रह ‘बारिश धुआं और दोस्त का चयन किया है तो मेरे लिए यह प्रसन्नता का विषय था। इसके बाद सम्मान के आयोजकों में एक संतोष श्रीवास्तव का फोन आया जिन्होंने मेरी स्वीकृति की पुष्टि की। अगले दिन फेसबुक पर उन्होंने ख़बर साझा की।

लेकिन कुछ दिन बाद मुझे एक वाट्सऐप संदेश ने हैरान कर दिया। प्रमिला वर्मा ने मुझे लिखकर भेजा कि उनके पास साधन कम पड़ गए हैं, इसलिए सम्मान समारोह के लिए अपने दिल्ली से अहमदाबाद आने-जाने की व्यवस्था मैं ख़ुद कर लूं। तब भी मैंने माना कि वाकई वे संकट में होंगी। लेकिन एक लेखक के तौर मुझे यह बात अक्सर चुभती है कि जब भी किसी आर्थिक समझौते की घड़ी आती है, वह लेखक के हिस्से पड़ती है। पुरस्कार के लिए अपने ख़र्चे पर अहमदाबाद जाऊं- यह मुझे मंज़ूर नहीं था। यह बात मैंने विनम्रतापूर्वक उनको लिख दी- साथ में सुझाया कि वे चाहें तो दो साल के कार्यक्रम साथ कर सकती हैं, या फिर दिल्ली आकर कार्यक्रम कर सकती हैं।

इसके कुछ समय बाद संतोष श्रीवास्तव ने मुझे फोन किया। मेरी उनसे लंबी बात हुई। पहली बार मैंने पूछा कि यह सम्मान जो आप दे रही हैं, उसकी राशि क्या है। उन्होंने बताया कि पांच हज़ार रुपये। फिर उन्होंने कहा कि वे मेरे आने-जाने के लिए एसी-3 का टिकट देने और एक दिन की व्यवस्था करने को तैयार हैं। मैंने कहा, यह ठीक है। फिर मैंने उनसे पूछा कि इस पर उनका ख़र्च क्या आएगा। उन्होंने कहा- छह-सात हज़ार रुपये। मैंने सुझाव दिया कि अगर वे यह रकम मुझे दे दें तो बाकी व्यवस्था मैं कर लूंगा। मैं फ्लाइट से सुबह आकर शाम को निकल जाऊंगा। क्योंकि मेरे लिए आयोजकों की व्यवस्था का एक प्रतीकात्मक मूल्य था। तब उन्होंने बताया कि होटल में भी वे मुझे किसी और लेखक के साथ ठहराने की बात सोच रही थीं। मैंने इससे मना कर दिया और उन्होंने मेरी साफ़गोई की तारीफ़ की। कहा कि वे बात करेंगी।

इसके बाद मेरे पास कोई फोन नहीं आया। फेसबुक से पता चला कि विजय वर्मा सम्मान के साथ होने वाला हेमंत स्मृति सम्मान कार्यक्रम हो चुका है। मैं हैरान था। इसके बाद अगले पूरे साल मुझे इन लेखिकाओं की ओर से कोई सूचना नहीं मिली। बेशक, मैंने अपनी ओर से भारत भारद्वाज को फोन किया- अक्सर इस आग्रह के साथ कि मैं यह पुरस्कार लेने से मना कर दूं। लेकिन भारत भारद्वाज ने बताया कि वे बहुत आहत हैं, ये रवैया उनका भी अपमान है। उन्होंने कहा कि अगर आपका कार्यक्रम नहीं होगा तो वे खुद को इससे अलग कर लेंगे। उन्होंने बताया कि यह तो 15000 का पुरस्कार है, आपको इतना ही मिलेगा। लेकिन मैंने फिर कहा कि रकम मायने नहीं रखती, रवैया गलत है।

फिर मैंने ख़बर देखी कि अगला विजय वर्मा सम्मान घोषित भी हो गया है और कार्यक्रम भी हो रहा है। मैंने एक संदेश संतोष श्रीवास्तव को मेसेंजर पर भेजा और भारत भारद्वाज को फोन किया। उन्होंने फिर मुझसे कहा कि मैं वापसी की घोषणा न करूं।

लेकिन आज सुबह 11.30 के आसपास संतोष श्रीवास्तव का फोन आया। उन्होंने कहा कि मैं भारत भारद्वाज के घर आ जाऊं और अपना सामान ले लूं।
मैं हैरान था। वे कैसे मान ले रही हैं कि मैं फुरसत में बैठा हूं और उनके एक फोन पर दौड़ा-दौड़ा जाकर उनका दिया सम्मान कबूल कर लूंगा? हिंदी में दो-दो सम्मान चला कर यश लूट रही ये लेखिकाएं आख़िर सम्मान का मतलब सामान तो नहीं समझती हैं? क्या हिंदी के लेखकों ने ही उन्हें इस तरह के असंवेदनशील व्यवहार की शह दी है? क्या इसके पीछे कोई कारोबारी दृष्टि है?

मैं नहीं जानता। एक-दो आत्मीय मित्रों ने यह संकेत ज़रूर किया कि इस सम्मान के साथ पहले भी ऐसा हुआ है। लेकिन इसकी पुष्टि वही लेखक कर सकते हैं जिनके साथ यह गुज़रा हो- अगर उनका आत्मसम्मान उन्हें कचोटता हो।

फिलहाल मैं इस सम्मान से अपने को अलग कर रहा हूं। क्योंकि इसमें लेखक के सम्मान की नहीं, अपमान की बू आती है।


प्रियदर्शन हिंदी के लोकप्रिय कथाकार और सजग पत्रकार हैं। फिलहाल एनडीटीवी में वरिष्‍ठ पद पर कार्यरत हैं।

First Published on:
Exit mobile version