ग्लोबलाइज़ेशन रंगमंच का दुश्मन है- थियोदोरस तेरज़ोपोलस

वैश्विक संस्कृति ने पारम्परिक कलाओ और रचनात्मकता के सामने गहरा संकट पैदा कर दिया है। लोग आभासी दुनिया में इस तरह उलझते जा रहे हैं कि वहां से बाहर आने पर उनके अंदर न तो शारीरिक शक्ति बचती है और न ही कल्पनाशीलता। यह स्थिति रंगकर्म के लिए बेहद चिंताजनक है। अभिनेता संवाद बोलते समय थकने लगे हैं और उनके चेहरे  भावशून्य हो रहे हैं और देहगतियाँ शिथिल पड़ रही हैं। 

– थियोदोरस तेरज़ोपोलस, इंटरनेशल थियेटर ओलंपिक्स कमेटी के चेयरमैन  

8वां थियेटर ओलंपिक्स भारत में हो रहा है। पिछले महीने की 17 तारीख को दिल्ली के लाल किले से इसका भव्य उदघाटन हुआ। 51 दिनों तक चलने वाला यह ओलंपिक्स दिल्ली के अलावा देश के अलग अलग बड़े शहरों में आयोजित किया जा रहा है। इस मौके पर  थियेटर ओलंपिक्स के संस्थापक और  इंटरनेशल थियेटर ओलंपिक्स कमेटी के चेयरमैन थियोदोरस तेरज़ोपोलस भारत आए थे और हमने उनसे इस ओलंपिक्स के उद्देश्यों पर चर्चा की।

ग्रीस के एक गांव में दर्जियों के परिवार में जन्मे  थियोदोरस तेरज़ोपोलस ने पूर्वी बर्लिन के बार्लिनेर एनसाम्बळ से नाटक की शिक्षा ली है। वो ब्रेख्त के नाट्य सिद्धांत और उनकी  राजनीतिक रंग अवधारणा में  गहरे दीक्षित हैं।

1993 में ग्रीस के डेल्फी शहर में थियोदोरस तेरज़ोपोलस ने प्राचीन ग्रीक दुखांत नाटकों के एक बड़े आयोजन के ज़रिये पारम्परिक नाटकों की विशेषताओं को आधुनिक कला के लिए काम लाने के पक्षों पर वैश्विक संवाद का एक मंच शुरू किया और उसका नाम रखा थियेटर ओलंपिक्स। तब से ही उन्होंने  रतन थियम, सुरेश अवस्थी, के एम पणिक्कर और मोहन महर्षि को इन आयोजनों का हिसेदार रखा है। “ये कोई मेला नहीं है। फॉलोअप इसका बहुत ज़रूरी अंग है।” ग्रीस, रूस, जर्मनी, जापान, तुर्की, चीन और ताइवान के बाद यह आठवां ओलम्पिक्स भारत में करते हुए वो इस बात से आश्वस्त हैं कि भारत की पारपरिक कला की विविधता और प्राचीनता, इस ओलंपिक्स के ज़रिये आधुनिक रंगमंच में नए प्राण फूंकेगी। रतन थियम आदि  के  काम से भली भाँति परिचित  थियोदोरस तेरज़ोपोलस उसे ठीक तो मानते हैं पर पर्याप्त नहीं।
परपरा को बचाने की बात कहते हुए उसी सांस में  थियोदोरस तेरज़ोपोलस कहते हैं कि बचाने भर से काम नहीं होगा उसका  पुनराविष्कार कर उसके और आधुनिक कला के बीच सेतु निर्मित करने होंगे। रूस के सेंट पीटर्सबर्ग  में 3 महीनों तक चले थियेटर ओलंपिक्स का उदाहरण देते हुए  थियोदोरस तेरज़ोपोलस ने बताया कि वहां आज भी निरंतरता बनी हुई है  और नए नए प्रयोग हो रहे हैं ज़्यादा से ज़्याद प्रस्तुतियां तैयार की जा रही हैं। उनके मुताबिक़ अमरीकी साम्राजयवाद और भूमंडलीकरण का जवाब प्राचीन  संस्कृतियों  के संगठनकारी तत्त्वों को उभारकर और नए सौंदर्यबोध के साथ पेशकर दिया  जा सकता है। भूमंडलीकरण की संस्कृति स्मृतियों के विरुद्ध कार्य करती है जबकि  थियोदोरस तेरज़ोपोलस मानते हैं कि रंगमंच में हम अपने शरीर, स्वर और चेष्टाओं  आदि के माध्यम  से स्मृतियों की पुनर्रचना करते  हैं।
प्रतिरोध के सतही रंगमंच के बारे में उनका मानना है ऊपर-ऊपर से सन्देश पिलाकर कुछ हासिल नहीं किया जा सकता, ज़रूरत गहरे उतरकर एक असरदार रंगकर्म की है। सरकारों और राजसत्ता द्वारा रंगगतिविधियों को प्रश्रय देने की आड़ में हस्तक्षेप और नियंत्रण का मजाक बनाते हुए  थियोदोरस तेरज़ोपोलस कहते हैं कि एक और नेता लोग खुद को अभिनेता समझते हैं और यह बात उनको दुस्साहसी बनाती है दूसरी ओरर. सरकारें दुखी जनता को मेले का एक तोहफा देकर सोचती हैं कि उनके जीवन में उन्होंने कुछ रंग घोल दिया। थियेटर ओलम्पिक कोई मेला नहीं है,  इसका उद्देश्य संवाद और शिक्षा  है।

राम सनेही

 


 

 

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