OBC, EBC और पसमांदा महिलाओं का पहला दो दिवसीय सम्‍मेलन कल से दिल्‍ली में शुरू

पिछड़ी-अतिपिछड़ी -पसमन्दा महिलाओं और की समस्याएं लगभग एक जैसी हैं, जिसमें अतिपिछड़ी-पसमन्दा महिलाओं की हालत और बदतर है

पिछड़े वर्ग से तात्पर्य सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों से है जिनकी सामजिक स्थिति पारम्परिक जातिगत पद्सोपानीय व्यवस्था में निम्न है, इन जातियों का एक बड़ा हिस्सा शैक्षिक तरक्की से वंचित है, इन जातियों का सरकारी सेवाओं में बेहद कम/नगण्य प्रतिनिधित्व है एवं व्यापर, वाणिज्य, उद्द्योगों में भी इनका बेहद कम प्रतिनिधित्व है (अध्याय 1,1.3, मंडल कमिशन रिपोर्ट).

पहला पिछड़ा वर्ग आयोग 29 जनवरी,1953 को अनुच्छेद 340 के तहत एक प्रेसिडेंशियल आर्डर द्वारा स्थापित किया गया था. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट 30 मार्च, 1955 को जमा की थी. इस रिपोर्ट को काका कालेलकर रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है. इस रिपोर्ट को पिछड़े वर्गों पर पहला सरकारी दस्तावेज माना जाता है लेकिन इस पर संसद में कोई बहस नहीं हुई. सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति जानने के लिए 20 दिसंबर, 1978  को मोरारजी देसाई की सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की। यह मंडल आयोग के नाम से चर्चित हुआ। मंडल आयोग ने ही सरकारी नौकरियों में पिछडे़ वर्गों के लोगों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी. प्रधानमन्त्री वी पी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिश को कुछ बदलाव के साथ लागू किया और मंडल आयोग की अधिसूचना 13 अगस्त 1990 को जारी हुई.

उपरोक्त सभी आंकड़ों/तथ्यों/रिपोर्ट्स में जो एक मामला मुख्यधारा से कटा हुआ है वह है पिछड़ी-अतिपिछड़ी-पसमन्दा जाति की महिलाओं का मुद्दा. पिछड़ी-अतिपिछड़ी-पसमन्दा जाति की महिलाओं की समस्याएं पिछड़े वर्ग के पुरुषों की समस्यांओं में ही विलुप्त हो जाती हैं और अक्सर महिलाओं को बराबर नहीं समझा जा रहा है, लेकिन पिछड़ी-अतिपिछड़ी-पसमन्दा वर्ग की महिलाओं की एक अलग पहचान,अलग समस्याएं और प्रतिनिधित्व और शोषण के अपने अलग मसले हैं जिन्हें लेकर एक चेतना और दबाव समूह की जरूरत है। पिछड़ी जाति की महिलाओं पर सरकरों द्वारा अलग से बनाई कोई रिपोर्ट नहीं मिलती है और न ही पिछड़ी जाति की महिलाओं के न्यायपालिका, उच्च शिक्षा, राजनितिक पदों/प्रतिनिधित्वों, सरकारी नौकरियों आदि में भागीदारी का भी अलग से कोई स्पष्ट आंकडा जारी किया गया है. आंकड़े और रिपोर्ट बनाने की जरूरत क्यूँ नहीं महसूस हुई या इस मामले पर क्यूँ कोई दबाव समूह नहीं सक्रीय रहे हैं, इस पर विचार करने की जरूरत है और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखने पर यह स्पष्ट रूप से जाहिर होता है कि पिछड़े वर्ग के आंदोलन और सरकारों में शामिल नेतृत्व हमेशा पुरुष प्रधान रहा है जिन्होंने पिछड़ी-अतिपिछड़ी-पसमन्दा जाति की समकक्ष महिलाओं को लेकर सचेत निर्णय नहीं लिए और उन्हें बराबर प्रतिनिधित्व भी नही  दिया गया है। आज जो भी पिछड़ी- अतिपिछड़ी- पसमन्दा महिलाएं अगर कहीं प्रतिनिधित्व कर भी रही हैं तो उसमें स्पष्ट रूप से रिश्तेदारी आधारित मामले चल रहे हैं और आम तौर पर पिछड़ी-अतिपिछड़ी-पसमन्दा महिलाओं की तमाम मुख्यधारा के क्षेत्रों में भागीदारी नगण्य है और उसका मसला समस्याजनित है।

कुछ समस्याएं और मांगें पिछड़ी-अतिपिछड़ी-पसमन्दा वर्ग की महिलाओं की है जिन्हें लेकर आगामी सरकारों,आन्दोलनकारियों  और नेतृत्वों को सोचना चाहिए जो निम्न हैं-

उपरोक्त मांगे हालिया अनुभवों से हैं, आगे के अनुभवों, शोधों  से पिछड़ी जातियों के मसले पर और बेहतर समझ बनाई जा सकती है. उपरोक्त सारे मसलों को लेकर आंकड़ें इकट्ठा किया जाएंगे। पिछड़ी-अतिपिछड़ी -पसमन्दा महिलाओं और की समस्याएं लगभग एक जैसी हैं, जिसमें अतिपिछड़ी-पसमन्दा महिलाओं की हालत और बदतर है। यह हम सभी की साझा लड़ाई है इस काम में आप सभी के सहयोग की अपेक्षा है। आप सभी लोग भी अपने स्तरों पर प्रयास करें और इस प्रयास को मजबूत करें।

कार्यक्रम में हिस्‍सेदारी सुनिश्चित करने के लिए नीचे दिए लिंक पर जाएं

https://www.facebook.com/events/341886716421438/

इसी कड़ी में ओबीसी-ईबीसी-पसमंदा वीमेन सॉलिडेरिटी प्लेटफॉर्म एवं बहुजन साहित्य संघ, जेएनयू की तरफ से 26-27 फरवरी को दो दिवसीय कार्यक्रम कराया जा रहा है। 26 फरवरी को पिछड़ी अतिपिछड़ी पसमन्दा महिलाओं के सामाजिक राजनीतिक शैक्षणिक सांस्कृतिक भागीदारी के प्रश्न पर चर्चा होगी एवं 27 फरवरी को बहुजन महिलाओं का एक सम्मेलन कराया जाएगा। आप सभी आमंत्रित है, हम चाहते हैं कि बहुजन महिलाएं आकर अपनी बात रखें या अपना सन्देश हमें भेजें, उनका सन्देश सम्मेलन में उनके नाम से पढ़ा जाएगा।

कनकलता यादव
शोधार्थी, दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र
जेएनयू,नई दिल्ली

First Published on:
Exit mobile version