सामाजिक न्याय आंदोलन को नए दौर में नए सिरे से आगे बढ़ाने के लिए बिहार की राजधानी पटना में आज राज्य के दर्जनों जिले के सामाजिक न्याय के लिए संघर्षशील संगठनों के प्रतिनिधियों व बुद्धिजीवियों का राज्यस्तरीय सम्मेलन हुआ.सम्मेलन का विचार था कि सामाजिक न्याय के नाम पर चल रही समर्पणकारी राजनीति से इतर पहलकदमी की जरूरत है।
पटना के श्रीकृष्ण चेतना परिषद हॉल, दारोगा राय पथ में आयोजित सम्मेलन को मुख्य वक्ता बतौर संबोधित करते हुए चर्चित बुद्धिजीवी अनिल चमड़िया ने कहा कि पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को जायज ठहराते हुए इसे खत्म नहीं किए जाने की बात की है. भागवत ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि आरक्षण को खत्म करने की बात इसका लाभ लेने वाला तबका ही करेगा. भागवत के इस बयान के निहितार्थ को समझने की जरूरत है. सच्चाई यह है कि आरक्षण दलितों-वंचितों के हाथ से तेजी से बाहर जा रहा है. कुछ सरकारी संस्थानों का ही इस दृष्टि से अध्ययन कर लिया जाए तो इसकी पूरी तस्वीर सामने आ जाएगी कि उन संस्थानों में बहुजनों का कितना प्रतिनिधित्व है.
सामाजिक न्याय के एजेंडे पर अपने रचनात्मक सुझाव रखते हुए उन्होंने कहा कि बिहार से यह आवाज उठाने की जरूरत है कि जो निजीकरण का समर्थक है, वह आरक्षण विरोधी है. उन्होंने कैपिटेशन शुल्क के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में होने वाले नामांकन का भी पुरजोर विरोध करने की वकालत की. उसी प्रकार शिक्षा-स्वास्थ्य का निजीकरण भी गरीब-दलित-आदिवासी- पिछड़ा- अति पिछड़ा-अल्पसंख्यक विरोधी है. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय का संघर्ष घर के भीतर-बाहर दोनों स्तरों पर चलाना होगा. स्त्रियों को गुलामी-शोषण से मुक्ति के लिए भी संघर्ष करना होगा. उन्होंने दलित-वंचिति तबके के भीतर सामाजिक न्याय से सम्बंधित साहित्य के प्रचार-प्रसार और चिंतन मन्थन की निरन्तर प्रक्रिया को चलाने पर जोर दिया ताकि इन तबकों के भीतर से गंभीर बुद्धिजीवी पैदा हो सकें. उन्होंने बहुजन शिक्षकों का बहुजन शिक्षक संघ बनाये जाने की जरूरत को भी रेखांकित किया. बहुजन शिक्षकों की सामाजिक न्याय की इस लड़ाई में अहम भूमिका हो सकती है. उन्होंने कहा कि किसी एक नेता पर हमारी निर्भरता नहीं होगी. हमें ढेर सारे प्रखर बुद्धिजीवी और ईमानदार-संघर्षशील नेतृत्व पैदा करना होगा. अपनी जनता को प्रतिक्रियावादी तरीके से उकसाने के बजाय रचनात्मक भूमिका लेते हुए आगे बढ़ना होगा. अंत में उन्होंने यह उम्मीद जताई कि सामाजिक न्याय का समग्र ढांचा बनाते हुए ही हम एक नई समाज व्यवस्था कायम करने में कामयाब होंगे!
सम्मेलन की शुरुआत में हरिकेश्वर राम ने वक्तव्य रखा.संचालन रिंकु यादव ने किया,अध्यक्षता की विष्णुदेव मोची ने. संबोधित किया-गौतम कुमार प्रीतम ,नवीन प्रजापति,विजय कुमार चौधरी,बाल्मिकी प्रसाद,अर्जुन शर्मा,केदार पासवान,रामानंद पासवान,मीरा यादव,अंजनी,जितेन्द्र ,आजाद,अमिश कुमार चंदन,जमशेद आलम सहित कई ने. अंत में रिंकु यादव ने बड़े अभियान से गुजरते हुए 26नवंबर-संविधान दिवस पर पटना में विशाल सामाजिक न्याय सम्मेलन करने की घोषणा की.
नये सिरे से सामाजिक न्याय आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए बिहार में -अब-सब मोर्चा, न्याय मंच, सोशलिस्ट युवजन सभा, वंचित समाज विकास मंच, जनसंसद, पीएसओ,सेवा स्तंभ,अतिपिछड़ा समन्वय समिति,अंबेडकर-बुद्ध जनकल्याण केन्द्र,सम सोसाईटी अॉफ इंडिया,नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट सहित अन्य संगठनों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं व सामाजिक न्याय पक्षधर बुद्धिजीवियों के इस साझा पहल को पूरे राज्य में काफी समर्थन मिल रहा है.इन संगठनों की पहल से अब तक पटना, भोजपुर, बिहपुर और नवगछिया(भागलपुर), खगड़िया, सीवान, हाजीपुर, गया, नालंदा, सासाराम, राजगीर सहित कई स्थानों पर सामाजिक न्याय सम्मेलन आयोजित हुआ है. इस कड़ी में सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का समग्र एजेंडा सूत्रबद्ध करने की दृष्टि से यह काफी महत्वपूर्ण सम्मेलन था.
रिंकु यादव की रिपोर्ट