‘शिक्षा बजट 2020-21’ आम जनता की उम्मीदों से कोसों दूर-अम्बरीष राय

“सार्वजनिक शिक्षा की कमजोर बुनियाद पर घोषित डिजिटलाइजेशन और ऑनलाइन पाठ्यक्रम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बजाय भेदभावपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करेंगे. आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक, अम्बरीष राय ने वित्तमंत्री, निर्मला सीतारमण द्वारा आज केंद्रीय बजट 2020-21 पेश किये जाने के बाद निराशा प्रकट करते हुए कहा कि सरकार शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद के कम-से-कम 6 फीसदी बजट आवंटन की लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करने में एक बार फिर विफल रही है.

संपूर्ण शिक्षा क्षेत्र के लिए केवल 99,300 करोड़ रुपये और स्कूली शिक्षा के लिए महज 59845 करोड़ रुपये (पिछले वर्ष के 56537 करोड़ में से केवल 3308 करोड़ रुपये की न्यूनतम वृद्धि) के बल पर शिक्षा के सर्वव्यापीकरण के लक्ष्य को हासिल करना कतई असंभव है.

उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुल बजट में शिक्षा व्यय का हिस्सा 2018-19(ए) में 3.5% से घटकर 2020-21 (बीई) में 3.3% रह गया है, जबकि राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के बजट में भी भारी कटौती की गई है (2019-20 (BE) में आवंटित 2100 करोड़ रु की तुलना में 2020-21 (बीई) में महज 300 करोड़ आवंटित). यहाँ तक कि अपने ढाई घंटे के लंबे भाषण के दौरान, वित्त मंत्री ने स्कूली शिक्षा का अलग से उल्लेख तक नहीं किया, इस तथ्य के बावजूद कि लाखों बच्चे अभी भी स्कूल से बाहर हैं.

प्रैस विज्ञप्ति हिन्दी RTE Forum (Union Budget 2020-21)

 

श्री राय ने कहा कि मौजूदा बजट न केवल शिक्षा के मौलिक अधिकार कानून 2009 के जमीनी क्रियान्वयन व विस्तार के प्रति सरकार की गैरजवाबदेही एवं ढुलमुल रवैये का परिचायक है बल्कि यह स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सरकार द्वारा लगातार किये जा रहे सतही दावों और गरीब आम जनता की शिक्षा के क्षेत्र में भागीदारी के प्रति उदासीन नजरिए की पोल खोल देता है. उन्होने कहा कि अगर सरकार पूर्व प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (3-18 वर्ष) तक शिक्षा अधिकार कानून 2009 के विस्तार करने का इरादा रखती है, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में सिफारिश की गई है तो उसे पर्याप्त बजट मुहैया कराना ही होगा.

अम्बरीष राय

श्री राय ने आगे कहा कि अभी भी बच्चों की एक बड़ी संख्या (जनगणना 2011 के मुताबिक 8.6 करोड़), स्कूल के बाहर है, देशभर में 10.1 लाख शिक्षकों की कमी है, तकरीबन 2 लाख सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं और विलय के नाम पर तमाम राज्यों में सरकारी स्कूलों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. शिक्षा अधिकार कानून, 2009 के लागू होने के तकरीबन एक दशक होने को आये हैं लेकिन 15 लाख सरकारी स्कूलों में से केवल 12.7फीसदी में ही अभी आरटीई के प्रावधान लागू हो सके हैं.

ऐसे में शिक्षा को लेकर सरकारकी प्राथमिकता और कोई ठोस रोडमैप बनाने के प्रति उदासीनता सहज ही समझी जा सकती है. बजट अभिभाषण में शिक्षा के डिजिटलाइजेशन और ऑनलाइन पाठ्यक्रमकी बात कही जा रही है लेकिन हकीकत ये है कि बजट के मोर्चे पर शिक्षा के प्रति लगातार उपेक्षा दलित-वंचित, अल्पसंख्यक समेत गरीब, हाशिये के समुदायों और लड़कियों की शिक्षा पर सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। “बेटी बचाओ, बेटी पढाओ” का नारा देनेवाली और 2014 में सत्ता में आने से पहले अपने घोषणा-पत्र में शिक्षा पर 6 फीसदी खर्च का वायदा करने वाली सरकार जब इस तरहके बजट की घोषणा करती है तो 2030 तक उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (एसडीजी लक्ष्य 4) को सार्वभौमिक बनाने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का अंदाज लगाया जा सकता है.

श्री अंबरीश राय ने कहा कि सरकार शायद बजट बनाते वक्त भूल गई कि शिक्षा में निवेश न केवल आमजनता की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बदलने में अहम भूमिका निभाता है, बल्कि आर्थिक विकास में इजाफा के साथ किसी भी देश के समावेशी विकास की मूल कुंजी है.


विज्ञप्ति : मित्ररंजन, मीडिया समन्वयक, आरटीई फोरम द्वारा जारी 

 

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