‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के नेता डॉ. दर्शन पाल को सोमवार को, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में वक्तव्य देने का मौका दिया गया। वहां उन्होंने तीन कृषि क़ानूनों, एमएसपी और किसान आंदोलन पर किसानों का पक्ष रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र से अपील की वह भारत सरकार को, संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय किसान घोषणापत्र का पालन करने को बाध्य करे।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में डॉ दर्शन पाल का भाषण
मेरा नाम दर्शन पाल है और मैं भारत में एक किसान हूं। मैं आभारी हूं कि संयुक्त राष्ट्र, आज हमको सुन रहा है।
हम भारतीय किसान अपने देश से प्रेम करते हैं और हमको उस पर गर्व है। हम संयुक्त राष्ट्र पर भी गर्व का अनुभव करते हैं कि जिसने किसानों के अधिकारों का घोषणापत्र जारी किया, ताकि दुनिया भर के छोटे किसानों के हितों की रक्षा हो सके।
मेरे देश ने भी इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.. और कई सालों तक, इससे किसानों के हित सुरक्षित रहे। इसमें किसानों की फसल के उचित मूल्यांकन के द्वारा, उनकी गरिमापूर्ण आजीविका सुनिश्चित करना भी एक हिस्सा था। जिसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कहते हैं..
हमारे पास एक अच्छा बाज़ार तंत्र था, जिसका प्रयोग ग्रामीण आधारभूत ढांचे के विकास में होता था और साथ ही हम अदालत में भी जा सकते थे।
नए कृषि क़ानूनों में ये सब हमसे छीना जा रहा है..
ये क़ानून, हमारी आय दोगुनी नहीं करने वाले हैं। जिन कुछ राज्यों में पहले ऐसी ही नीति लागू की गई है, उन्होंने किसानों को गरीबी की चपेट में आते देखा है। वे अपनी ज़मीनें गंवा कर, मज़दूरी करने को मजबूर हैं ।
हमको सुधार तो चाहिए, पर ऐसे सुधार नहीं चाहिए..
यूएन का घोषणापत्र, देशों को बाध्य करता है कि कि नई योजना-नीति लागू करने से पहले, किसानों से सलाह लें।
हम संयुक्त राष्ट्र से विनम्र निवेदन करना चाहते हैं कि कि हमारी सरकार से घोषणापत्र का सम्मान करने को कहें – कि सरकार क़ानून वापस ले और किसानों से बात करे और फिर किसान के हित में नीतियां बनाकर लागू करे। साथ ही ऐसी नीतियां बनाए, जो कि पर्यावरण के भी हित में हों।
जैसा कि किसानों के लिए घोषणापत्र में उल्लिखित है..
भाषण का अनुवाद- मयंक सक्सेना