बलात्कारी से शादी का सुझाव: चौतरफ़ा आक्रोश, चीफ़ जस्टिस को खुला पत्र, इस्तीफ़े की माँग!

बहुत हुआ। आपके शब्द न्यायालय की गरिमा और अधिकार पर लांछन लगा रहे हैं। वहीं मुख्य न्यायाधीश के रूप में आपकी उपस्थिति देश की हर महिला के लिए एक ख़तरा है। इससे युवा लड़कियों को यह संदेश मिलता है कि उनकी गरिमा और आत्मनिर्भरता का कोई मूल्य है। मुख्य न्यायलय की विशाल ऊँचाइयों से बाकी न्यायालयों और तमाम न्याय पालिकाओं को यह संदेश जाता है कि इस देश में न्याय महिलाओं का संविधानिक अधिकार नहीं है। इससे आप उस चुप्पी को बढ़ावा दे रहे हैं जिसको तोड़ने के लिए महिलाओं और लड़कियों ने कई दशकों तक संघर्ष किया है। और आखिर में इन सब से, बलात्करिओं को यह संदेश जाता है कि शादी बलात्कार करने का लाइसेंस है, और इससे बलात्कारी के सारे अपराध धुले जा सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्ययाधीश एस.ए. बोबडे ने 1 मार्च को नाबालिग से बलात्कार मामले में सुनवाई के दौरान आरोपी को सुझाव दिया था कि वह पीड़िता से शादी करके जेल और सज़ा से बच सकता है। उनके इस सुझाव पर नारीवादियों और महिला समूहों ने कड़ी आपत्ति जतायी है। तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों ने चीफ़ जस्टिस बोबडे के बयान के ख़िलाफ खुले पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। इस पत्र में माँग की गयी है कि मुख्य न्यायाधीश अपने बयान के लिए माफ़ी माँगें और पद से इस्तीफ़ा दें। उनका कहना है कि एक बलात्कारी को पीड़िता से शादी करने के बारे में पूछने के लिए और वैवाहिक बलात्कार का समर्थन करने या उसकी पीड़ा को नज़रअंदाज़ करने  जैसा है। इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को इस्तीफा देना होगा।

नारीवादी और महिला समूहों की तरफ से चीफ़ जस्टिस को खुला पत्र

 

श्री शरद अरविन्द बोबडे

हम, भारत के तमाम नारीवादी आंदोलनों और सचेत नागरिकों की तरफ से, मोहित सुभाष चव्हाण बनाम महाराष्ट्र सरकार और अन्य की 1 मार्च 2021 को हुई सुनवाई के दौरान, आपके द्वारा की गई गई टिप्पणियों पर हम अपना क्षोभ और क्रोध व्यक्त करना चाहते हैं।

आप एक ऐसे आदमी की गिरफ़्तारी के खिलाफ याचिका सुन रहे थे जिसपर एक नाबालिग लड़की का पीछा करने, हाथ और मुँह बाँधकर उसका बार-बार बलात्कार करने का आरोप है। साथ ही उसको पेट्रोल से जलाने, तेज़ाब फेंकने और उसके भाई की हत्या की धमकी देने का भी आरोप है। सच तो यह है कि यह मामला सामने तब आया जब स्कूल में पढ़ने वाली इस नाबालिग पीड़िता ने आत्महत्या करने की कोशिश की। सुनवाई के दौरान आपने इस आदमी से पूछा कि क्या वह पीड़िता से शादी करने के लिए राज़ी है, और साथ ही यह भी कहा कि उसे किसी लड़की को आकर्षित कर के उसका बलात्कार करने से पहले उसके परिणामों के बारे में सोचना चाहिए था। मुख्य न्यायाधीश साहब, मगर क्या आपने यह सोचा कि ऐसा करने से आप पीड़िता को उम्र भर के बलात्कार की सजा सुना रहे हैं? उसी ज़ुल्मी के साथ जिसने उसको आत्महत्या करने के लिए बाध्य किया?

हम भीतर से इस बात के लिए आहत महसूस कर रहे हैं हम औरतों को आज हमारे मुख्य न्यायाधीश को समझा पड़ रहा है कि आकर्षण, बलात्कार और शादी के बीच के अंतर होता है। वह मुख्य न्यायाधीश जिन पर भारत के संविधान की व्याख्या कर के लोगों न्याय दिलाने की ताकत और ज़िम्मेदारी है।

श्री बोबडे जी, आकर्षण का मतलब है जहाँ दोनों भागीदारों की सहमति हो। बलात्कार उस सहमति का, और एक व्यक्ति की शारीरिक मर्यादा का उल्लंघन है, जिसका मतलब हिंसा होता है। किसी भी हाल में दोनों को एक सामान नहीं समझा जा सकता।

एक दूसरे मामले में (विनय प्रताप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार) भी आपने पूछा, “यदि कोई पति – पत्नी की तरह रह रहे हों, तो पति क्रूर हो सकता है लेकिन क्या किसी शादीशुदा जोड़े के बीच हुए संभोग को बलात्कार का नाम दिया जा सकता हैं? इस टिप्पणी से न सिर्फ पति के यौनिक, शारीरिक और मानसिक हिंसा को वैधता मिलती है, पर साथ ही औरतों पर हो रहे सालों के अत्याचार और उसके लिए न्याय न मिलने की प्रक्रिया को भी एक सामान्य बात होने का दर्जा मिल जाता है।

मुंबई हाई कोर्ट ने सेशंस कोर्ट द्वारा मोहित सुभाष चव्हाण को दी गई बेल आदेश की निंदा करते हुए कहा कि “न्यायाधीश का यह नज़रिया, ऐसे गंभीर मामलों में उनकी संवेदनशीलता के अभाव को साफ़ साफ़ दर्शाता है।” यही बात आप पर भी लागू होती है, हालाँकि उसका स्तर और भी तीव्र है। एक नाबालिग के साथ बलात्कार के अपराध को आपने जब शादी के प्रस्ताव के एक ‘सौहार्दपूर्ण समाधान’ की तरह पेश किया, तब यह न केवल अचेत और संवेदनहीन था – यह पूरी तरह से भयावह और पीड़िता को न्याय मिलने के सारे दरवाज़े बंद कर देने जैसा था।

भारत में औरतों को तमाम सत्ताधारी लोगों की पितृसत्तात्मक सोच से झूझना पड़ता है, फिर चाहे वो पुलीस अधिकारी या न्यायाधीश ही क्यों न हो – जो बलात्कारी के साथ समझौता करने वाले समाधान का सुझाव देते हैं।

“लेकिन ऐसे समझौते की सच्चाई तब समझ आती है जब अनेक निर्णय में यह लिखा जाता है कि कैसे पीड़िता या उसके किसी रिश्तेदार ने आत्महत्या कर ली या उनका कत्ल किया गया, बलात्कारी के साथ ऐसे समझौते को नकारने के कारण।” (‘It is Not the Job of Courts to Arrange ‘Compromise Marriages’ of Rape Survivors’, The Wire, 26 June 2015)

हम साक्षी थे जब आपके पूववर्ती अपने पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप की खुद सुनवाई की और खुद ही फैसला सुना दिया और उनपर लगे आरोपों को झूठा करार कर फरियादी और उसके परिवार पर मुख्य न्यायालय के पद का अपमान करने और चरित्र हनन करने का आरोप लगाया गया। तब आपने उसकी निष्पक्ष सुनवाई न करके, या एक जाँच न कर कर, आपने उस गुनाह में अपनी भागीदारी की। एक दूसरे मामले में, जब एक बलात्कार के अपराधी को अपराध से मुक्त किया गया तब उसके ख़िलाफ़ पेश किए गए याचिका को आपने यह कहकर रद्द कर दिया कि औरत के “धीमे स्वर में न का मतलब हाँ होता है।” आपने पूछा कि औरत किसानों को आंदोलन में क्यों “रखा” जा रहा है और उनको “वापस घर भिजवाने” की बात की- इसका मतलब यह हुआ कि औरतों की अपनी स्वायत्तता और व्यक्तित्व नहीं है, जैसे की मर्दों का होता हैं। और फिर कल आपने कह दिया की एक पति के द्वारा अपने पत्नी पर किए जाने वाले शोषण को बलात्कार नहीं माना जा सकता है।

बहुत हुआ। आपके शब्द न्यायालय की गरिमा और अधिकार पर लांछन लगा रहे हैं। वहीं मुख्य न्यायाधीश के रूप में आपकी उपस्थिति देश की हर महिला के लिए एक ख़तरा है। इससे युवा लड़कियों को यह संदेश मिलता है कि उनकी गरिमा और आत्मनिर्भरता का कोई मूल्य है। मुख्य न्यायलय की विशाल ऊँचाइयों से बाकी न्यायालयों और तमाम न्याय पालिकाओं को यह संदेश जाता है कि इस देश में न्याय महिलाओं का संविधानिक अधिकार नहीं है। इससे आप उस चुप्पी को बढ़ावा दे रहे हैं जिसको तोड़ने के लिए महिलाओं और लड़कियों ने कई दशकों तक संघर्ष किया है। और आखिर में इन सब से, बलात्करिओं को यह संदेश जाता है कि शादी बलात्कार करने का लाइसेंस है, और इससे बलात्कारी के सारे अपराध धुले जा सकते हैं।

हमारी माँग है कि आप अपने इन शर्मनाक निर्णय को वापस लें और देश की सभी औरतों से माफ़ी माँगें। हम चाहते है कि एक पल की भी देरी किया बिना आप मुख्य न्यायाधीश के पद से इस्तीफ़ा दें।

 

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