सर्कस में हंसाने वाले लॉकडाउन में भूख से तड़पे, मधेपुरा में फंसे हैं 200 लोग

“हमारी टीम में करीब पैंतीस लोग है लेकिन पूरे मेला स्थल पर लगभग 200 लोग फंसे हुए हैं. मेरे छोटे-छोटे बच्चे है जिन्हें दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा है. साथ में जानवर भी है उसे भी नहीं खाना खिला पा रहा हूँ. हमारे जितने भी सहयोगी हैं सब टूट चुके है किसी के पास अब हिम्मत नहीं है सबके परिवार भुखमरी की स्थिति में आ गए हैं. हमलोग दूसरे लोगों को सर्कस दिखा कर ही खुद का पेट भरते थे, दूसरों को हंसाते थे, लेकिन आज हमें देखने वाला कोई नहीं है.” इतना कहते हुए सिंहेश्वर मेला ग्राउंड में फंसे एक सर्कस के मैनेजर रो पड़े.

बिहार के मधेपुरा जिला अन्तर्गत सिंहेश्वर में महाशिवरात्रि के अवसर पर लगने वाले विशाल मेला ने इस बार सैकड़ों परिवारों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया है. ये लोग फरवरी से ही यहां फंसे हुए हैं. चूँकि यह मेला एक माह का होता था और इसे देखने के लिए न केवल बिहार के विभिन्न जिले के लोग आते थे बल्कि पड़ोसी राज्य और पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग आते थे. लॉकडाउन की वजह से मेला तय समय से पहले खत्म हो गया और यहाँ बाहर से आये कलाकार और कर्मी फंस गये. ये संख्या करीब दो सौ लोगों की है जो अब भुखमरी के शिकार हो रहे हैं.

अन्य देशों के बाद जब भारत में कोरोना की मार शुरू हुई तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन के पहले एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया और उसके बाद तो 24 मार्च से 21 दिनों के लिए लॉकडाउन लगा दिया. और बाद में इसे बढ़ाकर 17 मई तक कर दिया गया. चूँकि कोरोना का सटीक इलाज किसी देश के पास नहीं है. इसका सबसे अच्छा इलाज बचाव है जो एक दूसरे के बीच शारीरिक दूरी कायम करने से ही संभव है. ऐसे में ये सब यहीं फंस गये हैं.

दर्शन कुमार जो जोकर का काम करते हैं कहते हैं कि हमलोग प्रतिदिन काम कर कमाने वाले है खाने वाले है. आज दो माह से बैठे हुए हैं. बैठ के कब तक खाएंगे, कहाँ से अनाज पानी जुटा पाएंगे. दर्शऩ कुमार ने कहा कि सरकार दो बार राशन दी है लेकिन वो भी कितना करेगी. कुछ सामान होता है जो बाहर से खरीदना ही होता है लेकिन आज हमारे पास कोई पैसा नहीं है. तो कहाँ से खरीद पाउँगा. बैठ के खाने से पेट कैसे चलेगा. बात करते हुए लोगों को हमेशा अपने करतब से हंसाने वाला जोकर दर्शन आज मायूस दिख रहा था. रुंधे गले से दर्द बयाँ करते करते चुप हो गया.

सिंहेश्वर मन्दिर न्यास समिति के पूर्व सदस्य सरोज कुमार कहते है कि मेला ग्राउंड में करीब 200 लोग फंसे हुए हैं. ये सभी लोग बहुत ही बुरी स्थिति में हैं. इन लोगों के मालिक तो किसी तरह यहाँ से अपने घर चले गये हैं लेकिन ये अपने सामान, जानवर, झुला, दूकान आदि के साथ यहीं फंस गये हैं. इनलोगों को जिला प्रशासन द्वारा आपदा राहत से तीन बार पांच-पांच किलोग्राम का सूखा राशन पैकेट उपलब्ध करवाया गया है लेकिन वो पर्याप्त नहीं है. अधिकांश के छोटे छोटे बच्चे हैं जिन्हें दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा है. इनके साथ जानवर भी हैं, जिससे ये लोग सर्कस में करतब दिखाते थे. इन जानवरों के खाने के लिए भी राशन नहीं है. इन कर्मियों के पास पैसे नहीं हैं कि वो कुछ खरीद कर जानवरों को खिला पाए.

मेले में दुकान लगाने वाले फूल कुमार बताते है कि पूरे जीवन भर वो विभिन्न जगह जाकर मेला में दूकान लगा कर अपने परिवार का पेट पालते रहे हैं लेकिन इस स्थिति ने उन्हें और उन जैसे 200 परिवारों को कई वर्ष पीछे धकेल दिया है. जिससे अभी निकट में उबरने का कोई संभावना नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि पहले तो कोरोना के कारण लॉकडाउन में भूख से मर ही रहे थे लेकिन अब तो मौसम की भी मार शुरू हो गयी है. खुले आसमान के नीचे दुकानदार अपना कीमती सामान रखने को विवश हैं. पिछले दिन आये भयावह आंधी तूफ़ान से सारे शीशे के सामान फूट गये है, बिक्री के सामान, कॉस्मेटिक के महंगे सामान भींग चुके हैं. जिनकी अब भरपाई नहीं हो सकती. आँख में आंशू आते देख खुद को हंस हंस कर बात करने लगे लेकिन रोते दिल से कहते है साहब हमलोग तो अब लुट चुके. क्या खायेंगे बच्चे, क्या खायेंगे मां बाप.

फूल कुमार के बगल में फूटे हुए शीशे के सामान को सुखाने की कोशिश कर रहे मो. अली अपने नष्ट सामानों को सर पर हाथ रख निहार रहे थे और खुद को कोस रहे थे. बात करते हुए बताया कि साहब ऐसी जिन्दगी भगवान दुश्मन को भी न दे. आज न खाने को राशन है न पीने को शुद्ध पानी. स्थानीय न्यास समिति की मेहनत से हम लोगों को दो बार आपदा विभाग से कुछ राशन मिला है, लेकिन हम लोगों के लिए ये पर्याप्त नहीं है. हम लोगों के पास पैसे नहीं हैं, वो खत्म हो के हैं, इसलिए न हम लोग कहीं जा सकते है न कुछ खरीद सकते हैं. इस बार ऐसे भी मेला बढ़िया नहीं चला था. पहले एक महीना से अधिक मेला चलता था लेकिन इस बार करीब पन्द्रह दिन ही मेला चला. गाँव में बच्चे बीमार हैं इलाज नहीं हो पा रहा है.

मेले में इस वर्ष नुकसान की बात करें तो लाखों का है. अभी लगातार मौसम के मार ने बहर से आये व्यापारियों को लाखों का नुकसान पहुँचाया है. अभी बुधवार को आयी आंधी ने सामान को ढके गये चदरा, बांस बल्ली सबकों उड़ा लिया. काफी खोज बीन के बाद भी कर्मी उन बांस और चदरों को नहीं खोज पाए. अब यहाँ फंसे लोगों के लिए ये संकट खड़ा हो गया है कि वो खुद की रक्षा करें या अपने कीमती सामानों की.

स्थानीय लोग कहते हैं कि प्रशासन और सरकार को इन लोगों के बारे में सोचना चाहिए. क्षेत्र के विधायक को भी कम से कम ध्यान देना चाहिए कि उनके क्षेत्र में हर वर्ष इन्हीं लोगों की मेहनत से उनका क्षेत्र मेला से गुलजार होता है और उनके क्षेत्र का नाम केवल राज्य में ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश में भी होता है.

मेला से राजस्व की बात करें तो वो लाखों में है. जिला प्रशासन ने इस वर्ष भी इस मेले का ठेका 30 लाख में जितेन्द्र कुमार सिंटू को दिया था. चूँकि एक बड़ी धनराशि जिला प्रशासन को इस मेले से मिलती है इसलिये आज इन फंसे लोगों की भी सुध लेने के लिए प्रशासन को आगे आना चाहिए.


प्रशांत कुमार

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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