मृत्युदंड से अपराध कम होने का कोई डाटा मौजूद नहीं है : कोलकाता हाईकोर्ट

देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और हाल ही में हैदराबाद में हुई बलात्कार की घटना के बाद जहां चारो तरफ अपराधियों के लिए फांसी की सज़ा की मांग हो रही है और दिल्ली महिला आयोग की चेयरमैन आमरण अनशन पर बैठी हुई है, ठीक उसी समय कोलकाता उच्च न्यायालय का एक फैसला आया है जिसमें कहा गया है कि कोई आंकड़ा यह साबित नहीं करता कि मृत्युदंड से अपराध में कमी आती है।पढ़िए


मृत्युदंड देने से अपराध में कमी आएगी, ये सुनिश्चित करने के लिए ठोस सांख्यिकीय डाटा उपलब्ध नहीं है, कोलकाता हाईकोर्ट ने ये कहते हुए एक आदतन अपराधी की मृत्युदंड के संदर्भ में की गई अपील को अनुमति दे दी।

दोषी अपीलकर्ता अंसार रहमानंद को दो मौकों पर व्यापारिक मात्रा से अधिक की हेरोइन रखने के आरोप में दोषी ठहराया जा चुका है और उसे एनडीपीएस एक्ट के तहत सजा दी गई है। उसके बाद भी उसे 3.5 किलोग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया, जिसके बाद अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश ने ये देखते हुए कि अपीलकर्ता में बार-बार जुर्म करने की स्पष्ट प्रवृत्ति दिखाई दे रही है, और उसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है, उस मौत की सजा दे दी।

सजा कम करते हुए, ज‌‌स्टिस जोयमाल्या बागची और जस्टिस सुव्रा घोष ने कहा, “अपीलार्थी को मौत की सजा देना भविष्य में दूसरों को ऐसा ही अपराध करने से रोक भी सकता है, नहीं भी रोक सकता है। हालांकि, अभियोजन पक्ष की ओर से मेरे पास कोई सांख्यिकीय डाटा या आनुभविक अध्ययन पेश नहीं किया गया है, जिससे निर्णायक रूप से ये स्थापित हो सके कि मौत की सजा देने से निश्चित रूप से समाज में दूसरे द्वारा ऐसा अपराध करने में कमी आएगी।

अपराध के 15 आंकड़ों में मृत्युदंड के निवारक प्रभाव के संबंध में स्पष्ट और असंद‌िग्ध सबूतों के अभाव में, मैं मौत की सजा देने का इच्छुक नहीं हूं, जबकि 30 वर्ष के सश्रम कारावास की वैकल्पिक सजा उपलब्ध है और वो एनडीपीएस एक्ट की धारा 32-ए में बताए गए निषेधों की की रोशनी में छूट की किसी भी संभावना के बिना, अपराधी की ओर से जुर्म की पुनरावृत्ति की किसी भी वास्तविक संभावना को खत्म कर, दंड विधान के समानुपातिक उद्देश्य की पूर्ति करेगा।” अदालत ने कहा कि 30 साल तक के सश्रम कारावास की सजा अपीलकर्ता सुधार गृह से छूटने के बाद दोबारा उसी अपराध में संलिप्त होने की किसी भी वास्तविक आशंका को खत्म करता है। बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य, 1982 (3) एससीसी 24 के मामले पर भरोसा किया गया। हाईकोर्ट ने इसी आदेश से सह-अभियुक्त, दीपक गिरी की ओर से दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया, जिस पर किराए के उस परिसर के कब्जे का आरोप था, जहां 50 किलोग्राम हेरोइन बरामद की गई थी।

अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने कहा था कि परिसर इकलौता उसी के कब्जे में नहीं था और एनडीपीएस एक्‍ट की धारा 67 के तहत दर्ज उसके बयान पर भरोसा किया, जिसमें उसने स्वीकार किया था कि वह उस परिसर में किरायेदार थे और अंसार रहमान के साथ हेरोइन के धंधे में लिप्त था। हाईकोर्ट ने हालांकि दोनों बरामदगियों, अंसार रहमानंद से 3.5 किलोग्राम हेरोइन और दीपक गिरी से 50 किलोग्राम हेरोइन, को गड्डमगड्ड करने के लिए ट्रायल कोर्ट की आलोचना की।

हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों बरामदगियों स्पष्ट रूप से एक दूसरे से अलग थीं, हालांकि वे एक ही लेनदेन के दौरान हुई हो सकती हैं। हाईकोर्ट ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में, ये ट्रायल जज पर था कि प्रत्येक बरामदगी के संबंध में अलग-अलग चार्ज फ्रेम किए जाते, जिसमें उस आरोपी की पहचान होती, जिससे बरामदगी ‌की गई है, साथ ही बरामदगी का स्‍थान और समय दर्ज किया जाता।” हाईकोर्ट ने कहा कि वो इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं है कि केवल इसलिए कि ट्रायल जज ने आरापों में गड्डमगड्ड किया है, आरोपियों को दंडविराम नहीं दिया जा सकता, जब तक कि ये न्याय की विफलता को मौका न दे।

“प्रस्ताव की जांच उस दृष्टिकोण से करते हुए, हम अभियुक्तों के कहने पर की गई व्यापक जिरह के विश्लेषण से निष्कर्ष निकालते हैं, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत परीक्षण के वक्त दिए गए उनके जवाब शामिल हैं, आरोपों के निर्धारण में हुईं उपर्युक्त अनियमितताओं के बावजूद, आरोपी व्यक्तियों को उन पर लगाए गए आरोपों के बारे में पूरी तरह से पता था और उन्होंने आपराधिक जांच प्रक्रिया संहिता के 313 के तहत उन पर लगाए गए आरोपों के खिलाफ, पूछे गए सवालों के जवाब देकर और गवाहों से जिरह करके, प्रभावी ढंग से बचाव किया।

इसलिए हमारा मानना है कि उक्त आरोपों को तय गड्डमगड्ड तरीके से तय किया गया, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 218 का भी कड़ाई से अनुपालन नहीं किया गया, फिर भी न तो अपीलकर्ताओं के साथ पक्षपात हुआ और न ही न्याय की विफलता हुई।” अपीलकर्ताओं का प्रतिनिधित्व एडवोकेट जयंत नारायण चटर्जी, अपलक बसु, मौमिता पंडित, इंद्रजीत डे और जयश्री पात्रा ने किया। केंद्र की ओर से एडवोकेट जीबन कुमार भट्टाचार्य और उत्तम बसाक और राज्य की ओर से एपीपी अरुण कुमार मैती और संजय बर्धन शामिल हुए।

pdf_upload-367557 klhc
First Published on:
Exit mobile version