मीडियाविजिल डेस्क
पत्रकारिता प्रशिक्षण के अग्रणी केंद्र भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) में पिछले लंबे समय से चल रहा छात्रावास का संघर्ष शुक्रवार को अपने कामयाब मुकाम पर पहुंच गया जब प्रशासन ने लिखित तौर पर छात्रों की अधिकतर मांगें मान लीं। इसके बाद छात्रों ने तीन दिन से चल रहा अपना अनशन तोड़ दिया। पत्रकारिता के संघर्षरत छात्र जाहिर तौर पर अपनी इस जीत से बहुत खुश हैं, लेकिन तीन दिन चले अनशन की पृष्ठभूमि में आरएसएस से जुड़े प्रशासनिक प्रमुख केजी सुरेश ने जिस तरह छात्र समुदाय के बीच दरार डाली है, वह इस जीत को संदिग्ध बनाता है।
ध्यान रहे कि मौजूदा सत्र में पिछले लंबे समय से छात्रों के लिए छात्रावास की मांग की जा रही थी। पिछले दो साल से यह इंतजाम था लेकिन अचानक पिछले सत्रावसान पर इसे समाप्त कर दिया गया था जिसे लेकर नए सत्र के छात्रों में रोष था। कई बार प्रशासन को आवेदन देने के बावजूद जब बात नहीं बनी तो कुछ छात्र अनशन पर बैठ गए। छात्राओं का भी इन्हें पूरा समर्थन रहा, जिनका कहना था कि उनकी सुरक्षा का बहाना बनाकर प्रशासन छात्रों को इस सुविधा से महरूम न रखे।
प्रशासन ने अगले सत्र से छात्रों को छात्रावास सुविधा परिसर के भीतर और बाहर ‘नियमानुसार’ मुहैया कराने की बात मान ली है। इसके अलावा लाइब्रेरी का वाचनालय भी हर दिन रात 11 बजे तक खुला रखने की बात कही गई है और छात्रों से आश्वासन लिया गया है कि भविष्य में वे अपनी शिकायतें छात्र-फैकल्टी काउंसिल के माध्यम से सुलझाएंगे।
एक फैकल्टी सदस्य नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ”डीजी चाहते तो यह काम पहले भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने तीन दिन तक अनशन को चलने दिया और इस अनशन के विरुद्ध कुछ दूसरे छात्रों को भड़का कर छात्रों में ही फूट पैदा कर दी।” पत्रकारिता शुरू करने से पहले ही प्रशिक्षु पत्रकार सत्ता-समर्थक और सत्ताविरोधी के खेमों में बंट गए।
केजी सुरेश के राज में IIMC फिर सुलगा, हॉस्टल के मुद्दे पर उभरा छात्र-छात्राओं का साझा संघर्ष
प्रशासन द्वारा मांगें मान लेने के बाद परिसर में पहुंचे पत्रकार और IIMC के पूर्व छात्र अभिषेक रंजन सिंह ने इस बात पर संतोष जाहिर किया कि पहले के मुकाबले अब पत्रकारिता के छात्र काफी जुझारू और परिपक्व हो गए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि सत्ता में बैठे समूहों के साथ सीधे तौर पर संबद्ध महानिदेशक को छात्रों के सामने घुटने टेकने पड़े हैं। छात्रों-छात्रों के सोशल मीडिया अकाउंट पर इस जीत की ख़ुशी साफ़ देखी जा सकती है:
इससे पहले तक हालांकि प्रशासन ने इस अनशन को तोड़ने की भरपूर कोशिश की थी। अनशन के 24 घंटे बीत जाने के बाद भी धरनारत छात्रों की मेडिकल जांच के लिए डॉक्टर नहीं भेजा गया था। मजबूरन छात्रों को एक निजी चिकित्सक लाकर जांच करवानी पड़ी। अनशन के दूसरे दिन हालांकि संस्थान से संबद्ध आधिकारिक चिकित्सक ने अनशनरत छात्रों श्याम और मनदीप की जांच की, लेकिन उसे रक्तचाप और पल्स रेट तक ही सीमित रखा जबकि आम तौर से कायदा यह बनता है कि भूख हड़ताल पर बैठे किसी व्यक्ति के शुगर और युरीन की जांच सबसे ज्यादा ज़रूरी होती है।
बुधवार देर शाम जब मीडियाविजिल की टीम अनशनरत छात्रों से मिलने IIMC पहुंची, तो उस वक्त का नज़ारा देखकर साफ लग रहा था कि प्रशासन घुटने नहीं टेकेगा। दरअसल, छात्रों के अनशन स्थल के ठीक सामने एक और धरना शुरू हो चुका था। वहां अनशनरत छात्रों का विरोध किया जा रहा था। उसमें शामिल छात्र प्रशासन का सर्कुलर दिखाकर यह दावा करने में जुटे थे कि अनशनरत छात्र पढ़ाई में बाधा पहुंचा रहे हैं।
पिछले और उससे पहले के सत्र में भी जब छात्रों में कुछ मसलों पर असंतोष भड़का था, तो प्रशासन ने कुछ ऐसी ही तकनीक अपनाई थी। मीडियाविजिल ने इस बारे में लगातार खबरें की हैं कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध IIMC के नए महानिदेशक केजी सुरेश ने छात्रों में फूट डालने की तरकीब अपनाई और इस तरह छात्र एकता को तोड़ दिया। इस बार हालांकि यह तरकीब काम न आ सकी।
IIMC में केजी सुरेश के आने के बाद से ही नए-नए विवाद उठते रहे हैं। उन पर आरोप लगा है कि वे संस्थान के भगवाकरण की कोशिशें कर रहे हैं। एक बार यहां आरएसएस के इंद्रेश कुमार को बोलने के लिए मंच दिया गया तो अगली बार ज़ी टीवी के मालिक और सांसद सुभाष चंद्रा को मंच दिया गया। विरोध के बाद दोनों ही कार्यक्रमों को टालना पड़ा था। पिछले साल बस्तर के कुख्यात पूर्व आइजी कल्लूरी के आने पर संस्थान सुर्खियों में आया था।
मीडिया के भगवाकरण की सिफारिशों का केंद्र बनने जा रहा है IIMC
मीडियाविजिल ने लगातार इन तमाम मसलों पर लिखा और महानिदेशक की पाठ्तर दिलचस्पियों पर सवाल खड़े किए हैं। इन तमाम आलेखों को एक जगह पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें।
मीडियाविजिल पर IIMC की सम्पूर्ण कवरेज
अशनरत छात्र मनदीप पुनिया का साफ़ कहना था कि प्रशासन की शह पर कुछ लड़कों को उनके विरोध में वहां बैठा दिया गया है जिससे भ्रम फैले। मीडियाविजिल की मुलाकात बुधवार शाम कुछ फैकल्टी सदस्यों से हुई। उन्होंने छात्रों के धरने पर कुछ भी कहने या करने से यह कहते हुए साफ़ मना कर दिया कि यह मामला प्रशासन और छात्रों के बीच का है जिसमें फैकल्टी कोई पार्टी नहीं है। फिर भी उन्होंने धरनारत छात्रों के भूखे-प्यासे रहने पर चिंता जतायी।
इस समूचे प्रकरण में एक दुर्भाग्यपूर्ण बात जो सामने आई है, वो यह है कि कैसे स्नातक पास करने के बाद संस्थान में आए छात्रों को प्रशासन के दबाव में कदम उठाना पड़ता है। एक ओर वे छात्र हैं जो छात्रावास की सुविधा न होने के चलते अपनी जान देने पर तुले थे, तो दूसरी ओर वे छात्र हैं जिन्होंने जायज मांगों के विरोध में अपना विवेक खोकर प्रशासन का पक्ष लिया और अपने ही सहपाठियों के खिलाफ ऊलजुलूल इल्ज़ाम लगाए।
आइआइएमसी के मौजूदा सत्र के छात्रों की फेसबुक टाइमलाइन और धरनास्थल पर लगे पोस्टर बताते हैं कि कैसे छात्रों के बीच पैदा किए गए इस नकली फूट का प्रभाव उनके विवेक और मूल्यों पर पड़ रहा है जो उनकी पत्रकारिता की बुनियाद हो सकते थे। अफ़सोस इस बात का है कि कुछ छात्रों को यह तक नहीं पता कि कौन सी बात बुनियादी मानवीय मूल्य और पत्रकारीय मूल्य के ही खिलाफ जाती है। मसलन यह पोस्टर, जो कथित तौर पर प्रशासन प्रायोजित धरने में देखा गया।
इस धरने में रेडियो टीवी और हिंदी पत्रकारिता के छात्र एक साथ बैठे थे। उनमें से एक ने बताया, ”ये लोग जो अनशन कर रहे हैं, इन्हें पत्रकारिता नहीं करनी है जबकि हमें पत्रकारिता करनी है।” यह संयोग नहीं है कि जो छात्र पत्रकारिता करने का दावा कर रहे थे, वे प्रशासन के साथ खड़े थे। इसे व्यापक तौर पर पत्रकारिता की मौजूदा स्थिति के साथ जोड़कर देखा जा सकता है जहां समूचा मुख्यधारा का मीडिया पत्रकारों और पक्षकारों में विभाजित हो गया है।
प्रशासन ने जो मांगें मानी हैं, उनमें छात्रावास संबंधी आश्वासन की पुष्टि तो अगले सत्र में ही हो पाएगी। इससे कहीं ज्यादा अहम हालांकि यह है कि IIMC के लगातार गिरते स्तर के दौर में पत्रकारिता के छात्रों को वस्तुपरकता सिखाने के बजाय सत्ता के बरक्स पक्षकार बनाने का यह खतरनाक खेल सार्वजनिक जीवन में क्या रंग दिखाएगा जब ये छात्र अलग-अलग मीडिया संस्थानों से जुड़ेंगे।