टाटा इंस्टीट्यूट में फ़ीस बढ़ोतरी और स्कॉलरशिप के मुद्दे पर छात्रों की हड़ताल !

देश के प्रमुख संस्थानों में से एक टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के विद्यार्थियों ने कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया है। उनकी नाराजगी की वजह भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में कमी और इस आधार पर मिलने वाली फीस में छूट खत्म करना है। संस्थान की स्टूडेंट यूनियन पिछले दो वर्षों से बात करके इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास कर रही था लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। संस्थान के चारों कैंपस मुम्बई, हैदराबाद, गुवाहाटी और तुलजापुर के विद्यार्थी इसमें शामिल हैं।

दरअसल टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में दलित आदिवासी बहुजन विद्यार्थियों का अच्छा-खासा प्रतिशत है। संस्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के उन विद्यार्थियों को फीस में छूट देता आया था, जो पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए योग्य हैं। वर्ष 2014 से स्थिति बिगड़ना शुरू हुई, जब ओबीसी विद्यार्थियों को दी जाने वाली फीस में छूट वापस ले ली गई और वर्ष 2015 में फीस में लगभग 45% की वृद्धि कर दी गई। फिर 2017 में एससी और एसटी विद्यार्थियों से मेस और हॉस्टल का बिल चुकाने को कहा गया, जो प्रति सत्र प्रति विद्यार्थी 62000 रुपये पड़ रहा था। इन सबके बाद महाराष्ट्र कैंपस में भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप पाने वाले विद्यार्थियों की संख्या 65 से घट कर मात्र 20 रह गई थी। इसमें 16 एमए और 4 एमफिल/पीएचडी के स्कॉलर शामिल थे, जबकि सभी कैंपस में स्कॉलरशिप पाने वालों की संख्या 97 से घट कर मात्र 47 रह गई थी। स्टूडेंट वेलफेयर की जिम्मेदारी से भी प्रशासन ने यह कहते हुए हाथ झाड़ लिए थे कि स्कॉलरशिप सरकार और विद्यार्थी के बीच का मामला है। भारत सरकार की पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप पाने वाले भी अभी तक इसके प्रतीक्षा कर रहे हैं।  फीस में मिलने वाली छूट खत्म कर देने से संस्थान की वह परम्परा टूट गई है, जो वहाँ बरसों देखी गई।

मौजूद परिस्थितियों में दलित आदिवासी बहुजन विद्यार्थियों के प्रवेश और आरक्षण पर बुरा असर पड़ रहा है । स्थिति सुधारने के लिए स्टूडेंट यूनियन ने संस्थान के प्रशासन के अलावा मानव संसाधन मंत्रालय, सामाजिक न्याय मंत्रालय में याचिकाएं दी हैं, लेकिन प्रतिक्रिया न मिलमे से निराश होकर उन्हें 21 फरवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाना पड़ा। विरोध 20 फरवरी से मुम्बई कैंपस से शुरू हुआ, जिसमें वहाँ के 500 से अधिक विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। स्टूडेंट यूनियन ने कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर शालिनी भारत के नाम अपनी माँगों का चार्टर भी जमा किया है। विरोध शुरू होने के 24 घण्टों बाद प्रशासन ने विद्यार्थियों से समझौता करने का प्रयास किया, लेकिन समस्या का कोई ठोस हल नहीं दे पाया। इसके लिए उसने विद्यार्थियों से 24 घण्टों का समय माँगा है।

स्कॉलरशिप रुकने के बाद स्कॉलरशिप पाने वाले ओबीसी विद्यार्थियों का प्रतिशत 28 से घट कर 18 हो गया है, जबकि बहुत-से एससी, एसटी और ओबीसी विद्यार्थी वर्तमान सत्र में फीस जमा न कर पाने की वजह से डिग्री नहीं ले पाएंगे। अगर मामला नहीं सुलझता, तो इन वर्गों के लगभग 500 विद्यार्थियों का भविष्य प्रभावित होगा।

 

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