वर्धा : एक विश्वविद्यालय जहां सारे नियम-कानून धराशायी हो गए

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में पिछले महीने जुलाई में सभी विभागों की प्रवेश परीक्षाएं ठीक तरह से सम्पन्न हुईं। लिखित परीक्षा से लेकर इंटरव्यू तक की परीक्षाएं छात्र-छात्राओं ने दिए और अपने रिजल्ट का इंतजार करने लगे। लेकिन रिजल्ट की जगह तरह-तरह की आशंकाएं छात्र/छात्राओं के सामने आने लगी। कुछ विभागों के रिजल्ट आये और कुछ के अधर में ही लटक गए। किंतु समाज कार्य, नाट्य कला और जनसंचार विभाग का रिजल्ट नहीं आया।

इसी बीच 19 जुलाई की रात लगभग 12:30 बजे जनसंचार विभाग की एक चौंकाने वाली नोटिस विवि की वेबसाइट पर आई। उस नोटिस में कहा गया कि ‘कतिपय विसंगतियों के सम्बंध में विभागाध्यक्ष की अनुशंसा को स्वीकार करते हुए जनसंचार विभाग के पी-एच. डी., एम. फिल. और एम. ए. की प्रवेश प्रक्रिया निरस्त की जाती है।’

इस नोटिस के आने के बाद विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं में अफरा-तफरी मच गई। लोग भयानक तौर पर आशंकित हो गए। छात्रों को अपने कैरियर को लेकर एक तरह का डर सताने लगा।

इस नोटिस के बाद ऐसी कोई नोटिस नहीं आई जिसमें पूरे मामले को स्पष्ट किया गया हो। दो दिन पहले जनसंचार विभाग से जुड़ी एक नोटिस आई कि एम. ए. की परीक्षा 5 अगस्त को होगी। लेकिन पी-एच. डी. और एम. फिल. से सम्बंधित कोई नोटिस नहीं आई।

विश्वविद्यालय की इस पूरी प्रक्रिया से कुछ सवाल खड़े होते हैं जिससे इस मसले को समझने में थोड़ी आसानी होगी-

1- यदि प्रवेश प्रक्रिया में विसंगति है तो वह कौन सी विसंगति है जिसे जाहिर नहीं किया जा रहा है? जनसंचार की प्रवेश प्रक्रिया को इस आधार पर निरस्त किया गया कि विभागाध्यक्ष महोदय कह रहे हैं? क्या पूरी प्रवेश प्रक्रिया विभागाध्यक्ष महोदय कंडक्ट करा रहे हैं? नहीं न, प्रवेश प्रक्रिया के लिए प्रवेश समिति है उसके अध्यक्ष हैं उनका इस मामले पर क्या स्टैंड है? क्या उनकी तरफ से ऐसी कोई प्रतिक्रिया आई कि जिससे यह स्पष्ट हो सके कि हाँ यह विसंगति है? तब आख़िर महज विभागाध्यक्ष की अनुशंसा पर रिजल्ट कैसे निरस्त किया गया?

2- यदि जनसंचार की प्रवेश प्रक्रिया में विसंगति है तो क्या गारंटी है कि अन्य विभागों की प्रवेश प्रक्रिया में गड़बड़ी या विसंगति नहीं हुई होगी?

3- क्या कुलसचिव (रजिस्ट्रार) को बिना प्रवेश समिति के अध्यक्ष के प्रवेश प्रक्रिया को निरस्त करने का अधिकार है?

4- यदि पी-एच.डी., एम. फिल. की प्रवेश प्रक्रिया सही ढंग से पूरी हुई, उसकी कॉपी चेक हुई, लिस्ट में नाम आया, इंटरव्यू के लिए बुलाया गया, इंटरव्यू पूरा हुआ सबकुछ प्रवेश समिति के निर्धारित नियमों के तहत हुआ तो विभागाध्यक्ष कौन होते हैं अनुशंसा करने वाले कि प्रवेश प्रक्रिया निरस्त की जाय? और कुलसचिव द्वारा रिजल्ट निरस्त कर दिया जाता है जिनके मातहत प्रवेश प्रक्रिया है ही नहीं?

5- जो विसंगति छात्रों को सामान्यतः नजर आती है वह यही है कि एम. ए. जनसंचार में प्रवेश लेने वाले छात्रों की चार बार में लिस्ट निकाली गई थी। वहीं विभागाध्यक्ष द्वारा इस मामले को स्पष्ट करते हुए 16 जुलाई को एक नोटिस निकाली जाती है कि भूलवश जनसंचार विभाग से तीन नोटिस निकाल दी गई है जबकि 12 जुलाई को निकली सूची मान्य होगी।
यदि एम. ए. की प्रवेश प्रक्रिया में विसंगति हुई तो उसके आधार पर पी-एच.डी., एम.फिल. की प्रवेश प्रक्रिया कैसे निरस्त की जा सकती है?

6- यदि परीक्षा निरस्त की गई तो उसका वाजिब कारण क्यों नहीं बताया गया? विसंगति से सम्बन्धित व्यक्ति को चिन्हित क्यों नहीं किया गया? और विसंगतियों के दोषी पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? पूरी प्रवेश प्रक्रिया निरस्त करने के बाद उपजी छात्रों की समस्याओं के लिए आखिर कौन जिम्मेवार होगा?

7- प्रवेश प्रक्रिया निरस्त कर दिया जाता है और प्रवेश समिति के अध्यक्ष को अता-पता नहीं चलता, आखिर मुख्य मामला क्या है?
8-छात्रों के बार-बार प्रशासन के पास जाने पर अचानक से नाट्यकला का फिर से दुबारा साक्षात्कार का फरमान 7/8/2019 को आता है जिसमे यह कहा गया है कि उत्तरपुस्तिका का पुनर्मूल्यांकन किया गया है। अब सवाल यह है कि प्रवेश समिति को पुनर्मूल्यांकन की जरूरत क्यों पड़ी पूर्व में किये गये मूल्यांकन पर क्या दिक्कत थी और उसके लिए दोषी कौन है?


9- समाजकार्य पीएचडी का रिजल्ट लगभग महीने होने के बाद भी अब तक नही जारी किया गया है जबकि अन्य सभी विभागों के रिजल्ट जारी कर दिए गए है ।

हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा जो कुछ भी पिछले दिनों से किया जा रहा है यह किसी शैक्षणिक संस्थान की अकादमिक पारदर्शिता के एकदम खिलाफ है। इससे विश्वविद्यालय की छवि तो धूमिल हो ही रही है साथ ही साथ आने वालों छात्रों में विभिन्न तरह की आशंकाएं जन्म ले रही है।


कौशल यादव बंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस में शोधार्थी हैं, यह ख़बर उनकी फेसबुक पोस्‍ट से साभार प्रकाशित 

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