आख़िर मीडिया का मक़सद क्या है ? सच्चाई बयान करना, सूचित करना या लोगों के मूड के हिसाब से चलना। ‘आज तक’ सहित कई टीवी चैनलों और जनसत्ता समेत कई अख़बारों के संपादक रह चुके राहुल देव का कहना है कि मीडिया को आम लोगों की रुचि के हिसाब से चलना पड़ता है। इस सिलसिले में उन्होंने आज कई ट्वीट किए। इसका जवाब देते हुए मीडिया शिक्षक और कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी ने राहुल देव की समझ पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि मीडिया का काम ‘अनुपस्थित को उपस्थित’ करना है। नीचे पढ़िये राहुल देव के ट्वीट के साथ प्रो.चतुर्वेदी का प्रतिवाद। इस बहस में हिस्सा लेने की इच्छा हो तो मीडिया विजिल को मेल करें—संपादक।
‘मीडिया तो वही दिखाता है जो घट रहा है या जो हम देखना चाहते हैं।आज एक पत्रकार चिंतक राहुल देव ने फेसबुक पर तकरीबन इसी तरह की बातें लिखी हैं।ये जनाब लंबे समय से मीडिया से जुड़े रहे हैं। राहुलजी की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के बारे में नहीं बोलना चाहता।वे मोदीजी के साथ हैं।मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं। लेकिन उन्होंने मीडिया के बारे में फेसबुक पर जो लिखा है वह बुनियादी तौर पर गलत है।’
प्रतिवाद का छंद ,मीडिया और राहुल देव
पीएम नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने और अब नोट नीति के लागू होने के बाद फेसबुक से लेकर सामान्य मध्यवर्गीय-निम्न मध्यवर्गीय लोगों में उनकी जय-जयकार सुनने के बाद अनेक लोग परेशान हैं,अनेक लोग मोदी पर फिदा है,अनेक जुदा हैं और वफादार हैं!
कुछ लोग हैं जो मोदी की इमेज के बनाने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को देख रहे हैं,कुछ किं-कर्त्तव्य विमूढ़ हैं ! मोदी के सत्ता में आने का सबसे बड़ा प्रभाव यह पड़ा है कि उसने प्रतिवाद के छंद को ही तोड़ दिया है,अब लोग प्रतिवाद की भाषा में नहीं सहमति की भाषा में हर चीज को देखने लगे हैं ,यह परिवर्तन बहुत ही खतरनाक और त्रासद है ! इस परिवर्तन के अनेक जागरूक बुद्धिजीवी भी शिकार हैं।
मोदी का सत्ता में आना,कोई अनहोनी घटना नहीं है,अनहोनी घटना है प्रतिवाद के छंद का टूट जाना। इसने प्रतिवाद का अभाव पैदा किया है।इस स्थिति से कैसे निकलें इस पर ध्यान देने की जरूरत है।मोदीजी को कप्यूटर की क्लिक ने ही महान बनाया है, एक ही क्लिक में जानने और हजम करने की अनक्रिटिकल मानसिकता ने प्रतिवाद के छंद को तोड़ा है।क्लिक करके जानने की आदत ने ही हमारे अंदर छिपे परपीड़क आनंद को हवा दी है।
मोदीजी के खिलाफ बोलने वाले संगठन और विचारधाराएं अनेक हैं।उनके अपने स्वतंत्र राजनीतिक कार्यक्रम हैं।मोदी और मीडिया जब पक्ष-विपक्ष में वर्गीकरण करते हैं तो प्रतिवाद के छंद को ही तोड़ देते हैं। प्रतिवाद का छंद तब ही अच्छा लगता है जब वह अपनी मूल भावना और विचारधारा के साथ राजनीति में व्यक्त
मोदी की प्रस्तुतियों ने मोदी के साथ जनता के अंतर को खत्म कर दिया है।मीडिया में मोदीजी पूरी तरह जनता के साथ एकाकार हो गए हैं।जबकि यथार्थ में ऐसा नहीं है,उनको मात्र 31फीसदी जनता का समर्थन मिला था।इस अंतर को उनकी मीडिया प्रस्तुतियों में सहज ही देख सकते हैं।इसे मीडिया मेनीपुलेशन भी कह
मोदीजी के नजरिए को सिद्धांतः ´निषेध का निषेध´ के नजरिए से देखें।वे पहले कांग्रेस ने जो कहा उसका निषेध करते हैं,फिर स्वयं जो कहते हैं,कुछ समय बाद उसका निषेध करते हैं,इन सब निषेधों का तीव्र गति से प्रचार,अति -प्रचार करते हैं और यही वह अति -संप्रेषण की कला है जिसके जरिए वे विभिन्न रंगत के प्रतिवाद
आज आम आदमी का मोदी से संपर्क है लेकिन भारत के यथार्थ से संबंध टूट चुका है।वे जो कुछ भी कहते हैं उनकी सरकार उससे तत्काल पलट जाती है।नोट नीति के संदर्भ में यह बात खासतौर पर सामने आई है।हर रोज रिजर्व बैंक ने पीएम के कहे का उल्लंघन किया कल जो नियम बनाया उसे दूसरे दिन ही बदल दिया।बार बार बदलना,निषेधका निषेध करना,असल में प्रतिवाद के छंद को स्थिर नहीं रहने देता।