राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के गढ़ के रूप में चर्चित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्रों ने बृहस्पतिवार को विश्वविद्यालय प्रशासन पर जाति के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया और लंका स्थित सिंह द्वार से प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय तक मार्च निकालने की असफल कोशिश की। बाद में छात्रों ने विश्वविद्यालय में मार्च निकाला और केंद्रीय कार्यालय का घेराव किया।
विश्वविद्यालय के छात्रों के संगठन ओबीसी जनकल्याण मंच, ओबीसी/एससी/एसटी/एमटी संघर्ष समिति और एससी-एसटी छात्र कार्यक्रम आयोजन समिति के संयुक्त बैनर तले सैकड़ों की संख्या में छात्र बृहस्पतिवार को लंका स्थित सिंह द्वार के पास इकट्ठा हुए और ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा लगाते हुए प्रदर्शन करने लगे। इसके बाद वे प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन देने के लिए रविंद्रपुरी स्थित उनके संसदीय कार्यालय की ओर कूच करने लगे लेकिन वहां पर पहले से मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोक लिया।
क्या था मामला?
प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन में छात्रों ने आरोप लगाया है कि बीएचयू प्रशासन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देशानुसार विश्वविद्यालय की पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया की चयन कमेटी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का प्रतिनिधि नियुक्त नहीं करता है जबकि एससी-एसटी वर्ग के प्रतिनिधि की नियुक्त की जाती है। इससे प्रवेश प्रक्रिया के दौरान रिसर्च प्रपोजल और साक्षात्कार में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को जानबूझकर कम अंक दिये जाते हैं। इससे वे मेरिट से बाहर हो जाते हैं। छात्रों ने पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया के लिए गठित कमेटी में ओबीसी समुदाय के प्रतिनिधि की नियुक्ति करने की मांग की है।
रिसर्च प्रपोजल और साक्षात्कार में कम अंक दिए जाने की वजह से डिग्री पाठ्यक्रमों में अन्य छात्रों की तुलना में अंक ज्यादा होने के बावजूद ओबीसी समुदाय के अभ्यर्थी मेरिट से बाहर हो जाते हैं। छात्रों ने मांग की कि पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया के दौरान अभ्यर्थियों के नाम और कैटेगरी के स्थान पर अनुक्रमांक और कूट संख्या का प्रयोग किया जाए। छात्रों ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के किसी भी पाठ्यक्रम में पढ़ने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं को छात्रावास आबंटन में आरक्षण प्रणाली का पालन नहीं किया जाता है। उन्होंने मांग की कि प्रत्येक पाठ्यक्रम में अध्यनरत छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावास आबंटन में सविंधान प्रदत्त 27 प्रतिशत आरक्षण अविलंब लागू किया जाए। साथ ही उन्होंने मांग की विश्वविद्यालय प्रशासन की सभी कमेटियों में अन्य पिछड़ा वर्ग के विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाए।
गौरतलब है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हर सत्र में पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया के दौरान गड़बड़ी और जाति के आधार पर भेदभाव की शिकायतें आती हैं। विरोध में छात्र विरोध प्रदर्शन करते हैं। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक कोई ठोस पारदर्शी प्रक्रिया लागू नहीं कर सका है जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सभी विश्वविद्यालय के कुलपतियों और कुलसचिवों को पत्र लिखकर निर्देश दे चुका है कि पीएचडी पाठ्यक्रम के लिए चयनित शोधार्थियों की सूची नोटिस बोर्ड पर प्रकाशित करने के साथ-साथ विश्वविद्यालय और विभाग की अधिकारिक वेबसाइट पर भी प्रकाशित एवं प्रसारित किया जाए लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकतर विभागों के नोटिस बोर्ड या अधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं की गई है। जिन विभागों के नोटिस बोर्ड पर चयनित शोधार्थियों की सूची प्रकाशित है, उनमें केवल आरईटी प्रक्रिया के दौरान चयनित शोधार्थियों का नाम ही शामिल है।
आरईटी से छूट प्राप्त वर्ग में चयनित शोधार्थियों की सूची नोटिस बोर्ड या अधिकारिक वेबसाइट पर अभी तक मौजूद नहीं है जबकि कुछ विभागों में इस वर्ग के तहत चयनित शोधार्थियों द्वारा प्रवेश लेने की बात भी कही जा रही है। इतना ही नहीं, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्पष्ट निर्देश दे चुका है कि विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के शोधार्थियों का विवरण उनके शोध निर्देशक, पंजीकरण संख्या और शीर्षक के साथ शिक्षण संस्थानों की अधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए लेकिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की अधिकारिक वेबसाइट पर अधिकतर विभागों के शोधार्थियों का विवरण उपलब्ध नहीं। संचार की दुनिया में आधुनिक होने का दावा करने वाला पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग इसका बेहतरीन उदाहरण है।