भारत के सर्वोच्च मीडिया संस्थान IIMC यानी भारतीय जनसंचार संस्थान में छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर जा चुके हैं। वजह है इस सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थान की महंगी फीस और इस पर एक परिचर्चा आयोजित करने के लिए छात्रों का निलंबन।
IIMC सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाला मीडिया संस्थान है जहाँ संचालित विभिन्न कोर्सेज़ की फीस लाख से पौने दो लाख रुपये तक है। संस्थान में संचालित ये सभी पाठ्यक्रम केवल 9 महीने के हैं यानी कि इतने कम समय के कोर्स के लिए इतनी महंगी फीस। हॉस्टल की फीस भी काफ़ी महंगी है जहाँ छात्राओं को सिंगल सीटेड के लिए 3500 रु. महीना और छात्रों को थ्री सीटेड के लिए 1750 रु. महीना देना होता है। सभी छात्रों के लिए छात्रावास भी उपलब्ध नहीं है। इन्हीं मुद्दों को लेकर छात्र दो महीने पहले दिसंबर में 14 दिनों तक अपना आंदोलन किया और अब इसकी शुरुआत ठीक वहीं से हुई है जहाँ इसे विराम दिया गया था।
दिसंबर में आंदोलन ने कहाँ विराम लिया था?
छात्रों ने पिछली बार इन मुद्दों पर हल निकालने के लिए हर वो कागजी प्रक्रिया अपनाई जो बेहद ज़रूरी था। फीस में किसी भी तरह के बदलाव की प्रक्रिया IIMC की गवर्निंग बॉडी एक्सिक्यूटिव काउंसिल से तय होती है। छात्रों ने एक्सिक्यूटिव काउंसिल में इन मुद्दों को लेकर अपना पेटिशन डाला और संस्थान के महानिदेशक से बार-बार पत्र के जरिये भी यह आग्रह किया कि काउंसिल की आपातकालीन बैठक बुलाई जाए। जब प्रशासन ने उनकी यह बात नहीं मानी तो अपनी दो मांगों को लेकर छात्र धरने पर बैठ गए।
आंदोलन थमने के बीच क्या कुछ हुआ?
2 जनवरी को एक्सिक्यूटिव काउंसिल की आपातकालीन बैठक होती है। संस्थान के चेयरमैन रवि मित्तल ने महानिदेशक को ये निर्देश दिया कि फीस को लेकर एक समिति बनाने का निर्देश दिया। समिति को कहा गया कि फीस के सारे पक्षों पर अध्ययन करके संस्थान मंत्रालय को 2 मार्च तक एक रिपोर्ट सौंपे। छात्रों का कहना है कि महानिदेशक ने यह समिति सिर्फ़ दो ही दिन पहले बनाई है जब छात्रों ने इसके अबतक के स्वरूप को जानने के लिए एक पत्र लिखा और भूख हड़ताल पर जाने की बात कही। प्रशासन ने भी खुले तौर पर यह स्वीकारा है कि समिति पिछले दो दिनों में ही बनी है लेकिन वह बिल्कुल आश्वस्त है कि 2 मार्च तक वो अपने रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप देगी।
बीते 9 फरवरी को IIMC में एलुमनाई एसोसिएशन IIMCAA का एक कार्यक्रम यानी भूतपूर्व छात्र सम्मेलन था। वर्तमान सत्र के कुछ छात्रों ने एक दिन पूर्व प्रशासन से यह अनुमति मांगी कि वो संस्थान के भीतर एफोर्डेबल एजुकेशन पर एक टॉक शो आयोजित करना चाहते हैं। संस्थान ने न सिर्फ़ परमिशन देने से मना किया बल्कि कार्यक्रम होने पर छात्रों पर अनुशासनात्मक कारवाई करने की भी धमकी दी। संस्थान के कुछ छात्रों ने प्रशासन के आदेश के ख़िलाफ़ जाते हुए यह कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें सस्ती शिक्षा पर एक परिचर्चा हुई। छात्रों का मानना था कि प्रशासन का आदेश उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
छात्रों ने अपने कार्यक्रम से न तो संस्थान में हो रहे दूसरे कार्यक्रम में कोई बाधा डाला और न ही कोई अनुशासनहीनता दिखाई। संस्थान ने अगले दिन उनपर कारवाई करते हुए 11 छात्रों को निलंबित कर दिया और अगले 5 दिन में यह जवाब मांगा कि आगे उनपर कारवाई क्यों न की जाए? संस्थान ने इसे कोड ऑफ कंडक्ट का वॉयलेशन बताया जिसके जवाब में छात्रों ने प्रशासन से यह जवाब मांगा कि वो कोड ऑफ कंडक्ट क्या है? कोड ऑफ कंडक्ट का वॉयलेशन किस तरीके से हुआ? और इसके उपरांत सजा का प्रावधान क्या है? प्रशासन ने इसको लेकर एक कमिटी बनाई जो छात्रों को बताती कि ये कोड ऑफ कंडक्ट क्या है लेकिन बिना बताये छात्रों के निलंबन को बढ़ा दिया गया ये कहकर कि उन्होंने जवाब नहीं दिया है।
छात्रों का आरोप है कि कमिटी बेकडेट में बनायी गयी है।
निलंबन के ठीक बाद फ़ी सर्कुलर
जैसे ही एफोर्डेबल एजुकेशन पर परिचर्चा को लेकर छात्रों पर अनुशासनात्मक कारवाई की गई यानी कि सस्पेंड किया गया, वैसे ही सेकेंड सेमेस्टर की फीस का सर्कुलर भी आ गया। समिति की रिपोर्ट से पहले ही संस्थान ने फ़ी सर्कुलर ला दिया जो उसके पिछले सर्कुलर का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया था कि जब तक नए फ़ीस पर कोई फैसला नहीं आ जाता तब तक छात्रों से कोई भी फ़ीस नहीं ली जाएगी। प्रशासन का इस पर एक पक्ष ये भी है कि एक्सिक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में छात्रों के हित में फैसला लेते हुए सभी छात्रों के लिए फ्रीशिप की व्यवस्था की गई जिनकी सालाना आय 8 लाख रु. से कम थी। छात्रों का इस पर कहना है कि इन्होंने फ्रीशिप को कभी मुद्दा बनाया ही नहीं था और ये फ्रीशिप भी हाफ़ नहीं क्वार्टर थी। संस्थान की तरफ़ से फ़ीस के मसले पर कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिलने के कारण वो अब अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर चले गए हैं।
निलंबन के पाँच दिनों बाद तक प्रशासन ने एक बार भी बातचीत करना ज़रूरी नहीं समझा। प्रशासन के निर्देश पर ही संस्थान में एक ग्रीवांस सेल का गठन हुआ था जिसमें लोकतंत्रात्मक तरीके से कुछ प्रतिनिधियों का चुनाव हुआ था। इनके पत्र लिखने के बाद भी प्रशासन ने छात्रों से मिलना गैर ज़रूरी समझा। जब आखिरी विकल्प छात्रों के पास भूख हड़ताल ही बचा था तो एक और पत्र लिखकर उसमें तीन मांगों की बात की गई। पहली कि नए फीस सर्कुलर को तुरंत रद्द किया जाए क्योंकि ये पिछले सर्कुलर का उल्लंघन करता है और ये संस्थान की वादाखिलाफी है। दूसरी मांग कि कमिटी के कामकाज की जानकारी दी जाए और तीसरी, कि छात्रों का निलंबन वापस लिया जाए।
जब संस्थान की तरफ़ से कोई भी सकारात्मक रवैया नहीं दिखा तो छात्र अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर चले गए। जब ग्रीवांस सेल की पहली मीटिंग हुई तो भी प्रशासन मांगों को मानने को तैयार नहीं हुआ। भूख हड़ताल के तीसरे दिन प्रशासन ने एक ओपन हाउस रखवाया था जिसमें प्रशासन के द्वारा छात्रों को एकतरफा झूठ बोला गया। निलंबित या भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों को जवाब देने के लिए एक मिनट का भी मौका नहीं दिया गया। भूख हड़ताल के पीछे प्रशासन का मूल उद्देश्य बस यही था कि वो भूख हड़ताल पर बैठे छात्रों की एक नकारात्मक छवि बनाये जिससे कि आंदोलन पर इसका असर पड़े। प्रशासन ने ऐसे कई झूठ बोले जिसका जवाब छात्रों के पास होते हुए भी वो नहीं दे पाये। प्रशासन एकतरफा संवाद के जरिये छात्रों को तोड़ना चाहता था लेकिन फीस के मुद्दे पर संस्थान के सारे छात्र आज भी एकजुट दिखे।
प्रशासन का रवैया फिलहाल निलंबित और भूख हड़ताल बैठे छात्रों का मानसिक उत्पीड़न करने के बजाय और कुछ भी नहीं है। IIMC प्रशासन की अबतक की कोशिश बस यही रही है कि किसी भी तरह इस आंदोलन को खत्म कराया जाए। फीस के मुद्दे को लेकर वह बिल्कुल गंभीर नहीं है। छात्र आज भी पूरी हिम्मत से डटे हुए हैं।