शिशु मंदिर से हिंदू विश्‍वविद्यालय तक एक छात्र के सफ़र से निकले अहम नोट्स

रोशन पाण्‍डे

मेरी पढ़ाई कक्षा शिशु (नर्सरी) से लेकर 11वीं तक आरएसएस द्वारा संचालित स्‍कूल विद्या मंदिर में हुई. इन 12 वर्षों में जो कुछ वहाँ हो रहा था वह मेरे लिए सामान्य था. जब हम लंबे समय तक किसी खास तरह के माहौल में पले बढ़े होते हैं तो उसकी कमियों को नही देख पाते. अपने चारों ओर एक ही तरह की बातें सुनकर उसको ही सच मान लेते हैं. मेरी भी यही गति रही. आरएसएस के मुखपत्र, उसकी किताबों और उनके विचारकों द्वारा जो बातें सुनने को मिलती हैं वे बातें विद्या मंदिर की कक्षाओं में रोजाना बतायी जाती थीं. देखते ही देखते आप कब साम्प्रदायिक बन जाते हैं पता ही नही चलता. सबसे पहले आपको हिन्दू होने पर गर्व कराया जाएगा. फिर यह बताया जाएगा कि आप बाकी धर्मों से श्रेष्ठ हैं. उसके बाद यह तर्क होता है कि अतीत में हमने सारी तकनीकी विकसित कर ली थी लेकिन मुस्लिमों के आतंक ने हमें पीछे कर दिया. हिन्दू धर्म को बचाने के लिए ईसाई मिशनरियों के खिलाफ जंग की बात की जाती है. छात्रों को शिविर और शाखाओं में लाया जाता है जहाँ उनके दिमाग में नफरत और हिंसा भरी जाती है. ऐसी बातें जिनका इतिहास और वैज्ञानिकता से कोई नाता नहीं है, वे रोजाना की बातचीत का हिस्सा होती हैं. जैसे- देश में आज इतनी समस्याएं इसलिए हैं क्योंकि नेहरू ने रात 12 बजे आजादी को घोषणा कर दी, हस्तमैथुन से नपुंसकता आती है, आदमी तभी कामयाब हो सकता है जब वह स्त्री से उचित दूरी बनाए रखे, इत्यादि.

मुझे खुद नहीं पता कि यह सब सुनते-पढ़ते मैं कब गांधी, नेहरू और वामपंथियों का दुश्मन हो गया. वामपंथ शब्द से नफरत हो गयी थी क्योंकि मुझे बताया गया कि ये मानते हैं कि जिसके पास बंदूक है वो उसके दम पर सत्ता हांसिल कर सकता है. मैं खुद को मनु की संतान मानने लगा था. राष्ट्रीय प्रतीकों की राजनीति करने वाले संघ के स्कूल पर हमेशा भगवा ध्वज लहराता है. हमें यह बताया गया कि यही हमारा असली झंडा है. रोज सुबह प्रार्थना में गोलवलकर, सावरकर की बड़ी तस्‍वीर और उनके महिमामंडन से मुझे उनके करीब ला दिया. राम मंदिर मामले में जब इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आना था तब हम लोगों से जबरन 108 बार हनुमान चालीसा पढ़वायी गयी।

बनारस हिंदू युनिवर्सिटी आने के बाद जब आधुनिक विचारों से मैं रूबरू हुआ और अलग-अलग स्कूलों से आए दोस्तों से बात की, तब जाकर आरएसएस के स्कूलों का एजेंडा समझ आया. यूनिवर्सिटी आने के बाद जब इनको मैंने पढ़ना शुरू किया तब समझ में आया कि किस खतरनाक एजेंडे के तहत हमारी पीढ़ियों को दंगाई बनाया जा रहा है. जातिवाद और पितृसत्ता का कूड़ा उनके दिमाग में ठूंसा जा रहा है. संवाद की कोई संस्कृति नहीं है यहां, शिक्षा डंडे के बल पर दी जाती है. एक शिक्षक जिसके द्वारा मेरा दो साल उत्पीड़न किया गया, मेरे सवाल करने पर वो डंडे बरसाने लगता. तब मुझे लगता था ये कैसी शिक्षा व्यवस्था है जिसकी बुनियाद डर पर टिकी है लेकिन बाद में समझ आया कि आरएसएस की राजनीति की बुनियाद ही डर है. पहली कक्षा से यह बात सुनते आया हूँ कि इंसान को भगवान, माँ-बाप और शिक्षक से जरूर डरना चाहिए. वहाँ डर एक संस्कार है जिसके नाम पर छात्रों के अंदर की क्रिएटिव और क्रिटिकल सोच का कत्ल कर दिया जाता है.

एक सोची समझी रणनीति के तहत ‘हिंदुत्व’ की राजनीति को इन शिशु मंदिरों के मायम से इस देश में उभारा गया. 1946 में गोलवरकर ने प्रथम आरएसएस स्कूल की स्थापना गीता स्कूल के नाम से की. महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जनता में इसका असली चेहरा सामने आ चुका था. आनन-फानन में सरस्वती शिशु मंदिर मॉडल लाया गया और 1952 में गोरखपुर से पहले शिशु मंदिर की शुरुआत हुई. 1977 में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद विद्या भारती की स्थापना हुई और बड़े स्तर पर स्कूली शिक्षा में आरएसएस ने हस्तक्षेप शुरू किया. तमाम सामाजिक कार्यों के जरिए संघ लोगों से जुड़कर पहले जनसंघ और अब भाजपा के लिए जमीन तैयार करने की कोशिश करता रहा है. 1997 में आरएसएस के सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘परम वैभव के पथ पर’ में संघ द्वारा बनाए गये 30 से ज्यादा संगठनों का जिक्र है जो हिंदुत्व के एजेंडे पर अलग-अलग पहचानों के साथ काम कर रहे हैं. इसमें भारतीय जनता पार्टी का भी नाम शामिल है.

कई ऐसे डॉक्यूमेंट मिले हैं जो सिद्ध करते हैं कि भारत में साम्प्रदायिक हिंसा और हिंदुत्व का एजेंडा फैलाने के लिए इसे भारी मात्रा में विदेशी सहयोग भी मिलता है. 11 जुलाई 2014 को फ्रंटलाइन में छपी अजय आशीर्वाद की रिपोर्ट ‘होली काउ’ के अनुसार 1994 से 2000 के बीच सिर्फ अमेरिका से पांच मिलियन डॉलर से अधिक की फंडिंग हुई है. यह फंडिंग इंडिया डेवलपमेंट एंड रिलीफ फण्ड (IDRF) के माध्यम से हुई थी. संघ व उसकी अनुषंगी संस्‍थाओं को विदेश में मिलने वाले अनुदान पर एक विस्‍तृत रिपोर्ट ‘’हिंदू नेशनलिज्‍म इन द युनाइटेड स्‍टेट्स’’ के नाम से साउथ एशिया सिटिजंस वेब पोर्टल के माध्‍यम से सामने आई थी जिसे नीचे पूरा पढ़ा जा सकता है।

US_HinduNationalism_Nonprofits

इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार देशभर में विद्या भारती द्वारा 40 हजार स्कूल संचालित किए जा रहे हैं जिसमें 40 लाख से ज्यादा छात्र दाखिल हैं. इन स्कूलों में लाखों शिक्षक हैं जो रोज सुबह शाखाओं में जाते हैं. ये शिक्षक अपने परिवार के मुखिया भी हैं. स्कूली शिक्षा का उद्देश्य होता है तर्कशील नागरिक तैयार करना जो अपने अधिकारों और समाज को लेकर संवेदनशील हो. स्वतंत्र दिमाग का व्यक्ति ही अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य कर सकता है और लोकतान्त्रिक समाज की स्थापना कर सकता है, लेकिन आरएसएस द्वारा संचालित स्कूल छात्र के दिमाग को संकीर्ण बना देते हैं और उसके व्यक्तित्व विकास की संभावनाओं को रोक देते हैं.

इस तरह के संगठन भारतीय लोकतंत्र के सामने बड़ी चुनौती के रूप में खड़े हैं. ये सच है कि सबको अपनी विचारधारा प्रैक्टिस करने का अधिकार है लेकिन क्या समाज को हिंसा की आग में धकेलने वालों को इसकी छूट दी जा सकती है? हमारे स्वतंत्रता आंदोलन से निकले मूल्य आज खतरे में हैं. धर्मनिरपेक्षता समाज में गाली बनती जा रही है. नब्‍बे साल से समाज में नफरत फैलाने वाले आज सत्ता में हैं. पाठ्यक्रम तेजी से बदले जा रहे. किताबें हमें और ज्यादा साम्प्रदायिक बनाने का जरिया बनती जा रही. हम जो नागरिक समाज बनने की प्रक्रिया में थे अब दंगाई होते जा रहे हैं.


लेखक बनारस हिंदू युनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं और पिछले साल हुए छात्राओं के आंदोलन में काफी सक्रिय थे

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