‘सरकार जी’ ने लड़ाकू विमान खरीदे हैं या बच्चों के खिलौने?
रफाल सौदे में ऑफसेट क्लॉज पूरे नहीं किए जाने के सीएजी के आरोप के बाद सरकार का यह कहना कि ‘यह शर्त खत्म कर दी गई है और आपूर्तिकर्ता को क्या करना है, क्या नहीं, यह अक्सर पूछे जाने वाले सवाल के प्रारूप में बता दिया गया है और वह करार की शर्तों से अलग है’- यह अपने आप में बहुत बड़ा खुलासा है और बोफर्स सौदे पर शोर मचाने और कुछ नहीं निकाल पाने वाले देश में इस पर चुप्पी शर्मनाक है। आइए देखें कांग्रेस के राज में जो भ्रष्टाचार और घोटाला होता था वह अब कैसे मीडिया द्वारा देश सेवा और देशभक्ति के रूप में नजरअंदाज किया जा रहा है और मंत्री ट्वीट कर बता रहे हैं।
कांग्रेस सरकार पर सीएजी के जो आरोप थे उन्हें नहीं मानने का कोई कारण नहीं था। फिर भी तथ्य यह है कि मामला अदालत में नहीं टिका और सीएजी को मोदी सरकार ने बाद में पुरस्कृत किया। अब जो सीएजी के आरोप हैं उनमें कोई दम नहीं है क्योंकि रक्षा मंत्री ने ट्वीट करके बताया है कि सरकार ने नियम बदल दिए हैं। मोदी सरकार कुछ गलत करती नहीं है और मोदी सरकार ने किया है तो ठीक ही किया होगा। हालांकि, इससे तथ्य नहीं बदल जाते। आइए देखें – समझें – अखबारों की खबरों से खास बातें :
- सरकार ने तय किया है कि ऑफसेट क्लॉज खत्म कर दिया जाए। इस सौदे के बारे में आप जानते हैं और पहले छप चुका है कि सौदा करने वाली टीम के समानांतर प्रधानमंत्री कार्यालय भी सौदेबाजी कर रहा था। क्लॉज हटाने का काम खरीदने के लिए बनाई गयी कमेटी का नहीं होता है। और प्रधानमंत्री कार्यालय से समानांतर सौदेबाजी किस लिए हो रही थी यह समझाने बताने की जरूरत नहीं है। जो खुद कह चुका है कि खून में व्यापार है वह बेईमानी नहीं कर सकता है। व्यापार ही करता है। यह अलग बात है कि व्यापार को भी लोग बेईमानी कहते हैं। बात समय, सरकार, पार्टी और व्यक्ति के साथ प्रचारक की है।
- सौदा पहले हो गया था लेकिन रक्षा मंत्री अब बता रहे हैं कि शर्तों में बदलाव (ऑफसेट क्लॉज खत्म करना) आत्म निर्भर भारत की कल्पना से तालमेल में है। और इसका अंतिम लक्ष्य भारत को वैश्विक निर्माण केंद्र बनाना है। विदेशी तकनीक के बिना आप खादी के वैश्विक केंद्र बनेंगे या विदेशी कंपनियों को सस्ते मजदूर मुहैया करवाकर यह बाद में समझ में आएगा। बनेंगे कि नहीं यह मुद्दा नहीं है।
- ऑफसेट टेक्नालॉजी हटाने का कारण यह बताया गया है कि इससे भारत में अभी तक कोई क्रिटिकल टेक्नालॉजी नहीं आई है। और इससे कीमत बढ़ जाती थी। जाहिर है पहले की सरकार ने ऐसा भ्रष्टाचार किया होगा और इस सरकार ने उसे ‘ठीक‘ कर दिया है। यह इतना मामूली काम है कि इसे पहले देश को बताने की जरूरत नहीं समझी गई और जब सीएजी ने मामला उठाया तो अब सफाई दी जा रही है। सीएजी को भी नहीं बताया गया। आप मान लीजिए। नहीं बताने का कारण यह भी हो सकता है कि इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया गया है और प्रतिस्पर्धी प्रापण में यह शर्त लागू रहेगी टेक्नालॉजी आए या नहीं उसके लिए कीमत दी जाती रहेगी। इस बार नहीं दी गई क्योंकि बुद्धिमान लोगों ने सौदा किया है।
- देश में हर क्षेत्र में जब निजीकरण का जोर है। सब जगह बिचौलियों को बढ़ावा दिया जा रहा है तब सरकार ने रफाल सौदा खुद किया है और खुद मतलब स्वयं पीएमओ ने। यह आपको सामान्य लगे तो मैं कुछ नहीं कर सकता। मुझे तो बहुत असामान्य लग रहा है। खास कर इसलिए कि पहले का सौदा रद्द करके नया सौदा किया गया है और तमाम सवाल होने के बावजूद यह सब करने से क्या लाभ हुआ यह बताने की कोई जरूरत सरकार को नहीं लग रही है।
इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी खबर के अनुसार रक्षा खरीद नीति में परिवर्तन अप्रैल 2016 में किया गया। यह एक अप्रैल से लागू हो गया। रफाल सौदा सितंबर 2016 में हुआ था। अब सरकारी नियम बदल देना भ्रष्टाचार थोड़े हो सकता है। हालांकि, पी चिदंबरम पर ऐसा ही आरोप जेल में बंद एक अभियुक्त ने लगाया था तो उन्हें गिरफ्तार करने के लिए सीबीआई के उत्साही अधिकारी दीवार फांदकर घर में घुस गए थे और सरकार ने उन्हें पुरस्कृत भी किया था। भाजपा सरकार में नियम बदलने का मामला उससे अलग है। सीएजी का मानना है कि :
- रफाल की ऑफसेट जिम्मेदारियों की शुरुआत सितंबर 2019 से होनी थी। यानी नियम बदलने की जानकारी सीएजी को भी नहीं है या सौदे के दस्तावेज में ही नहीं है। इसपर एक्सप्रेस की खबर में और खुलासा है। इसके मुताबिक सीएजी ने पाया कि आपूर्तिकर्ता डसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए ने इसपर दस्तखत किए हैं। शुरुआती सौदा करने वाली टीम को 12 मई 2015 का ब्रीफ दिया गया था उसमें सारी बातें थीं। अगर नियम बदले गए तो करार और उसके मॉडल में जो परिवर्तन होने चाहिए थे, नहीं किए गए हैं। ऐसा सीएजी ने कहा है। खबर में है। ऑफसेट नीति के मामले में डीपीपी तो बदल गई लेकिन ऑफसेट पेशकशों से संबंधित बदलाव अगस्त 2015 में नहीं किए गए। ना ही मॉडल ऑफसेट कांट्रैक्ट बदला गया। यह अस्पष्टता रही – इसके बावजूद क्या कीमत कम हो गई होगी?
- इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि इस बारे में पूछने पर रक्षा मंत्रालय ने सीएजी से कहा कि इस संबंध में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (एफएक्यू और उनके जवाब) तैयार किए गए हैं और उसमें बताया गया है कि विक्रेता को क्या करना है। पर सीएजी ने कहा है कि एफएक्यू करार की शर्तों से अलग नहीं हो सकता है यानी उन्हें रद्द नहीं कर सकता है।
- द टेलीग्राफ ने लिखा है कि भारत में कई लोगों को (मुझे भी) ऑफसेट क्लॉज के बारे में रफाल विवाद के कारण ही पता चला था। अखबार ने लिखा है कि डायरेक्टर जनरल (एक्विजिशन) अतुल चंद्रा ने अखबार वालों को बताया कि नई प्रक्रिया के तहत इसे एक अक्तूबर से हटा दिया गया है। यह सरकारों के बीच और एक विक्रेता के साथ होने वाले करार में नहीं रहेगा। बाद में मंत्रालय के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि ज्यादा विक्रेताओं से होने वाले करार में यह नियम बना रहेगा। रक्षा मंत्रालय के आधिकारिक बयान में कहा गया है कि ऑफसेट दिशानिर्देशों को संशोधित किया गया है।
मुझे लगता है कि सरकारी स्तर पर इस तरह के बयान, स्पष्टीकरण देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस होना और फिर स्पष्टीकरण देना पार्टी की उस मीटिंग से अलग नहीं है जिसमें बड़े अक्षरों में दीन दयाल उपाध्याय को ‘दीन दलाल उपाध्याय’ लिख दिया गया था। लाख टके का सवाल यह है कि अगर ऑफसेट क्लॉज से कीमत बढ़ जाती थी तो हटाने से घटने का लाभ किसे मिला? सौदा अगर लाभ में हुआ तो बताया क्यों नहीं जा रहा है। और जब करार में ही नहीं है तो बदला किसलिए गया?
संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और सिद्ध अनुवादक हैं।