दलितों को जलाने का आरोप मुस्लिमों पर है, इसलिए पूरा कटिहार जलाएँगे दंगाई!

 

मुकेश कुमार

 

बिहार के कटिहार जिले में एक दलित परिवार को जिंदा जलाने की बर्बर घटना को लेकर काफ़ी आक्रोश है। लोग फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के ज़रिये जल्द सजा दिलाने की माँग कर रहे हैं। लेकिन कुछ सांप्रदायिक संगठन इस मुद्दे तूल देकर कटिहार को दंगे की आग में झोंकने की कोशिश कर रहे हैं।

कटिहार में 10 जून की रात अपनी झोपड़ी में सो रहे एक दलित परिवार को आग में झोंक दिया गया था। इस घटना में परिवार के चार सदस्यों में से तीन की मौत हो गई। इनमें एक गर्भवती विकलांग महिला और उसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। परिवार के एक मात्र ज़िंदा सदस्य 40 वर्षीय बज्जन दास की हालत भी नाजुक बनी हुई है। उसका पूरा जिस्म आग में बुरी तरह जल गया है। वह बात करने की भी स्थिति में नहीं है।

कटिहार से लाकर उसे भागलपुर के जवाहर लाल मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बर्न वार्ड में भर्ती जरूर किया गया है, किन्तु अस्पताल के बर्नवार्ड की दुर्दशा देखकर इसकी उम्मीद कम ही है कि उसे जिंदा बचाया जा सकेगा। ज़ाहिर है, उसे बेहतर इलाज की जरुरत है लेकिन इतनी क्रूर व अमानवीय घटना के पीड़ित की सुधि लेने की फुर्सत पटना-दिल्ली की सरकारों को तो छोड़िए, विपक्षी पार्टियों को भी नहीं है।

इस बीच बजरंग दल सरीखे संगठन पूरे मामले को साम्प्रदायिक रंग देने की मुहिम में जुट गए हैं। वे इस अग्निकांड की चिंगारी से पूरे कटिहार को जला देना चाहते हैं। बज्जन दास का हाल जानने अस्पताल पहुँचे न्याय मंच, पीएसओ, अम्बेडकर-फुले युवा मंच और अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों को रिश्तेदारों ने  बताया कि बजरंग दल के लोगों ने घटना स्थल पर पहुंच कर ‘खून का बदला खून’ से लेने का ऐलान किया है।

इस पूरे मामले को साम्प्रदायिक रंग इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि आग लगाने का आरोप एक मुस्लिम परिवार पर है। जबकि बज्जन दास के रिश्तेदारों से बातचीत करने पर पता चला कि यह पूरा मामला साम्प्रदायिक न होकर भूमि विवाद का है। रिश्तेदारों के मुताबिक बज्जन दास ने कोई एक माह पूर्व कटिहार जिले के आजमनगर थाना अंतर्गत घोरदो नामक गाँव में चाय-नास्ते की एक छोटी सी दुकान सड़क किनारे झोंपड़ी बनाकर खोली थी। दुकान के पीछे उसी झोंपड़ी में वह अपने 4 सदस्यीय परिवार के साथ रहता भी था। दुकान के पीछे की जमीन एक नाई जाति के परिवार की थी। बज्जन ने जब यह दुकान लगाई थी, उस वक्त किसी ने कोई विरोध नहीं किया था। किन्तु कुछ दिन पूर्व यह जमीन एक मुस्लिम परिवार को बेच दिया गया और उसने एक-दो बार दुकान हटाने का दबाव बनाया था। किंतु इस बात को लेकर कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ था। उस दलित परिवार की यह सामाजिक-आर्थिक हैसियत भी नहीं थी कि वह स्थानीय लोगों से पंगा ले सके। उसने कुछ दिन में जमीन खाली कर देने की बात कही थी, इसी बीच यह अमानवीय घटना को अंजाम दे दिया गया।

बज्जन दास के रिश्ते में साले चन्दन दास ने बताया कि वर्ष 2012 में उसकी बहन की शादी बज्जन से हुई थी। बहन विकलांग थी, उसके दोनों पैरों को बचपन में ही पोलियो मार गया था। शादी के बाद से भूमिहीन बज्जन दास ससुराल के गांव- हरनागढ़ में ही बस गया था और मजदूरी कर अपना घर चलाता था। मेहनत-मजूरी से तिनका-तिनका जोड़कर उसने एक माह पूर्व ही ससुराल गांव के समीप ही घोरदो चौंक पर यह दुकान खोली थी और वहीं रहने भी लगा था। पत्नी 5 माह के गर्भ से थी और दो बेटियां-प्रीति और किरण क्रमशः 4 वर्ष और 2 वर्ष की थी। रात्रि तकरीबन दस बजे जब अपने बाल-बच्चों के साथ यह दलित परिवार झोंपड़ी में सोया हुआ था, उसी वक्त झोंपड़ी के भीतर तीब्र ज्वलनशील पदार्थ डालकर इस बर्बर घटना को अंजाम दिया गया। ज्वलनशील पदार्थ इस तरह डाला गया कि झोंपड़ी पूरी तरह से सुरक्षित रह गई लेकिन घर के सभी सदस्य आग में झुलस गए। घटना में परिवार के सभी सदस्यों के अलावा बिस्तर और मच्छरदानी ही केवल जला है।

बताया जाता है कि आग लगाकर झोपड़ी के दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया गया था, ताकि भागने की कोई गुंजाइश न रहे। दोनों बच्चियों की मौत तो मौके पर ही हो गई जबकि गर्भवती महिला ने अस्पताल में दम तोड़ा। इससे साफ जाहिर होता है कि यह घटना ठंढे दिमाग से रची गई साजिश का नतीजा है। फिलहाल पुलिस ने आरोपी परिवार के एक स्त्री और पुरुष को गिरफ्तार किया है।

भागलपुर के सामाजिक संगठनों के शिष्टमंडल ने इस बर्बर-अमानवीय घटना के सभी दोषियों को अविलंब गिरफ्तार कर स्पीडी ट्रायल चलाकर कठोर सजा देने की मांग की है। साथ ही जिंदगी-मौत से जूझ रहे गंभीर रूप से जल चुके बज्जन दास को देश के उच्चस्तरीय बर्न हॉस्पीटल ले जाकर बेहतर इलाज कराने और पूरा खर्चा राज्य सरकार से उठाने की मांग की है।

शिष्टमंडल के सदस्यों ने राज्य में दलितों-कमजोर तबकों पर बढ़ती हिंसा के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए दलितों पर इस किस्म के क्रूर हमले को सांप्रदायिक रंग देने की घृणित कोशिशों की भी तीखी आलोचना की है। प्रतिनिधियों ने कहा है कि बिहार जिस किस्म की बर्बरता की तरफ बढ़ रहा है, उसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है। दलितों-भूमिहीनों के पक्ष में भूमि सुधार की दिशा में राज्य सरकारों द्वारा ठोस कदम नहीं उठाये जाने व सवर्ण-सामंती शक्तियों तथा अपराधियों को खुली छूट की वजह से ही ऐसी बर्बर घटनाएं हो रही हैं। इन बर्बर घटनाओं के निशाने पर दलित-महादलित और कमजोर तबके ही रहते हैं। सामाजिक न्याय और सुशासन का ढिंढोरा पीटने वाले नीतीश-लालू की सरकारों ने पिछले तीन दशकों में अगर भूमि सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाया होता तो मुमकिन है ऐसी घटना न होती। उक्त शिष्टमंडल के सदस्यों ने राज्य सरकार से मांग की है कि न तो बर्बर हिंसा के दोषियों को छूट मिलनी चाहिए और न ही घटना के आधार पर सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वालों को छूट मिलनी चाहिए!

शिष्टमंडल के प्रतिनिधियों का आरोप है कि जद-यू व भाजपा के नेतृत्व में बिहार मध्ययुगीन बर्बरता की ओर बढ़ रहा है! ब्रह्मणवादी-सामंती-सांप्रदायिक शक्तियों को मिली छूट बिहार को बर्बरता की ओर ले जा रहा है। दलित बड़े पैमाने पर भूमिहीनता के शिकार हैं, इस कारण उनका जीवन असुरक्षित व अपमानजनक हो जाता है और सामंतों व दबंगों की हिंसा के निशाने पर आसानी से आते हैं। शिष्टमंडल में न्याय मंच के रिंकु यादव, डॉ. मुकेश कुमार, सौरभ तिवारी; पीएसओ के अंजनी; अंबेडकर-फुले युवा मंच के अजय कुमार राम एवं गांधी विचार मंच के नीरज कुमार शामिल थे।

 



 

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