तिलका माँझी वि.वि में असि.प्रो.दिव्यानंद की पिटाई राजद के लंपट चरित्र का सबूत है!

पूरे मामले में अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने और विपक्षी स्वर को दबाने के लिए एक दलित छात्र का उपयोग किया जा रहा है और एससी-एसटी एक्ट को औजार बनाया जा रहा है। यह घोर ब्राह्मणवादी व्यवहार है। दलित अस्मिता का मजाक उड़ाना है, एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ ब्राह्मणवादी दुष्प्रचार का मौका मुहैया कराना है।

पिछले 26 मार्च को बिहार बंद के दौरान तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यानंद देव की छात्र राजद के लालू यादव व कार्यकताओं सहित अंग क्रांति सेना के संयोजक शिशिर रंजन सिंह ने उस वक्त पिटाई कर दी, जब वे क्लास ले रहे थे।

प्रोफेसर दिव्यानंद देव ने फोन पर बताया कि “26 मार्च को जो बिहार बंद था, उसका समर्थन हमारे एचओडी ने पहले से ही सोशल मीडिया पर कर रखा था। हमलोग इसके समर्थन में थे। लेकिन कुछ बच्चे आ गये थे, अत: 10.30 बजे से 11.30 की क्लास हमारे सीनियर प्राफेसर ने ली। सिस्टम से दूसरी क्लास 11.30 से 12.30 तक मेरी थी, जिसे मैं अपने हेड की सहमति से ले रहा था। मैं 11.30 बजे क्लास में गया, संयोग वश 26 मार्च को महादेवी वर्मा की जन्मतिथि भी थी, सो मैंने उन्हीं पर बातचीत शुरू की। उस दिन हवा काफी तेज चल रही थी, इस कारण बाहर से हवा की तेज आवाज आ रही थी। डिस्टर्ब न हो इसलिए मैंने दरवाजा बंद करवा दिया था। वैसे आमतौर पर मैं दरवाजा लगवाता नहीं हूँ। 12 बजे के करीब जोर—जोर से दरवाजा पीटा जाने लगा। बच्चे और हम घबड़ा गए कि क्या हुआ? मैंने जैसे ही दरवाजा खोला 10—12 लोग अंदर आ गए, वे सभी छात्र राजद और अंग क्रांति सेना के लोग थे। उन्होंने मुझे पकड़ा और बाहर गलियारे की ओर ले गए और बिना कुछ बोले व बिना मेरी बात सुने मेरे साथ मारपीट शुरू कर दी। शोरगुल सुनकर प्रोफेसर, स्कॉलर सहित अन्य स्टाफ वहाँ आए और मुझे कवर करके वहाँ से ले गए। हल्ला होने के बाद विभाग के अध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र पहुंचे, उनके सामने भी छात्र राजद के लालू यादव ने थप्पड़ मारा।
आप ऐसी स्थिति का स्वत: अंदाजा लगा सकते हैं कि मुझ पर क्या गुजर रही होगी? मैंने इस घटना पर एफआईआर दर्ज कराया है जिसे देखा जा सकता है।”

अफ़सोस कि इस घटना पर किसी भी स्थानीय अखबार अपना पत्रकारिता धर्म नहीं निभाया। इस घटना की जानकारी जब सोशल मीडिया पर आई, तब से शिक्षण कार्य से जुड़े लोगों में काफी उदासी और नाराज़गी नजर आ रही हैं। ये सब ऐसे शिक्षक हैं जो वैचारिक और सैद्धांतिक रूप से समाजवादी और वामपंथी विचारधारा के करीब हैं। वे भी विपक्ष द्वारा बिहार बंद के साथ थे, उनका तरीका अलग था। वे विरोध करते हुए भी शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य जारी रखना चाहते थे। जो राजद के लोगों को पसंद नहीं आई।

कई राजनीतिक समझदारों का आकलन यह है कि तेजस्वी यादव और राजद की राजनीति बदल रही है। अब देखना है कि तेजस्वी यादव भागलपुर के मामले में क्या करते हैं?

यह भी देखा जाना है कि विश्वविद्यालय के कुलपति कौन सा ठोस कदम उठाती हैं? जिससे कैंपस का बेहतर माहौल बने और ऐसे तत्वों पर शिकंजा कसा जाए।

बाकी यह भी दिखेगा कि नीतीश कुमार की पुलिस कितना बेहतर ढंग से अपनी जवाबदेही का पालन करती है? ताकि न निर्दोष फसें और न दोषी बचे….!

दिव्यानंद देव ओएनजीसी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर बिहार में एकेडमिक्स की दुनिया में आये हैं, ताकि यहां का माहौल बदलने में अपनी भूमिका निभा सकें। अपनी मिट्टी के लिए कुछ योगदान दे सकें।

घटना के बाद विश्वविद्यालय के अन्य शिक्षकों ने विश्वविद्यालय प्रशासनिक भवन पहुँच कर कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता को मामले की पूरी जानकारी दी। कुलपति ने मामले को अनुशासन समिति में हवाले कर तीन दिनों में रिपोर्ट माँगी। विश्वविद्यालय थाना में दिव्यानंद ने एफआईआर दर्ज करने के लिए आवेदन दिया।

वहीं अपने बचाव में दूसरे दिन 27 मार्च को अंग क्रांति सेना के विश्वविद्यालय सचिव गौतम कुमार पासवान ने विश्वविद्यालय थाना में हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यानंद और विभागाध्यक्ष डॉ. योगेंद्र पर जाति सूचक गाली देने एवं हिंसक व्यवहार के संबंध में आवेदन दिया। उसके बाद दूसरे दिन अखबारों में अंग क्रांति सेना के संयोजक शिशिर रंजन सिंह का शिक्षकों पर कार्रवाई करने की माँग करते हुए बयान आया।

जबकि घटना के दिन छात्र राजद और अंग क्रांति सेना द्वारा मामले से संबंधित न तो कोई आवेदन दिया गया, न ही हिंदी विभाग में हुई घटना में बंद समर्थक छात्र के साथ शिक्षकों द्वारा हिंसा से संबंधित बयान अखबार को दिया गया और न ही सोशल मीडिया पर लिखा गया था। लेकिन जब सोशल साइट पर हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. योगेंद्र ने घटना को लेकर पोस्ट किया, तब अपने बचाव में छात्र राजद और अंग क्रांति सेना के नेताओं व कार्यकताओं ने सोशल साइट पर प्रतिक्रिया देना शुरु किया।

इसके बाद दलित छात्र गौतम कुमार पासवान के आवेदन को आधार बनाकर राजद के जिलाध्यक्ष चंद्रशेखर यादव ने कहा कि छात्र राजद कार्यकताओं पर लगाये गये मारपीट का आरोप पूर्णतः राजनीति से प्रेरित है। आरोप लगाने वाले शिक्षक ने ही प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ दुव्यर्वहार किया व संगठन के विषय में अपशब्द कहा। विश्वविद्यालय के कुछ शिक्षक बेवजह मामले को तूल दे रहे हैं। विश्वविद्यालय का माहौल बिगाड़ने की साजिश रची जा रही है। वहीं युवा राजद के प्रदेश महासचिव मो. मेराज अख्तर उर्फ चांद ने बयान दिया कि छात्र राजद कार्यकताओं पर लगाये गये आरोप मिथ्या एवं मनगढंत हैं।

बताया जाता है कि बंद के दौरान अपनी हिंसक हरकतों के कारण राजद ने पूर्व जिलाध्यक्ष व मो. मेराज अख्तर उर्फ चांद पर कार्रवाई की थी। उस दौरान भी इन दोनों की पूरी फजीहत हुई थी। वहीं अब तक छात्र राजद के तरफ से ना कोई अखबारों में बयान आया है ना ही कोई थाना में आवेदन दिया गया लेकिन अंग क्रांति सेना द्वारा घटना के दूसरे दिन एक दलित छात्र द्वारा विश्वविद्यालय थाना में आवेदन दिलवाया गया। उसके बाद दूसरे दिन इस संगठन के संयोजक शिशिर रंजन सिंह का बयान छपा। इसी मामले को आधार बनाकर राजद के जिलाध्यक्ष और युवा राजद के प्रदेश महासचिव का बयान अखबारों में आया है, लेकिन छात्र राजद की तरफ से कोई सफाई नहीं आयी है।

प्रोफेसर दिव्यानंद ने विश्वविद्यालय थाना, भागलपुर में लालू यादव, चंदन यादव, दिलीप यादव, उमरताज, मिथुन कुमार यादव, शिशिर रंजन सिंह, प्रिंस कुमार, नीतीश कुमार एवं अन्य अज्ञात कार्यकर्ताओं पर एफआईआर (FIR) दर्ज करायी है। वहीं गौतम कुमार पासवान, पिता श्री बासुकी पासवान ने इसी थाना में जाति सूचक गाली एवं जान से मारने की धमकी देने के संबंध में असिसटेन्ट प्रोफेसर दिव्यानंद देव एवं उनके अन्य समर्थकों पर एफआईआर (FIR) दर्ज करायी है।

साफ है कि पूरे मामले में अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने और विपक्षी स्वर को दबाने के लिए एक दलित छात्र का उपयोग किया जा रहा है और एससी-एसटी एक्ट को औजार बनाया जा रहा है। यह घोर ब्राह्मणवादी व्यवहार है। दलित अस्मिता का मजाक उड़ाना है, एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ ब्राह्मणवादी दुष्प्रचार का मौका मुहैया कराना है।

सामाजिक कार्यकर्ता अंजनी विशू कहते हैं कि अगर विभाग में अध्यक्ष व शिक्षक के द्वारा बंद करवाने गये कार्यकताओं से कुछ भी बदसलूकी की गयी थी, तो उसी दिन थाना में आवेदन देना चाहिए था, न कि अपने कुकृत्यों को जायज ठहराने के लिए एक दलित लड़के का उपयोग करना चाहिए। राजद समर्थक सोशल मीडिया पर सामाजिक न्याय की लड़ाई का दावा करते हुए छात्र राजद के हिंसक कार्रवाई को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। क्या सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने के कारण छात्र राजद को कुछ भी करने की छूट मिल जाती है? दूसरी तरफ वे दिव्यानंद देव की जाति पर बात कर रहे हैं। आखिर जाति देखने का मतलब क्या है? क्या दिव्यानंद ने कोई ब्राह्मणवादी उत्पीड़नकारी व्यवहार किया है?

अंजनी विशु कहते हैं कि डॉ. योगेन्द्र तो पिछड़ी जाति से आते हैं। छात्र राजद की सामाजिक न्याय के साथ कैसी प्रतिबद्धता है कि सामाजिक न्याय के संघर्षों में सक्रिय भागीदारी करने वाले पिछड़ी जाति के एक बुद्धिजीवी के साथ घृणास्पद व्यवहार कर रहा है? वे सवाल उठाते हुए कहते हैं कि छात्र राजद के सहयोग में सक्रिय अंग क्रांति सेना किस खास सवर्ण जाति का गिरोह है? उसके नेतृत्वकर्ता की जाति क्या है? अंग क्रांति सेना विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के कई मामलों के आरोपी एक कॉलेज के वर्तमान प्राचार्य, जो एक खास सवर्ण जाति के हैं, के लिए काम करता है। हकीकत यह है कि विधानसभा में लोकतंत्र की हत्या के खिलाफ राजद की राजनीतिक कार्रवाई, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में असली चरित्र के साथ खड़ी है।

इस घटना पर पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं कि राजद का पतन इसी छवि के कारण हुआ है। वे लोग बातचीत कम, मारपीट ज्यादा करते हैं। पार्टी इस पहचान और अपने अंदर मौजूद हिंसक व अराजक तत्वों से मुक्त नहीं हो पा रही है। आज भी राजद में ऐसे तत्वों की प्रधानता है जो बातचीत के पहले लाठी चला देने में विश्वास रखते हैं। इसको लेकर पार्टी गंभीर रहने की बजाय बचाव में आ जाती है। इस घटना में भी ऐसा ही हुआ है, असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यानंद देव के साथ छात्र राजद के लोगों ने जिस तरह से मारपीट की, इसके बजाय कि उन पर पार्टी कार्यवाई करती, उनके बचाव में खड़ी हो गई है।

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के महासचिव गौतम कुमार प्रीतम कहते हैं कि छात्र राजद के छात्रों द्वारा शिक्षक के साथ मार पिटाई घटना की हम कड़ी निंदा करते हैं। सामाजिक न्याय की बात करने वाली पार्टी राजद के वरिष्ठ नेता को सामने आकर छात्र के गलत रवैया के प्रति माफी मांगनी चाहिए और उन सभी छात्र नौजवान पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए, जो इसमें शामिल हैं। इससे राजद के संगठन को राजनीतिक लाभ भी मिलेगा। अन्यथा इनकी छवि धूमिल होगी।

वहीं अपने उपर हुए हमले पर प्रो. दिव्यानंद की एक ही मांग है कि हमले में शामिल पंजीकृत छात्रों को निष्कासित किया जाय। विभाग के अध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र ने फोन पर हुई बातचीत में बताया कि दिव्यानंद जी के साथ जो घटना घटी है वह बहुत ही दुर्भग्यपूर्ण है, मेरे सामने उन्हें थप्पड़ मारा गया है, इसका मैं गवाह हूं। मेरी मांग हैं कि हमलावरों पर अनुशासनात्मक कार्यवाई हो। वैसे विभाग क्या फैसला लेता है? उसपर निर्भर है।

26 मार्च की घटना पर समाज का हर तबका चिंतित है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रबुद्ध नागरिकों ने इस घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि शिक्षकों के साथ ऐसा अमर्यादित व्यवहार निन्दनीय है, वहीं इसका राजनीतिकरण भविष्य के लिए काफी खतरनाक है।

इसी कड़ी में 31 मार्च को लोक चेतना भागलपुर की ओर से गांधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र में सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रबुद्ध नागरिकों की एक बैठक हुई, जिसमें तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के शिक्षकों के साथ 26 मार्च को बिहार बंद के दौरान छात्रों द्वारा किये गये अमर्यादित आचरण और कुछ छात्रों द्वारा झूठे मुकदमें के सन्दर्भ और सामाजिक दायित्व को लेकर चिन्ता व्यक्त की गई। बैठक की अध्यक्षता प्रकाशचंद्र गुप्ता और संचालन रामशरण जी द्वारा किया गया। बैठक में पूरे सन्दर्भ पर चर्चा के उपरांत निष्कर्ष आया कि कुछ छात्रों द्वारा व्यक्तिगत स्वार्थ बस यह घृणित कार्य किया गया है, जिसका राजनीतिकरण किया जा रहा है, जो काफी निन्दनीय है। बैठक में कहा गया कि शिक्षक मर्यादा के पात्र हैं, उसमें भी जिन शिक्षकों के साथ ऐसा हुआ है, वे छात्र हित के लिये सदैव लड़ते रहे हैं। इसलिए उनपर लगाया गया आरोप पूरी तरह झूठ और मनगढंत है।

बैठक में चर्चा के दौरान विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग में घटित घटना की घोर निन्दा की गयी और घटना के उच्चस्तरीय जांच की मांग की गयी। बैठक में विश्वविद्यालय शिक्षक संघ और स्नातकोत्तर विभाग से आग्रह किया गया कि वे इस संबंध में कानूनी कार्यवाही हेतु उचित कदम उठाएं तथा अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के झूठे मुकदमे को वापस लेने की मांग करें। बैठक में निर्णय हुआ कि इस घटना को लेकर एक प्रतिनिधिमंडल स्थानीय प्रशासन से मिलकर न्याय की मांग करेगा।

बैठक में सार्थक भारत, रामानंद पासवान, अनिता शर्मा, बासुदेव भाई, उदय, मनोज मीता, मुकेश मुक्त, प्रकाशचन्द्र गुप्ता, अर्जुन शर्मा, मो. नदीम, तकी अहमद जावेद, रामशरण, कुमार संतोष,शशि शंकर, रिंकु, प्रणव, संजय कुमार, सच्चिदानंद मिश्र सहित कई एक मौजूद रहे।

 

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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