अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किसानों को आंदोलनजीवी और विदेशी विध्वंसकारी विचारधारा से प्रेरित बताना किसानों और आंदोलनकारियों का घोर अपमान है। समन्वय समिति ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की है कि वे अपने वक्तव्य को वापस लें, देश के किसानों तथा आंदोलनकारियों से माफी मांगे।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य हनान मौला, मेधा पाटकर, अतुल अंजान, डॉ आशीष मित्तल, राजा राम सिंह, तेजिंदर सिंह विर्क, प्रतिभा शिंदे, कृष्णा प्रसाद, अशोक धवले और डॉ सुनीलम ने आज ऑनलाइन पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री से उम्मीद की जा रही थी कि वे राज्यसभा में तीनों कानून रद्द करने की घोषणा करेंगे लेकिन उन्होंने आंदोलनरत किसानों को आंदोलनजीवी तथा विदेशी विध्वंसकारी विचारधारा से प्रेरित बतलाकर किसानों को ही नहीं, आजादी के आंदोलन से लेकर अब तक हुए सभी आंदोलनों को कलंकित करने का प्रयास किया है।
समन्वय समिति के अनुसार यदि स्वतंत्रता आंदोलन नहीं होता तो देश आजाद नहीं होता। 1974 का आंदोलन नहीं होता तो देश में लोकतंत्र की बहाली नहीं होती। 1894 में अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए भू- अधिग्रहण कानून के खिलाफ आंदोलन नहीं होता तो नया भू-अधिग्रहण कानून नहीं बनता?
समन्वय समिति के सदस्यों ने कहा कि अहिंसक आंदोलन और सत्याग्रह के माध्यम से अपनी समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करना स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और एकजुट होने का संवैधानिक अधिकार भी है।
समन्वय समिति ने कहा कि प्रधानमंत्री ने किसानों को परजीवी कहकर अन्नदाता का अपमान किया है, अर्थात जिस थाली में खाया है उस थाली में छेद किया है। किसान अपनी खेती कॉरपोरेट से बचने की लड़ाई लड़ रहा है, जबकि प्रधानमंत्री अडानी-अम्बानी जैसे कॉर्पोरेट के लिए किसानों की जमीन छीनने के लिए कानून लाये है। अर्थात वे कॉरपोरेटजीवी है।
समन्वय समिति ने कहा है कि संघ परिवार न तो स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जुड़ा, ना कभी स्वतंत्रता आंदोलनकारियों के महत्वपूर्ण योगदान को उसने सराहा है। अब खुलकर प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान किया गया है। प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में आंदोलनकारियों को अपमानित करते हुए विदेशी विध्वंशकारी विचारधारा से प्रेरित बताया है जबकि स्वयं प्रधानमंत्री, उनकी पार्टी और संघ परिवार विदेशी विध्वंसकारी फासीवादी विचारधारा के प्रतिनिधि है। अर्थात प्रधानमंत्री ने उल्टा चोर कोतवाल को डांटे कहावत को चरितार्थ किया है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा यह कहना कि एमएसपी था, है, और रहेगा। यह सबसे बड़ा झूठ है क्योंकि 23 कृषि उत्पाद पैदा करने वाले सभी किसानों को आज तक एमएसपी का लाभ नहीं मिला। केवल और केवल पंजाब में गेहूं और धान की ही एमएसपी पर खरीद की जाती रही है। पूरे देश में किसानों द्वारा उत्पादित गेहूं और धान को भी एमएसपी पर ना तो पहले खरीदा गया नआज खरीदा जा रहा है। जिन 6 प्रतिशत कृषि उत्पादों की एमएसपी पर खरीद होती है वह भी सी 2+50 प्रतिशत के आधार पर नहीं दी जा रही है। प्रधानमंत्री द्वारा यदि कहा जाता कि कागजों पर घोषणा होती थी, होती है और होती रहेगी तो यह सत्य से जुड़ा बयान हो सकता था। वर्तमान आंदोलन सभी कृषि उत्पादों की सी2+ 50% पर खरीद की कानूनी गारन्टी की मांग कर रहा है। जिसकी घोषणा 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री द्वारा की गई थी तथा गुजरात के मुख्यमंत्री रहते एमएसपी पर 2006 में बनी कमेटी द्वारा भी एम एस पी की कानूनी गारन्टी देने की सिफारिश की गई थी।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने अपील की है कि वे अपने वक्तव्य को वापस लें, देश के किसानों तथा आंदोलनकारियों से माफी मांगे।
प्रधानमंत्री को 3 किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने, सभी कृषि उत्पादों की सी 2 +50 प्रतिशत पर खरीद की कानूनी गारन्टी देने, बिजली संशोधन बिल वापस लेने और पराली जलाने के अध्यादेश में किसानों को दंडित करने का प्रावधान समाप्त करना चाहिए।