TSRTC के 48,000 कर्मचारियों की छंटनी के खिलाफ तेलंगाना भवन पर विरोध प्रदर्शन

दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले मजदूरों ने 9 अक्टूबर को तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम TSRTC के 48,000 कर्मचारियों की छटनी के खिलाफ तेलंगाना भवन के समक्ष प्रदर्शन किया। आज के प्रदर्शन का आह्वान ऐक्टू की तरफ से किया गया था। दिल्ली परिवहन निगम में सक्रिय यूनियन – ‘डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेन्टर’ से जुड़े कई कर्मचारियों ने प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। प्रदर्शन के दौरान ‘रेजिडेंट कमिश्नर’ को मेमोरेंडम भी सौंपा गया और ये मांग उठाई गई कि तेलंगाना सरकार तुरंत अपने अलोकतांत्रिक फैसले को वापस ले।

तेलंगाना रोडवेज के 48,000 कर्मचारियों की छटनी हमारे सामने कुछ गम्भीर सवाल खड़े करती हैं। विभिन्न पार्टियां चुनाव के दौरान मजदूरों से सिर्फ बड़े-बड़े वादे करती हैं और चुनाव के बाद न सिर्फ उन वादों को भूल जाती हैं बल्कि मज़दूर विरोधी फैसले लेने के लिए तत्पर रहती हैं। उदाहरण के रूप में, तेलंगाना के मुख्यमंत्री ‘के चंद्रशेखर राव’ ने पहले तो आम जनता और कर्मचारियों के समक्ष चुनाव से पहले कई वादे किए, पर अब कर्मचारियों की जायज़ मांगों को दबाने के लिए वो कोई कसर बाकी नही छोड़ रहे।

ट्रेड यूनियन अधिकारों पर हमला

भारत एक ऐसा देश है जिसमें सार्वजनिक परिवहन प्रणाली बहुत खस्ताहाल है। अधिकांश राज्य जो अभी तक आम लोगों की जनपरिवहन संबंधी जरूरतों को पूरा कर पाये हैं, वह ‘राज्य परिवहन निगमों या अन्य राज्य सरकार के उपक्रमों’ के सहयोग से ही कर पाये हैं।

पहले से ही लचर जनपरिवहन व्यवस्था अब खतरे में है क्योंकि विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लगातार जनपरिवहन के निजीकरण की कोशिशें जारी हैं।

राज्य व केंद्र सरकारों की ये नीति है कि सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी संस्थानों का तेजी से निजीकरण किया जाए। इसके खिलाफ ट्रेड यूनियनों द्वारा देश तथा राज्य स्तर पर लगातार कार्यक्रम लेकर, एक मजबूत प्रतिरोध दर्ज किया गया है। चाहे वह हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडु हो या तेलंगाना – हर राज्य में कर्मचारियों द्वारा सरकार की जन-विरोधी नीतियों का कड़ा विरोध किया गया है।

दिल्ली परिवहन निगम या हरियाणा रोडवेज में हड़ताल जैसे आंदोलनों को दबाने के लिए आम तौर पर छटनी और अन्य दबावपूर्ण कार्यवाहियों की धमकियां दी जाती रही हैं।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव द्वारा 48,000 TSRTC कर्मचारियों की छटनी, दरअसल, निजीकरण के खिलाफ मजदूरों के प्रतिरोध को दबाने की साजिश है।

सरकार द्वारा गम्भीर रूप से गैरकानूनी व द्वेषपूर्ण कदम :

TSRTC की ‘संयुक्त कार्रवाई समिति’ ने अधिकारियों को पहले ही हड़ताल का नोटिस जारी किया था, पर राज्य सरकार ने इन कर्मचारियों के साथ कोई वार्ता शुरू नहीं की।
सरकारों द्वारा इस तरह के अहंकारपूर्ण और अलोकतांत्रिक कदम आम बातें हो गई हैं। पिछले साल, देश की राजधानी दिल्ली में भी, आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने हड़ताल का नोटिस देने के बाद भी डीटीसी कर्मचारियों के साथ बातचीत करने से इनकार कर दिया था। हरियाणा रोडवेज के हड़ताली कर्मचारियों को भी आंदोलन के दौरान भाजपा सरकार द्वारा दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा था।

प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए ऐक्टू-दिल्ली के अध्यक्ष संतोष राय ने कहा कि
“तेलंगाना के मुख्यमंत्री को लगता है कि इस तरह के दमनकारी कदम से, वो निजीकरण के खिलाफ संघर्षरत यूनियनों का मनोबल तोड़ देंगे। लेकिन मेहनतकशों की व्यापक वर्गीय एकता के सामने सभी को झुकना पड़ता है। चंद्रशेखर राव को तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे.जयललिता द्वारा उठाए गए मज़दूर-विरोधी कदमों के परिणाम को नहीं भूलना चाहिए।”

डीटीसी वर्कर्स यूनिटी सेंटर के महासचिव राजेश चोपड़ा ने कहा, “आज सरकारें हर चीज का निजीकरण करना चाहती हैं। मोदी सरकार एयर इंडिया, भारतीय रेलवे, भारत पेट्रोलियम और कई अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेच रही है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री भी मोदी के नक्शे कदम पर चलते हुए टीएसआरटीसी का निजीकरण कर रहे हैं। एक मुख्यमंत्री चाहे जितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, वो मजदूरों की ताकत और संघर्ष के सामने नहीं टिक सकता। विभिन्न राज्यों के साथ-साथ केंद्र की तानाशाह सरकार के खिलाफ देशभर में मज़दूर लगातार संघर्षरत हैं। हमारे सांझा संघर्ष से ही हम एक बेहतर भारत का निर्माण कर सकते हैं।”

प्रदर्शन का समापन ज़ोरदार नारों व सांगवारी थिएटर ग्रुप के क्रांतिकारी गीतों के साथ हुआ।


अभिषेक, महासचिव, ऐक्टू दिल्ली द्वारा जारी 

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