बुलंदशहर हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दुर्घटना कहे जाने से जहाँ शहीद के परिजन बेहद सदमे में हैं वहीं 83 पूर्व नौकरशाहों ने एक खुला खत जारी करके कहा है कि योगी एक पुजारी की तरह धर्मांधता और बहुसंख्यकों के प्रभुत्व के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। उन्हें तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने माँग की है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट घटना का संज्ञान लेकर न्यायिक जाँच का आदेश दे।
बुलंदशहर में 3 दिसंबर को कट्टरवादी हिंदू संगठनों के हमले के बीच इंस्पेक्टरसुबोध सिंह की हत्या कर दी गई थी। इस घटना के 16 दिन बीत जाने के बावजूद अभी तक मुख्य आरोपी, बजरंगदल का संयोजक योगेश राजगिरफ्तार नहीं किया गया है। पुलिस का पूरा जोर गोकशी के आरोपियों को गिरफ्तार करनेपर है। उसने माना है कि पहले गिरफ्तार किए गए चार लोग निर्दोष हैं। उसने अब तीन नए लोगों को पकड़ा है।
सूबे के हालात पर 83 पूर्व नौकरशाहों ने गहरी चिंता जाहिर करते हुए खुला पत्र जारी किया है। पत्र में लिखा है कि-
‘3 दिसंबर 2018 को हुई हिंसक घटना के दौरान पुलिस अधिकारी की हत्या,राजनीतिक द्वेष की दिशा में अब तक का एक बेहद खतरनाक संकेत है। इससे पता चलता हैकि देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में शासन प्रणाली के मौलिक सिद्धांतों, संवैधानिक नीति और मानवीय सामाजिक व्यवहार तहस नहस होचुके हैं. राज्य के मुख्यमंत्री एक पुजारी की तरह धर्मांधता और बहुसंख्यकों के प्रभुत्व के एजेंडे पर काम कर रहे हैं।’
पत्र में लिखा गया है कि ‘सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिये ऐसे हालात पहली बार उत्पन्न नहीं किए गए। उत्तर प्रदेश का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब भीड़ द्वारा एक पुलिसकर्मी हत्या की गई हो, न ही यह गौरक्षा के नाम होने वाली राजनीति के तहत मुसलमानों को अलग-थलग कर सामाजिक विभाजन पैदा करने का पहला मामला है। यह एक गंभीर स्थिति है जिसे और सहन नहीं किया जा सकता। सभी नागरिकों को नफरत की राजनीति और विभाजन के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।’
पत्र में कहा गया है कि योगी आदित्यनाथ संविधान के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाने में नाकाम रहे हैं। इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ादे देना चाहिए।
पूर्व नौकरशाहों के पत्र में इसके साथ ही मु्ख्य सचिव, पुलिस महानिरीक्षक, गृह सचिव समेत सभी उच्च अधिकारियों को बेखौफ होकर संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने और कानून का शासन लागू करने की ओर ध्यान दिलाया गया है। इसके अलावा इलाहाबाद उच्च न्यायालय से इस घटना का संज्ञान लेते हुए न्यायिक जांच का अनुरोध भी किया गया है। पत्र में मुसलमानों, महिलाओं, आदिवासियों तथा दलितों के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिये जन-आंदोलन चलाने की भी अपील की गई है।
पत्र में राजनीतिक दबाव की परवाह किए बगैर संवैधानिक मूल्यों के लिए खड़े होने वाले सुबोध कुमार कीब हादुरी को सलाम करने की अपील भी की गई है।
पूर्व अधिकारियों ने लिखा है कि ऐसा पहली बार है जब उन्होंने इस विषय पर सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखी है। उन्होंने साफ किया कि उनका किसी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। खुला पत्र जारी करने वालों में पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन, पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह, योजना आयोग के पूर्व सचिव एन.सी.सक्सेना, अरुणा रॉय, रोमानिया में भारत के पूर्व राजदूत जूलियो रिबेरो, प्रशासकीय सुधार आयोग के पूर्व अध्यक्ष जे.एल.बजाज, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग और पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर सहित कुल 83 पूर्व नौकरशाहों के दस्तखत हैं।